ठेके पर सेना – नीलामी पर देश

कपिल शर्मा कपिल शर्मा
देश Published On :

vyangya

तो सुनो भक्तों।

प्रधानमंत्री ने आखिर अपने विश्वविख्यात चुनावी ”जुमले”, ( मैं वायदे कहना चाहता था लेकिन खुद प्रधानमंत्री के परम मित्र और देश के गृहमंत्री ने उन्हे जुमला कहा था)”सुप्रीम कोर्ट संज्ञान लें, ये मेरे नहीं बल्कि गृहमंत्री के शब्द हैं।” दो करोड़ रोज़गार को पूरा करने की और एक कदम बढ़ाया है, प्रधानमंत्री ने अपने महानतम् कार्यकाल के आठ वर्षों बाद जिस चुनावी जुमले को पूरा करने की घोषणा की, वो है देश के बेरोज़गार युवाओं को अगले कुछ एकाध साल में सेना में भर्ती करके दस लाख रोजगार देने की। ”तालियां” रोजगार की इस इस्कीम का नाम रखा गया है, ”अगनीपथ” अगनीपथ योजना में जिन युवाओं को सेना में रोजगार मिलेगा उन्हे कहा जाएगा, ”अगनीवीर”। इन अगनीवीरों को चार साल के लिए सेना में रखा जाएगा और चार साल बाद इनमें से ज्यादातर को निकाल बाहर किया जाएगा।

 

साढ़े सत्रह साल से लेकर बाईस साल तक के युवा अगनीपथ नामक योजना के अगनीवीरों में अपना नाम लिखवा सकेंगे, फिर छाती की नाप, दौड़-भाग, और बाकी सब टेस्ट वही होंगे जो सामान्य फौजी भर्ती में होता है। कुल मिलाकर कौशल वही चाहिए जो सामान्य फौजी का होता है, लेकिन तनख्वाह और पेंशन अगनीवीरों को वो मिलेगा जो प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री ने घोषित किया है। जैसे पहले साल 30,000 रुपये माहवार लेकिन हाथ में आएंगे सिर्फ 21,000 रुपये, अगले तीन सालों में ये वेतन बढ़कर क्रमशः 33,000 रुपये, 36,500 रुपये और 40,000 रुपये होगा, लेकिन हर महीने सरकार कुल वेतन का 70 प्रतिशत काट कर देगी। यानी चार साल में सरकार इन अगनीवीरों के वेतन में से कुल 5.02 लाख रुपये काट लेगी, और फिर चार साल बाद जिन अगनीवीरों की छंटनी की जाएगी, उन्हे 11.71 लाख रुपये दिए जाएंगे, कि जाओ बेट्टा, अब जी लो अपनी जिंदगी। आपकी चार साल की कमाई होगी, 23,43,160 रुपये।

अगनीवीर होने के अपने लाभ हैं। पहले लड़कों को बहुत मेहनत वगैरह करनी पड़ती थी, फौज में भर्ती होने का अपना नशा होता है, फौज में भर्ती होगी तो देशसेवा का ठप्पा तो लगेगा ही, बहुत सारी सुविधाएं और पक्का सरकारी वेतन, पेंशन आदि की सुविधा भी थी ही। इसीलिए फौज में भर्ती होते ही शादी का दबाव बढ़ जाता था, पक्की नौकरी हो, रहने-खाने-घर की सुविधा हो, साथ में आर्मी कैंटीन और मेडिकल की सुविधा होता हो तो कौन ससुर नहीं चाहेगा कि उसकी बेटी ऐसे ही घर में जाकर सुख-सुविधापूर्ण जिंदगी बसर करे। लेकिन अब शायद ये सुविधा ना हो, एक तो इक्कीस हजार रुपल्ली में घर – परिवार चलाना वैसे ही बहुत मुश्किल है, दूसरे जिसकी नौकरी का अपना कोई ठिकाना ना हो, उस लड़के को अपनी लड़की भला कौन देगा जी।

अभी तक ये नहीं पता चला कि इन अगनीवीरों को रैंक कौन सी मिलेगी, इन्हे ट्रेनिंग कौन सी दी जाएगी, क्योंकि सामान्य फौजी की तो ट्रेनिंग की दो से तीन साल की होती है, ये जब तक ट्रेनिंग पूरी करेंगे, तब तक तो विदाई समारोह का इंतजाम हो जाएगा। तीसरे ये भी नहीं बताया गया है कि जिस तरह की मेडिकल सुविधाएं, स्कूल आदि की सुविधाएं, सामान्य या स्थाई सैनिकों को मिलती हैं, वो इन्हें भी मिलेंगी या नहीं। मुझे तो लगता है कि सरकार को साथ में ये भी घोषणा कर देनी चाहिए कि भईया अगनीवीर, अपनी वर्दी और बंदूक – गोली का इंतजाम भी तुम्हें खुद ही करना होगा, क्योंकि इतना पैसा लगा रहे तुम्हारे लिए, तुम खुद के लिए थोड़ा – बहुत तो कर ही सकते हो।

हालांकि समझ तो ये भी नहीं आ रहा है कि, ”मैं देश नहीं बिकने दूंगा” का जुमला उछालने वाले, प्रधान सेवक, सेना को ठेके पर उठाने पर कैसे राजी हो गए, पर मान लीजिए इसमें कोई मामला रहा भी हो, तो भक्त लोग, ऐसी सेना के लिए घातक, देश के लिए अपमानजनक, स्कीम को डिफेंड क्यों और कैसे कर रहे हैं।

लेकिन असली मामला तो ये है कि अगनीपथ और अगनीवीर का ये जो नया तीर अतुलनीय प्रधानमंत्री ने छोड़ा है, इससे भाजपा को राजनीतिक रूप से क्या फायदा होने वाला है, या क्या फायदा हो सकता है। देश की तमाम बड़ी छोटी सेवाओं, संस्थानों को बर्बाद करने में जिस कदर सफल हमारा वाला प्रधान सेवक हुआ है, वैसी मिसाल पूरी दुनिया में मिलना मुश्किल  है। लेकिन हमारा असली सवाल या यूं कहिए कि असली चिंता अब शुरु होती है। अब तक ये सोचा जाता था कि मान लीजिए ये जो गै़र – सैन्य सेवाएं हैं, जैसे आई ए एस को संविदा वाला बना दिया, इंजिनियर, डाॅक्टर, टीचर, प्रोफेसर, वैज्ञानिक आदि-आदि सबको ठेके पर रख लिया, पक्की नौकरियां खत्म कर दीं, इसके बावजूद, लोग ये मानते थे कि भई सेना के साथ कोई छेड़-छाड़ नहीं हो सकती। लेकिन अब तो ये भी हो चुका, तो अब जो पोस्ट बचती हैं, वो हैं, जज, जिनकी नौकरियां वैसे ही असुरक्षित हैं। दूसरे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और बाकी कैबिनेट के मंत्री, तो हमारी चिंता ये है कि इन पदों को कब संविदा पदों में यानी ठेके पर दिया जा रहा है। क्योंकि तब ही तो मैं देश नहीं बिकने दूंगा वाला जुमला या वायदा पूरा होगा, और देश नीलामी पर चढ़ेगा।
बाकी जो है सो तो हइये है।
इसी बात पर चचा ग़ालिब कह मरे हैं कि,

हुई मुद्दत के ग़ालिब मर गया पर याद आता है
वो हर इक बात पे कहना के यूं होता तो क्या होता

ग़ालिक के शेरों की बाबत मुझे हमेशा लगता है कि उनमें कुछ रद्दोबदल की गुंजाइश है, पर देखते हैं….