राजस्थान BJP अध्यक्ष के बयान नाराज़ आदिवासी समाज, ट्विटर पर छाया ‘#हाँ_हम_नक्सली_है’

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राजस्थान के भाजपा अध्यक्ष सतीश पुनिया अपने एक बयान पर विवाद में फंस गए हैं। भारतीय ट्राईबल पार्टी के राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस की सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद दिए गए इस बयान के ख़िलाफ़ आदिवासी समाज में आक्रोश फैल गया है। दरअसल हाल ही में राजस्थान में हुए पंचायत चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया है। लेकिन इसके पीछे का गणित, पर्दे के पीछे नहीं सामने हुआ – जहां इन चुनावों में बीटीपी के ख़िलाफ़ भाजपा और कांग्रेस एक हो गए। इसके बाद मीडिया से बातचीत में सतीश पुनिया ने कहा कि बीटीपी के नक्सलियों से रिश्ते हैं।

पंचायत चुनावों में कांग्रेस से नाराज़गी के कारण बीटीपी के दो विधायकों ने कांग्रेस सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वेलाराम घोघरा ने कहा, “पंचायत समिति चुनाव से भाजपा और कांग्रेस का असली चेहरा सामने आ गया। इन दोनों पार्टियों की ‘मिलीभगत’ से वह डूंगरपुर में अपना जिला प्रमुख और तीन पंचायत समितियों में प्रधान नहीं बना पाए, जबकि बहुमत उनके पास था। ऐसे में हम राज्य की गहलोत सरकार से अपने रिश्ते खत्म कर रहे हैं।”

इसके बाद अपने साक्षात्कार में सतीश पुनिया ने कहा कि बीटीपी को हराने के लिए पार्टी के पंचायत स्तर के कार्यकर्ताओं-नेताओं ने कांग्रेस से हाथ मिलाया क्योंकि बीटीपी के नक्सलियों से रिश्तों की बात पता चली थी। सतीश पुनिया ने ये कहते समय किसी तरह के कोई साक्ष्य पेश नहीं किए, न ही अभी तक अपने बयान पर कोई खेद ही ज़ाहिर किया है। इसके बाद आदिवासी समाज के कार्यकर्ताओं की ओर से खासा आक्रोश देखने को मिला है। सतीश पुनिया के बयान के विरोध में राजस्थान भर के आदिवासी नेता और कार्यकर्ता सामने आ गए हैं।


ट्विटर पर शनिवार को आदिवासी कार्यकर्ताओं ने इसके विरोध में #हाँ_हम_नक्सली_है का हैशटैग चला दिया। कुछ ही देर में इस पर ट्वीट्स के ढेर लग गए। ख़बर लिखे जाने तक ये देश के टॉप 5 ट्रेंड्स में से एक हो चुका था। जिसमें आदिवासी समाज के लोगों के अलावा बड़ी संख्या में दलित कार्यकर्ता भी शामिल हो गए। इनकी मांग है कि सतीश पुनिया अपने बयान के लिए खेद ज़ाहिर करें।

कार्यकर्ताओं का कहना है कि भाजपा और उसके नेताओं के लिए अब ये आम बात हो गई है कि वे अपने हर विरोधी को नक्सली, देशद्रोही या खालिस्तानी कुछ भी कह के, उनकी विश्वसनीयता को कम करने की कोशिश करते हैं। ये बात आदिवासी समाज स्वीकार नहीं करने वाला है।

फिलहाल सतीश पुनिया ने इस पर न तो कोई स्पष्टीकरण दिया है और न ही कोई माफ़ी ही मांगी है। ज़ाहिर है पार्टी भी इस पर चुप है लेकिन राजस्थान के आदिवासी समाज में इस पर आक्रोश बढ़ता जा रहा है।