यह प्रेस कॉन्‍फेंस प्रधानमंत्री मोदी की नहीं, उनकी उपस्थिति में दरअसल भाजपा अध्‍यक्ष की ही थी

Mediavigil Desk
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आज दिन भर मीडिया और सोशल मीडिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘’पांच साल में पहली’’ प्रेस कॉन्‍फ्रेंस की खबर छायी रही। अब तक टीका-टिप्‍पणियां जारी हैं। सवाल पूछे जा रहे हैं कि उन्‍होंने किसी सवाल का जवाब क्‍यों नहीं दिया। ऐसे में यह बताया जाना ज़रूरी है कि आज दिल्‍ली के भारतीय जनता पार्टी मुख्‍यालय में हुई प्रेस कॉन्‍फ्रेंस प्रधानमंत्री की नहीं थी, पार्टी अध्‍यक्ष अमित शाह की थी।

दिल्‍ली के मीडिया प्रतिष्‍ठानों में गुरुवार को जो प्रेस कॉन्‍फ्रेंस का आमंत्रण आया था उसमें बताया गया था कि अमित शाह पार्टी मुख्‍यालय में पत्रकारों को संबोधित करेंगे। यह आमंत्रण केवल भाजपा बीट कवर करने वाले पत्रकारों को ही नहीं गया था बल्कि कुछ विशेष निमंत्रण भी भेजे गए थे, जिसका पता इस बात से चलता है कि प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में आजतक की अंजना ओम कश्‍यप भी मौजूद थीं और उन्‍होंने भी सवाल पूछा हालांकि वे भाजपा बीट कवर नहीं करती हैं, ऐंकर हैं।

आम तौर से यह रवायत है कि एक दिन पहले भेजे जाने वाले प्रेस कॉन्‍फ्रेंस के आमंत्रण का एक रिमाइंडर अगली सुबह भेजा जाता है। एक वरिष्‍ठ पत्रकार के मुताबिक शुक्रवार सुबह यह रिमाइंडर नहीं आया। दिन में करीब बारह बजे के आसपास जब संसद के आसपास लुटियन क्षेत्र में पीएम का रूट लगने लगा, तब पत्रकारों में चर्चा शुरू हुई कि शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पार्टी मुख्‍यालय जा रहे हैं। एक पत्रकार ने इस संबंध में ट्वीट भी किया, हालांकि भाजपा की ओर से ऐसी कोई सूचना नहीं थी।

चूंकि आधिकारिक आमंत्रण अमित शाह की प्रेस कॉन्‍फ्रेंस का था और पार्टी मुख्‍यालय में हुआ था, लिहाजा यह प्रेस कॉन्‍फ्रेंस तकनीकी रूप से पार्टी अध्‍यक्ष की ही थी, प्रधानमंत्री की नहीं। जिस तरीके से सभी दलों की प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में और नेता भी प्रवक्‍ता के साथ बैठते हैं, वैसे ही इस कॉन्‍फ्रेंस में भी मंच पर कई नेता बैठे थे। इनके बीच प्रधानमंत्री की उपस्थिति एक अपवाद थी और विशिष्‍ट भी, लिहाजा उन्‍होंने एक संक्षिप्‍त वक्‍तव्‍य देकर सवाल-जवाब की जिम्‍मेदारी पार्टी अध्‍यक्ष पर छोड़ दी।

भाजपा के ट्विटर हैंडिल से प्रेस कॉन्‍फ्रेंस का जो वीडियो ट्वीट किया गया है, उसमें भी ही लिखा है कि ‘’भाजपा मुख्‍यालय में पीएम श्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में अमित शाह की प्रेस कॉन्‍फ्रेंस’’। शाम को भाजपा के सेंट्रल मीडिया डिपार्टमेंट से आई प्रेस विज्ञप्ति में भी लिखा है ‘’भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह की प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में उनके दिए गए भाषण के मुख्‍य बिंदु संलग्‍न हैं’’।

इस विज्ञप्ति में चुनाव प्रचार से संबंधित जो तीन पीडीएफ फाइलें भेजी गई हैं उन्‍हें नीचे देखा जा सकता है:

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Sangthan rachna

कायदे से यहां प्रधानमंत्री पार्टी के मुख्‍यालय में पार्टी के एक सदस्‍य के बतौर उपस्थित थे, प्रधानमंत्री के बतौर नहीं। याद करें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की प्रेस कॉन्‍फ्रेंस जो दिल्‍ली के विज्ञान भवन में हुई थी। अगर प्रधानमंत्री को प्रेस कॉन्‍फ्रेंस करनी होती तो इसकी सूचना पहले औपचारिक रूप से दी जाती और आयोजन स्‍थल पार्टी मुख्‍यालय नहीं बल्कि नेशनल मीडिया सेंटर या कोई अन्‍य न्‍यूट्रल जगह होती।

जहां तक सवाल-जवाब की बात है, तो उन पत्रकारों के नाम पहले से तय थे जिन्‍हें सवाल पूछने का मौका दिया जाना था। सभागार में पत्रकारों और फोटोग्राफरों आदि को मिलाकर कोई डेढ़ सौ लोग रहे होंगे लेकिन सवाल पूछने का मौका केवल दर्जन भर लोगों को दिया गया। एक-एक कर नाम पुकारे जा रहे थे और उक्‍त पत्रकार सवाल पूछ रहा था। दो मौकों पर सवाल प्रधानमंत्री को संबोधित थे। दोनों बार प्रधानमंत्री ने अमित शाह की ओर जवाब के लिए इशारा किया। अंजना ओम कश्‍यप के सवाल पर मोदी ने शाह की ओर इशारा करते हुए कहा कि पार्टी अध्‍यक्ष ही सब कुछ हैं। यह अपने आप में इस बात का इकलौता साक्ष्‍य है कि पार्टी मुख्‍यालय में हो रही प्रेस कॉन्‍फ्रेंस दरअसल पार्टी अध्‍यक्ष की थी, प्रधानमंत्री की नहीं।

एक बात जो गौर करने वाली रही वो ये कि जिन पत्रकारों का नाम सवाल पूछने के लिए बुलाया गया, उनमें ज्‍यादातर भाजपा बीट कवर करने वाले पत्रकार थे और निजी विचारों में भी वे भाजपा समर्थक ही थे। कॉन्‍फ्रेंस में मौजूद एक वरिष्‍ठ पत्रकार ने बताया कि ऐसा संभव ही नहीं है कि आप अचानक से वहां हाथ उठाकर सवाल पूछ दें, सब कुछ पहले से तय होता है। अब यह नहीं पता कि सवाल भी पहले से तय थे या नहीं, लेकिन पत्रकारों के नाम बेशक पहले से तय थे।

प्रधानमंत्री का वक्‍तव्‍य उन्‍हीं के मुताबिक दरअसल धन्‍यवाद ज्ञापन था, जिसे आम तौर से कार्यक्रम के अंत में दिया जाने वाला वोट ऑफ थैंक्‍स कहते हैं। उन्‍होंने कहा- मैं आप सब को धन्‍यवाद देने आया हूं। जाहिर है, यह न तो अपने कार्यकाल पर कोई सफाई थी और न ही कोई घोषणा, बल्कि परंपरा से हटकर दिया गया एक वक्‍तव्‍य था जिसमें सवाल-जवाब की गुंजाइश तकनीकी तौर पर थी ही नहीं। इसीलिए सवाल न लेने के संबंध में प्रधानमंत्री की आलोचना का कोई मतलब नहीं बनता।

आज की घटना कुल मिलाकर प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी नाम के एक भाजपा कार्यकर्ता की गेस्‍ट अपियरेंस कही जा सकती है। इसे इसी रूप में लिया जाना चाहिए। न तो यह प्रधानमंत्री की प्रेस कॉन्‍फ्रेंस थी और न ही इसमें कुछ ऐतिहासिक था।

पांच साल में प्रधानमंत्री ने अब तक कोई प्रेस कॉन्‍फ्रेंस नहीं की है, सच यही है।


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