मार्गदर्शक मंडल के दरवाज़े पर पहुँचे पीएम ने कहा- ऐसी राजनीति के लिए मैं फिट नहीं!

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


 

प्रधानमंत्री मोदी की राजनीति और वर्षों से मीडिया में स्थापित प्रचारकों की खबर!

 

अमर उजाला में आज एक खबर का फ्लैग शीर्षक है, “पीएम मोदी ने सियासी चरित्र पर जताई चिन्ता, कहा, देश नहीं, चुनाव अहम …. ऐसी राजनीति के लिए मैं फिट नहीं”। इसके साथ की तस्वीर का कैप्शन है, नई दिल्ली के कनवेंशन सेंटर में मंत्रिपरिषद को संबोधित करते पीएम मोदी। नवोदय टाइम्स ने (लगभग) इसी फोटो का कैप्शन लगाया है, केंद्रीय मंत्रिपरिषद की बैठक को संबोधित करते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। यहां यह फोटो लीड के साथ है और लीड का शीर्षक है, “मंत्रियों को मोदी मंत्र”। कहा, “जनता को केंद्र के विकास कार्यों से करायें अवगत”। इसके साथ हाइलाइट किया हुआ अंश है, प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद की बैठक। कहने की जरूरत नहीं है कि अमर उजाला की मंत्रिपरिषद की बैठक की खबर बता रही है कि प्रधानमंत्री ने इस बैठक में अपना प्रचार किया। जो किया वह कितना विश्वसीय या सच है वह अलग मुद्दा है। मंत्रिपरिषद की बैठक की सबसे महत्वपूर्ण बात प्रधानमंत्री की अपनी तारीफ निश्चित रूप से खबर है। आप इसे अच्छा मानें या बुरा। यह अलग बात है कि यह संघ परिवार के एक कामयाब प्रचारक का प्रचार भी हो सकता है। पर अभी वह मुद्दा नहीं है। 

आज मेरा मुद्दा यह है कि तीन राज्यों के चुनाव और उसके बाद होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए सरकार या सत्तारूढ़ भाजपा या उसके संघ परिवार की तैयारी लगभग उसी तरीके पर चल रही है और इसमें कुछ नया नहीं है। प्रधानमंत्री अपने बारे में जो कहें, तथ्य यह है कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने जिस ढंग से प्रशासन चलाया और जो तथाकथित गुजरात मॉडल दिया उसी से प्रभावित होकर संघ परिवार ने उन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था और बिहार के उस समय के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने इसका विरोध भी किया था और बाद में जो हुआ, प्रधानमंत्री ने एक लाख 25 हजार करोड़ के पैकेज की घोषणा की और नीतिश कुमार उसे मांगने तो छोड़िये उसके बारे में बोलने लायक नहीं रहे। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री रहते ज्यादातर मुख्यमंत्री ऐसे ही रहे जो समर्थन में हों या विरोध में राज्य के लिए कुछ खास प्राप्त नहीं कर पाये। भाजपा की सरकार नहीं रही तो उसे अस्थिर करने के प्रयास चलते रहे और सरकार बदलती गिरती रही। काम क्या करती। लगभग यही हाल केंद्रीय मंत्रियों का रहा पर वह अलग मुद्दा है। खास बात यह है कि नीतिश कुमार भाजपा के साथ और विरोध में भी मुख्यमंत्री रहे। एक समय नरेंद्र मोदी के विकल्प के रूप में देखे जाने के बावजूद बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में संतुष्ट रहे और अब मोदी के विरोधी हैं। 

इस बीच नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने राज्यों की अन्य सरकारों और डबल इंजन की सरकार वाले राज्यों में क्या किया तथा डबल इंजन की सरकार बनाने के लिए क्या सब किया वह हम विस्तार से देख चुके हैं। संभव है कुछ याद न हो पर उल्लेखनीय यही है कि किसी भी तरह भाजपा की सरकार बन जाए और महाराष्ट्र में हाल में जो हुआ उसके बाद प्रधानमंत्री या भाजपा या संघ परिवार की राजनीति स्पष्ट हो गई है तो प्रधानमंत्री अपनी विशेषता बता रहे हैं जो आग लगाने वालों को कपड़ों से पहचानने का दावा करके पहले भी बता चुके हैं। उत्तर प्रदेश की डबल इंजन की सरकार ने जो काम किये हैं और मणिपुर की सरकार ने जो नहीं किये हैं वह गोदी मीडिया के बावजूद सबको समझ में आ रहा है। इसीलिए शरद पवार ने कहा है (और अखबारों ने प्रमुखता नहीं दी है) कि, “महाराष्ट्र और देश में सांप्रदायिक विभाजन की कोशिश की जा रही है। हमें उन ताकतों से लड़ने की जरूरत है जो शांति प्रिय नागरिकों में डर फैलाने का काम करती हैं …..। हमें देश में लोकतंत्र की रक्षा करने की जरूरत है।”

द टेलीग्राफ ने शरद पवार के इस कथन को अपने कोट कॉलम में छापा है और इसके साथ डबल कॉलम की एक खबर का शीर्षक है, “मणिपुर में हिन्सा पर ‘राज्य प्रायोजित’ (का) लेबल”। आप जानते हैं कि मणिपुर दो महीने से हिंसा की चपेट में हैं। 130 से ज्यादा लोग मर चुके हैं, करीब 60 हजार लोग विस्थापित हो चुके हैं। बेशक, सरकार अपनी तरह से काम कर रही है और मेरे लिये यह आश्चर्य की बात है कि गुजरात दंगे के समय जो सब हुआ उसके लिए अगर मुख्यमंत्री रहते हुए नरेन्द्र मोदी जिम्मेदार ठहराये गये और अब जब मणिपुर के मुख्यमंत्री वे नहीं हैं और प्रधानमंत्री हो गए हैं तब भी वहां की हिंसा या स्थिति के लिए उन्हें ही जिम्मेदार क्यों ठहराया जाता है या वे यह सब बोलते-पूछते क्यों नहीं हैं। यह प्रधानमंत्री की राजनीति हो या डबल इंजन का प्रशासन मेरा मुद्दा नहीं है लेकिन उनकी राजनीति या प्रशासन (जो भी है या नहीं है तो भी) का उदाहरण तो है ही। मेरे लिये खास बात यह है कि 10 साल गुजरात में और 10 साल देश में प्रशासन देने के बाद उन्हें अपने बारे में बताना पड़ रहा है और प्रचारक इसे खबर समझ रहे हैं। मणिपुर की हिंसा को राज्य प्रायोजित कहा जा रहा है वह पहले पन्ने पर नहीं है। 

अमर उजाला की खबर और प्रधानमंत्री के दावे को माना जाये तो 10 साल के उनके शासन का हासिल यह भी है कि अपने दूसरे कार्यकाल में उन्होंने कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटा दिया था जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई और सुप्रीम कोर्ट अपनी व्यस्तता व अन्य  कारणों से सुन नहीं पाया और अब 11 जून से पांच सदस्यों की पीठ इसपर सुनवाई करेगी। मेरा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट में आम आदमी से संबंधित कई मामले लंबित हैं तो सरकार को ऐसे काम क्यों करने चाहिये कि सुप्रीम कोर्ट का काम बढ़े और अगर ऐसे काम किये ही जाने हैं जिनपर सुनवाई जरूरी है तो इसकी व्यवस्था होनी चहिए कि समय पर न्याय मिले। इससे पहले महाराष्ट्र में राज्यपाल की भूमिका पर पांच सदस्यों की पीठ सुनवाई कर चुकी है और चूंकि फैसले में देरी हो गई तथा मुख्यमंत्री स्थिति को झेल नहीं पाये इसलिए इस्तीफा दे दिया और इस कारण राज्य में तकनीकी रूप से एक अवैध सरकार चलती रही। दूसरी ओर इस अनैतिक सरकार को मजबूत करने के लिए भाजपा ने अब एनसीपी में दो फाड़ करवा दिया है। इसमें एक राज्यपाल की बलि भी हुई पर यही एंटायर पॉलिटिकल साइंस है। 

दूसरी ओर, अनुच्छेद 370 का मामला आप जानते हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि मामला पूरी तरह राजनीतिक है और हटाये जाने से देश को क्या फायदा हुआ यह पांच साल में न बताया गया है और न आम लोगों को समझ में आया है। बात इतनी ही नहीं है। करीब दस साल सरकार चलाने के बाद चुनाव से पहले रक्षा मंत्री ने पाक अधिकृत कश्मीर का मामला छेड़ दिया है और सरकार ने यूनिफॉर्म सिविल कोड का। कहने की जरूरत नहीं है कि नागरिक प्रशासन को दुरुस्त करने के कई काम छोड़कर सरकार इसमें उलझ रही है और सबको उलझा रही है और इसलिए आरोप लग रहा है कि मकसद लोगों को सांप्रदायिक आधार पर बांटना है। दूसरी ओर, प्रधानमंत्री का ‘मन की बात’ करना जारी है। 

दिलचस्प यह है कि एक तरफ 20 साल देश में सरकार चलाने और राज्य व केंद्र में प्रशासन का नेतृत्व करने के बाद प्रधानमंत्री ने कहा, ‘एक घर दो कानूनों से नहीं चल पाएगा’। आप जानते हैं कि चुनाव वाले राज्य मध्य प्रदेश में लंबे समय से शासन कर रही भाजपा की हालत इस बार पतली लग रही है और प्रधानमंत्री ने 27 जून 2023 को राजधानी भोपाल में ‘मेरा बूथ सबसे मजबूत’ कार्यक्रम के तहत कार्यकर्ताओं को संबोधित किया था। इसी में उन्होंने कहा था, “एक घर दो कानूनों से नहीं चल पाएगा, ठीक उसी तरह से एक देश में दो कानून नहीं हो सकते हैं”। यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि, “यूनिफार्म सिविल कोड के नाम पर लोगों को भड़काया जा रहा है।” उन्होंने इसे वोट बैंक की राजनीति कहा है जबकि 10 साल सत्ता में रहकर अब इस मुद्दे पर बोलना ही वोट बैंक की राजनीति है। आप जानते हैं कि प्रधानमंत्री दूसरों की तुष्टीकरण की राजनीति के मुकाबले संतुष्टिकरण की राजनीति करते हैं जिसे कुछ लोग दुष्टीकरण की राजनीति कहते हैं। पर जो है सामने है और उसमें उनका यह दावा भी। पूरा जीवन राजनीति में लगा देने और भारत की राजनीति को खराब करके रख देने तथा अपने ही बनाए मार्ग दर्शक मंडल में जाने की उम्र में पहुंच कर कह रहे हैं, ‘ऐसी राजनीति के लिए मैं फिट नहीं’। 

प्रधानमंत्री के उपरोक्त दावों के बावजूद यूनिफॉर्म सिविल कोड की राजनीति यह है कि भाजपा सांसद सुशील मोदी ने आदिवासियों को यूसीसी से बाहर रखने की वकालत की है। अब यह हो या नहीं, यूसीसी लागू हो या नहीं, भाजपा की ओर से आदिवासियों को संतुष्ट करने या लॉलीपॉप दिखाने का काम हो गया। दूसरी पार्टी ऐसा करे तो नरेन्द्र मोदी तुष्टिकरण कहते हैं पर वे तो आदिवासियों के सबसे बड़े शुभचिन्तक हैं और आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बनाया है। आप जानते हैं कि आदिवासी बहुल झारखंड में भाजपा की सरकार नहीं है, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में चुनाव होने हैं और आदिवासी वोट की जरूरत है। द टेलीग्राफ ने आज इस खबर को लीड बनाया है। शीर्षक है, “यूसीसी लेकिन एक अपवाद के साथ”। इस खबर का फ्लैग शीर्षक है, “भाजपा नेता चाहते हैं कि आदिवासियों को अलग रखा जाए।” आप जानते हैं कि भाजपा को दिक्कत सिर्फ मुसलमानों से है और उन्हीं को कसना है तथा आबादी में इनका प्रतिशत हिन्दुओं के बाद सबसे ज्यादा होने के बावजूद भाजपा में इनकी संख्या नहीं के बराबर है।      

 

ऐसे में आप मान लीजिये कि यूसीसी का मुद्दा देश सेवा देशहित में उठाया गया है और सरकार चाहती है कि जनता देश सेवियों के उनके परिवार को फिर सरकार चलाने के लिए चुने ताकि वे हिन्दू राष्ट्र के अपने मुद्दे पर काम करते रहें और प्रतिक्रियास्वरूप उठने वाली खालिस्तान के मांग को पूरी ताकत से दबाने के लिए उनके पास सत्ता की ताकत भी हो। हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने की एक खबर का शीर्षक हिन्दी में कुछ इस तरह होगा, “भारत ने कनाडा से खालिस्तान समर्थक रैली पर अपनी चिन्ता जताई।” निश्चित रूप से यह चिन्ता की बात है लेकिन इसे कम करने के लिए हिन्दू-हिन्दुत्व कम करना होगा या दुनिया भर में कहीं भी खालिस्तान आंदोलन को रोकने में भारत सरकार का लगना – यह मैं नहीं समझ पा रहा हूं। न अपनी राजनीतिक बुद्धि से और ना सामान्य समझ से।  

ऐसे में ध्यान बांटने के लिए पीओके का मुद्दा सबसे जरूरी है। लगभग उतना ही कि जितना रफाल विमान के लिए नींबू मिर्ची का टोटका था। और इसीलए आज के अखबारों में खबर है, तेजस्वी, लालू, राबड़ी के खिलाफ आरोपपत्र, एके इंफोसिस्टम्स और कई बिचौलियों को सीबीआई ने किया नामजद (नवोदय टाइम्स)। यह महाराष्ट्र में ऑपरेशन लोटस की दूसरी कामयाबी के बाद की खबर है। अमर उजाला ने इसे टॉप पर चार कॉलम में छापा है। शीर्षक है, सीबीआई की दूसरी चार्जशीट …. जमीन के बदले नौकरी घोटाले में बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी भी आरोपी 

नरेन्द्र मोदी जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं और जो प्रशासन चला रहे हैं उसमें बलात्कार और यौन शोषण के आरोपियों को संरक्षण और अदालत से राहत मिलना ही शामिल नहीं है, सुप्रीम कोर्ट के कहने के बावजूद संबंधित बेंच में सुनवाई नहीं होने देना भी है। बिल्किस बानो मामले में आरोपियों को छोड़ने का मामला सुप्रीम कोर्ट में समय पर नहीं सुना जा सका। मार-पीट के आरोपी को दिल्ली का उपराज्यपाल बना दिया जाना और उनके इस पद पर रहने तक कोई 20 साल पुराने मुकदमे की सुनवाई में राहत मिल जाना शामिल हैं। ऐसे मनोनीत उपराज्यपाल को जो सरकारी सुविधाएं, वेतन, भत्ते गाड़ियां आदि मिलती हैं उसके बावजूद भाजपा को मुख्यमंत्री के ‘शीश महल’ पर तो एतराज है ही एलजी साब जनता को मिलने वाली सुविधाओं पर भी एतराज कर चुके हैं। इसी क्रम में आप जानते हैं कि एलजी के अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा हारने के बाद केंद्र सरकार उनके पक्ष में अध्यादेश ले आई है और ऐसे एलजी के बारे में आज नवोदय टाइम्स में पहले पन्ने पर खबर है, एलजी ने दिल्ली सरकार में काम करने वाले 400 निजी लोगों की सेवाएं समाप्त कीं। इसके साथ उप शीर्षक है, आप सरकार ने विभिन्न विभागों व एजेंसियों में इनकी नियुक्ति फेलो, सलाहकार, विशेषज्ञ व वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी के रूप में की थी। इसके साथ तीन बुलेट प्वाइंट हाईलाइट हैं 1) आरक्षण के संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन किया 2) अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति,ओबीसी को संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया तथा 3) योग्यता और अनुभव को पूरा किये बिना पिछले दरवाजे से प्रवेश। यह स्थिति तब है जब दिल्ली सरकार के लिए उसके मंत्रियों में सबसे अच्छा काम करने वाले मंत्री जेल में हैं और अब स्पष्ट हो चुका है कि वे भाजपा में शामिल हो गए होते तो शायद ऐसा नहीं होता। 

ऐसी हालत में अमर उजाला में टॉप पर चार कॉलम में एक और खबर आम आदमी पार्टी तथा उसकी सरकार के खिलाफ है। खबर का शीर्षक है, सुप्रीम कोर्ट नाराज …. आरआरटीएस के लिए फंड नहीं  विज्ञापनों पर कितने खर्च किये बताये दिल्ली सरकारदिल्ली सरकार ने कहा है कि उसके पास आरआरटीएस परियोजना के लिए पैसे नहीं हैं उसे जीएसटी क्षतिपूर्ति नहीं प्राप्त हुई है। दूसरी ओर भाजपा ने आरोप लगाया है कि उसने प्रचार पर पैसे खर्च कर दिये हैं। सत्य चाहे जो हो, अखबारों में खबरें दिलचस्प हैं और आम आदमी पार्टी पर अगर प्रचार पर पैसे खर्चने के आरोप हैं तो मणिपुर सरकार पर हिंसा रोकने की कोशिश नहीं करने का आरोप है। सुप्रीम कोर्ट ने उससे भी कानून व्यवस्था की ताजा स्थिति पर रिपोर्ट मांगी है लेकिन उसकी खबर को इतनी प्रमुखता नहीं मिली है। भाजपा के प्रचार (और ईडी के डर व छापों) ने मीडिया का जो हाल किया है वह अलग मुद्दा है। हालांकि इसी का असर है कि भाजपा को वाशिंग मशीन और सीबीआई, ईडी व आयकर (आईटी) वालों को डिटर्जेंट कहा जा रहा है।   

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

 


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