कोविड19 के प्रकोप से ध्वस्त होते सिस्टम और मरते नागरिकों की पुकार के बीच भारतीय जनता पार्टी के पास अंततः अपने उस सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के एजेंडे के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। भारतीय जनता पार्टी ने लंबी माथापच्ची के बाद आख़िरकार असम के सीएम के तौर पर ध्रुवीकरण के एजेंडे के महारथी, अपने सीनियर नेता हेमंत बिस्वा सरमा को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया है। कई दिनों तक चली विधायक दल की बैठकों और आलाकमान से सलाह के बाद हेमंत बिस्वा सरमा का नाम असम के सीएम के तौर पर फाइनल कर दिया गया है।
गुवाहाटी में बीजेपी विधायकों की बैठक में उनके नाम पर मुहर लगने के बाद अब तय है कि असम के विधानसभा चुनाव में लगातार ध्रुवीकरण के एजेंडे पर ही इलेक्शन कैंपेन कर रही भारतीय जनता पार्टी आगे भी उसी एजेंडे को बढ़ाने वाली है। हेमंत बिस्वा सरमा का नाम तय करने के बाद, निवर्तमान सीएम सर्बानंद सोनोवाल ने राज्यपाल जगदीश मुखी को अपना इस्तीफा सौंप दिया है। उनके पहले भी हेमंत सरमा ही असम से मुख्यमंत्री थे।
हेमंत बिस्वा सरमा का सांप्रदायिक बयान
हेमंत बिस्वा सरमा असम चुनावों के दौरान ही एक बेहद विवादित बयान दे चुके हैं। जिसमें उन्होंने सीधे तौर पर मुस्लिम समुदाय पर निशाना साधा था। उन्होंने अपने इस बयान में कहा था कि भारतीय जनता पार्टी को मुस्लिम वोटों की ज़रूरत ही नहीं है।
#WATCH | “Miya Muslims don’t vote for us (BJP), I’m saying this on the basis of experience,they didn’t vote us in Panchayat & 2014 Lok Sabha polls. BJP will not get votes in seats that are in their hands,while other seats are our…”said Assam Minister HB Sarma in Assamese (30.1) pic.twitter.com/uGLSgkD1iG
— ANI (@ANI) January 31, 2021
यही नहीं वे इसके पहले लव-जिहाद पर भी सांप्रदायिक बयान दे चुके हैं। उनकी राजनीति लगातार असम में मुस्लिमों पर निशाना साधने की रही है। उन्होंने हिंदू महिलाओं की विवाह की आज़ादी पर भी शिकंजा कसने वाला बयान दिया था।उन्होंने अपनी घोषणाओं में अंतर्धार्मिक शादियों को लेकर नए क़ानून लाने का वादा किया था। इस बहाने भी उन्होंने अल्पसंख्यक समुदाय पर हमला बोला था और इस पर काफी विवाद भी हुआ था।
हेमंत बिस्वा सरमा का राजनैतिक सफर
दरअसल हेमंत बिस्वा सरमा भाजपा में 2015 में ही आए। वे इस बार, असम की जालुकबारी विधानसभा सीट से लगातार पांचवीं बार चुनाव जीतकर विधायक बने हैं। ये ही नहीं, उन्होंने जीत भी 1 लाख 1,911 वोटों के विशालकाय अंतर से हासिल की। इस बार के चुनाव में भी भाजपा के अभियान की कमान लगभग उनके ही हाथ में थी।
आगे का रास्ता
दरअसल पूरे देश में कोविड 19 के प्रबंधन की नाकामी से नाराज़गी से जूझ रही भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर ध्रुवीकरण की सांप्रदायिक राजनीति का दामन पकड़ा है। इसके अलावा उसे शायद इस समय कोई और रास्ता भी समझ नहीं आ रहा है। असम में हेमंत बिस्व सरमा को सीएम बनाना दरअसल असम में एनआरसी समेत असमी बनाम बाहरी और हिंदू बनाम मुसलमान की राजनीति को ही आगे बढ़ाना है। इससे ये भी साफ है कि दरअसल राज्य और केंद्र की सत्ता में बैठी भाजपा को कोई और रास्ता नहीं सूझ रहा है।