दिल्ली में चार साल बाद मजदूरों ने डेरा डाला है। तीन दिन तक लाखों मजदूर संसद को घेरेंगे और अपनी मांगों के समर्थन में उस ज़हरीली धुंध को पीते रहेंगे, जिसके डर से राष्ट्रीय राजधानी के क्षेत्र के तमाम स्कूल बंद पड़े हैं और जो सारे राष्ट्रीय मीडिया में आतंक की तरह छाया हुआ है। गुरुवार से शुरू हुआ यह जुटान देश भर के तमाम मजदूर संगठन कर रहे हैं लेकिन इसमें सेआरएसएस से संबद्ध भारतीय मजदूर संघ नदारद है। उसने ट्रेड यूनियनों के फेडरेशन की इस कार्रवाई से खुद को अलग कर लिया था।
गुरुवार को करीब 70,000 मजदूर देश भर से दिल्ली पहुंचे और उन्होंने संसद मार्ग पर डेरा डाल दिया। आज से चार साल पहले भी एक लाख मजदूर दिल्ली आए थे और उन्हें टीवी चैनलों ने दिल्ली के सामान्य जनजीवन को अस्तव्यस्त करने वाला बताया था। इस बार हालांकि मजदूरों की यह रैली इस मायने में अलग है कि अव्वल तो दिल्ली में धरने की परंपरागत जगह जंतर-मंतर को एनजीटी के आदेश पर खत्म किया जा चुका है, दूसरे कि नोटबंदी को लागू हुए 8 नवंबर को एक साल हुआ है। इसके बाद जीएसटी लागू किया गया जिसने तमाम क्षेत्रों में रोजगारों के संकट को गहरा कर दिया और तमाम धंधे बंद हो गए।
वैसे तो पिछले दो वर्ष भी देश भर में कामगारों की महाहड़तालें हुई हैं जिनकी मीडिया ने उपेक्षा की है, लेकिन यह धरना इसलिए ऐतिहासिक है क्योंकि अव्वल तो लगातार तीन दिनों तक औसतन एक लाख किसान दिल्ली की सड़क पर मौजूद रहेंगे। दूसरे, नोटबंदी और जीएसटी के परिणामों ने इसे निर्णायक बना डाला है।
https://youtu.be/TfLSfIlL034
देश के तकरीबन हर जिले में पिछले तीन महीने से लगातार चल रहे धरना प्रदर्शनों और आंदोलनों की परिणति के रूप में इस महापड़ाव को अंजाम दिया गया है। बेरोज़गारी, धार्मिक कट्टरपंथ, आर्थिक सुस्ती, नोटबंदी और जीएसटी के प्रभावों के खिलाफ यह धरना जारी है।
1 lakh workers from across India storm Delhi for a 3-day #Mahapadav (mass sit-in) on Parliament Street.
Workers rise in rage against Modi’s all round failure to raise wages, control price rise & protect jobs, even while giving concessions to big corporates & cronies. pic.twitter.com/uNCnTdrDHM— CPI (M) (@cpimspeak) November 9, 2017