कोइलवर: यहां 17 किलोमीटर चलने के लिए एक दिन भी कम है, लेकिन चुनावी मुद्दे अपनी जगह हैं



यहां चुनाव भले पांच साल में एक बार आता है, मगर जाम रोज की कहानी है. यहां 17 किमी की दूरी तय करने में कई दफा दो-दो दिन लग जाते हैं. रोज-रोज के महाजाम ने इस कस्बे के जीवन को तबाह कर रखा है. कारोबार ठप पड़ने लगे हैं, बच्चे स्कूल जाने से कतराते हैं. मुख्‍यमंत्री खुद इस महाजाम की वजह को समझने के लिए हवाई सर्वे कर चुके हैं, मगर कोई नतीजा नहीं निकला. यहां एक पुल बना भी, तो उसने इस नासूर को लाइलाज बीमारी में तब्‍दील कर दिया.

यह कहानी आरा लोकसभा क्षेत्र के कोइलवर इलाके की है, जहां इन दिनों जाने-माने नौकरशाह भाजपा के आरके सिंह और भाकपा (माले) के राजू यादव चुनावी मैदान में जोर आजमाइश में जुटे हैं. अफसोस है कि कोइलवर का यह स्‍थायी महाजाम दोनों में से किसी के चुनावी सिलेबस में शामिल नहीं है.

‘’हम पिछले तीन दिन से जाम में फंसे हैं और न जाने कितने दिनों तक जाम में फंसे रहेंगे, न खाने का पता हैं, न शौच का ठिकाना. गाड़ी में खाना बनाते हैं और खाते हैं, यही रोज की कहानी हो चली हैं’’- भोजपुर जिले के कोइलवर के पास जाम में फंसे एक ट्रक ड्राइवर ने जब यह बताया तो पहले तो लगा कि यहां जाम की कोई आकस्मिक स्थिति पैदा हो गयी है. मगर जब एक स्थानीय पत्रकार ने यह कहा कि यह तो यहां की रोज की कहानी है, तब हमें स्थिति की भयावहता का अंदाजा हुआ.

उस रोज जब मैं कोइलवर में था तो दिन के लगभग 12 बज रहे थे, स्थानीय लोगों और ट्रक चालकों ने बताया- ‘’अभी तो कुछ भी नही है, अगर जाम की भयावहता को देखना है कि शाम को आकर देखिए’’. यहां जाम नहीं, महाजाम लगता हैं. कई दिनों तक यातायात ठप रहता है.

महज दो साल पहले नवनिर्मित आरा-छपरा पुल से भोजपुर और छपरा मुख्यालय दूरी के मामले में बेशक सबसे नजदीकी पड़ोसी जिला बन गया पर कुछ दिनों में ही यह पुल जाम का नया कारण बन गया है. स्थिति यह हैं कि दोनों मुख्यालयों के बीच की दूरी महज 40 किलोमीटर की है लेकिन इसे तय करने में दो से तीन दिन लग जा रहे हैं. बालू खनन के लिए इस पुल से होकर उत्तर बिहार और पूर्वी यूपी के हिस्सों से इतनी बड़ी संख्या में ट्रक आ रहे हैं कि कोइलवर पुल पर पहले से लगते आ रहे जाम में और इजाफा हुआ है.

कई ग्रामीणों का कहना था कि बिना किसी तैयारी के सरकार ने आनन-फानन में छपरा-आरा पुल का उद्घाटन कर दिया, जिसका यह नतीजा है. ऐसा सिर्फ इसलिए किया गया कि बालू माफिया को फायदा मिल सके क्योंकि इस सड़क से अस्सी प्रतिशत गाड़ियां बालू की आती-जाती हैं.

ट्रक ड्राइवर संतोष चौहान का कहना हैं कि 9 मई को वे भाटपार रानी से चले थे कोइलवर के लिए. 13 मई हो गया, अभी यहीं खड़े हैं. क्या मालूम अभी कितना दिन और लगेगा. कोई गारंटी नहीं है, खाना-पीना गाड़ी में ही बनाते खाते हैं, एक ट्रिप में लगभग एक सप्ताह लग जाता है.

पटना से आने वाली और छपरा समेत पूर्वी यूपी और उत्तर बिहार जाने वाली बड़ी गाडियां पुल से निकलकर चांदी, कुल्हरिया रेलवे स्टेशन, सकड्डी होते हुए आरा पथ पर निकलती हैं, जहां से वापस सकड्डी से कोइलवर  मनभावन होटल लौट कर आती हैं और कोइलवर–डोरीगंज लिंक हाइवे पर लगभग 17 किलोमीटर की दूरी गाड़ियों को तय करना पड़ती है. यह दूरी तय करने में लगभग दो दिन लग जाता है जबकि आरा, बक्सर, सासाराम की ओर जाने वाले बडे वाहन सकड्डी से ही आरा की ओर मुड़ जाते हैं.

अगर इस नो एंट्री को खत्म कर पुल से कोइलवर की तरफ सड़क के किनारे दोनो तरफ फ्लेंक भर दिए जाए तो इन  गाड़ियों को दो से ढ़ाई किलोमीटर की दूरी तय करा कर कोइलवर–डोरीगंज लिंक हाइवे पर भेजा जा सकता है.

नो एंट्री की वजह से जिन–जिन गांवों से ये वाहन गुजरते हैं, वहां का आम जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हो गया है. धूल की वजह से खेती चौपट हो गयी है, लोग बीमारियों के चपेट में आ रहे हैं. बच्चे जाम की वजह से स्कूल नही जा पा रहे हैं,  कब कोई दुर्घटना का शिकार हो जाए  कहना मुश्किल है.  चांदी से सकड्डी तक लगभग दर्जन भर गांव इससे प्रभावित हैं.

कोइलवर और बबूरा के बीच में जमालपुर बाजार पड़ता है. हाइवे बनने से पहले इस बाजार में काफी रौनक हुआ करती थी पर आज बाजार वीरान पड़ा है. यहां लगभग 400 से 450 दुकानें हैं, मगर यहां कोई भी ग्राहक नही आता. इसकी मुख्य वजह है दुकान से सटे हाइवे का होना और जाम की समस्या. आज यहां के दुकानदारों के रोजगार पर संकट मंडरा रहा है.

स्थानीय दुकानदार अलखनाथ सिंह का कहना है- ‘’हमारे पास ग्राहक नहीं आ पाते. पहले जितनी दुकानदारी हो पाती थी, उसकी तुलना में आज कुछ भी नहीं हो पाती. हम लोग काफी परेशान हैं, फिलहाल जाम से निजात मिलने की कोई संभावना नहीं दिख रही’’.

जमालपुर गांव की शोभा देवी का कहना है कि हाइवे के किनारे होने की वजह से वे लोग काफी भयभीत रहते हैं. ट्रक वाले रात भर इतना ओवरटेक करते हैं कि लगता है कहीं गाड़ी घर में न घुस जाए. जाम का कोई ठिकाना नहीं है, कभी दो घंटे भी लगता है और कभी दो दिन भी. दो रोज पहले दो दिन तक जाम था. इस वजह से बबूरा से लेकर कोइलवर के बीच कम से कम बीस लोगों की दुर्घटना में मौत हो चुकी है.

कोइलवर थाना के एक अधिकारी का कहना हैं कि रोज लगभग 14 हजार अप-डाउन गाड़ियां गुजरती हैं. जब संख्या बढ़ने लगती है तो जाम लगना शुरू हो जाता है. कहीं एक ट्रक खराब हो जाता है तो जाम की समस्या हो जाती है- आरा-छपरा पुल जाम होने से भी और कभी-कभी ओवरटेक की वजह भी. यातायात को सुचारु बनाने के किए  पांच प्वाइंट पर लगभग 30 से 35 पुलिसकर्मी तैनात किये जाते हैं. फिलहाल चुनाव की वजह से इन्हें यहां से हटा लिया गया है.

डीटीओ माधव कुमार सिंह जाम को समस्या मानने से ही इनकार कर देते हैं. वे कहते हैं- ‘’कभी-कभी छोटा-मोटा जाम लगता है छपरा की तरफ से और छपरा-आरा पुल जाम हो जाने से जाम लगता है’’.

इस महाजाम की वजह को समझने के लिए करीब छह माह पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आरा-छपरा पुल समेत इस इलाके का एरियल सर्वे किया था. इसी से समझ में आता है कि डीटीओ की बात कितनी गलत है. हवाई सर्वे के के बाद पटना के वरीय अफसरों ने पूरे इलाके का दौरा कर भोजपुर और सारण के वरीय पुलिस व प्रशासनिक अफसरों के साथ घंटों मंथन किया. इस मंथन से कुछ नहीं निकला.


संजीत भारती बिहार स्थित वरिष्‍ठ पत्रकार हैं