महबूबा के आँसू और कश्मीर के तंदूर में टीआरपी की रोटी सेंकते ‘देशद्रोही’ चैनल !

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क़रीब एक महीने पहले (10 जनवरी 2018)  ख़बर छपी थी कि जम्मू कश्मीर के लिए नियुक्त किए गए केंद्र सरकार के विशेष प्रतिनिधि दिनेश्वर शर्मा चैनलों के रुख से बहुत परेशान हैं। उन्होंने गृहमंत्री राजनाथ सिंह से विशेष आग्रह किया है कि वे ऐसे कुछ न्यूज़ चैनलों के अधिकारियों के साथ मीटिंग करें और उन्हें कश्मीर के ख़िलाफ़ ज़हरीले प्रचार से बाज़ आने को चेताएँ।

सूत्रों के हवाले से यह भी कहा गया था कि कम से कम चार चैनल ऐसे हैं जो लगातार कश्मीर घाटी को लेकर बढ़ा-चढ़ाकर ऐसी ख़बरें प्रसारित करते हैं जो कश्मीर में शांति लाने की केंद्र की कोशिश को बेमानी बनाती हैं।

और आज यानी 13 फ़रवरी के अख़बारों में जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती का बयान छपा है। उन्होंने कल (12 फ़रवरी) बजट सत्र के अंतिम दिन अपने भाषण में बेहद तक़लीफ़ के चैनलों के रवैये पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि वे ‘देशद्रोही’ कहे जाने का ख़तरा उठाते हुए कह रही हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत के अलावा कोई उपाय नहीं है। हमनें बहुत युद्ध कर लिए और उन्हें जीते भी लेकिन कोई हल नहीं निकला।

महबूबा ने ‘देशद्रोही कहे जाने की आशंका’  सीधे न्यूज़ चैनलों को ध्यान में रखते हुए जताई जो रात दिन ‘देशभक्त बनाम देशद्रोही’ का उन्माद पैदा करते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि टी.वी.चैनल कश्मीर के तंदूर में टीआरपी की रोटियाँ सेंक रहे हैं। महूबूबा ने कहा-

“कुछ टीवी चैनल ऐसा माहौल बना रहे हैं जहाँ वार्ता के बारे में बात करना भी देशद्रोह हो गया है। वे बहस के नाम पर कश्मीर के कुछ ऐसे लोगों को बैठा लेते हैं जिन्हें उनके मुहल्ले में भी कोई नहीं जानता। उन्हें चुना ही इसलिए जाता है कि वे भारत के ख़िलाफ़ गंदी ज़बान का इस्तेमाल करते हैं। उनका जवाब देने के लिए भी ऐसे ही लोगों को बैठाया जाता है। ”

महबूबा ने यह पहली बार नहीं कहा। पिछले साल जुलाई में दिल्ली स्थित थिंक टैंक BRIEF द्वारा आयोजित सेमिनार “अंडरस्टैंडिंग कश्मीर” में भी उन्होंने कहा था कि-

“मुझे दुख है कि दिल्ली स्थित कुछ न्यूज़ ऐंकर जिस तरह के भारत की बात कर रहे हैं, वह वैसा भारत नहीं जिसे मैं जानती थी । वे कश्मीर की बेहद ग़लत तस्वीर पेश करते हैं …. जब मैं उस तरफ़ (पाकिस्तान) के दाढ़ीवालों और इस तरफ़ के मूँछ वालों को टीवी पर फेफड़े फाड़कर चीखते देखती हूँ तो यही लगता है कि वे भारत और पाकिस्तान के बीच हुई लड़ाइयों से जुड़ी कुँठा निकाल रहे हैं… ”

दिल्ली और नोएडा के सुरक्षित वातानुकूलित माहौल में बैठे चैनल संपादकों के लिए बहुत आसान है ‘देशभक्ति बनाम देशद्रोह’ का मजमा लगाना, लेकिन उनका हर कार्यक्रम कश्मीर को भारत से थोड़ा और दूर ले जाता है। यह संयोग नहीं कि चैनलों के लिए कश्मीर का मतलब सिर्फ़ सेना और आतंकवादी हैं। वे भूल जाते हैं कि कश्मीर में भी  जीते-जागते इंसान रहते हैं जिनकी तक़लीफ़ें किसी भी ख़बरिया चैनल के लिए विषय होनी चाहिए। लेकिन वे सिर्फ़ ज़हर और उन्माद फैला रहे हैं। अगर देश का मतलब कश्मीर समेत देश के लोग भी हैं, तो ये चैनल ही असल देशद्रोही  हैं !

लेकिन महबूबा मुफ़्ती और दिनेश्वर शर्मा की बातें अर्धसत्य ही हैं। केवल संपादकों या कुछ अगियाबैताल ऐंकरों को इस समस्या के लिए निशाना बनाना ठीक नहीं होगा। राष्ट्र की वास्तविक एकता की राह में बाधा की तरह खड़े ये लोग दरअसल पूँजी के प्यादे हैं। वे जिस कंपनी में काम करते हैं, वहाँ उका अवतार नहीं हुआ है। उन्हें चुना गया है और जो काम वे कर रहे हैं, मालिक उनसे वही काम लेना चाहता है। वरना ऐसे एक भी बेहूदे शो के बाद ऐंकर को ‘ऑफ़ एयर’ कर दिया जाता।

कहीं ऐसा तो नहीं कि भारतीय मीडिया पर क़ब्ज़ा कर चुके पूँजी के प्रेतों को कश्मीर घाटी में सड़ी लाशों का ढेर ही चाहिए। वरना केंद्र की नीतियों का आँख मूँद कर समर्थन करने वाले चैनल कश्मीर के मुद्दे पर केंद्र के विशेष दूत की ही राह में रोड़ा क्यों डालते ? या फिर केंद्र की भी वास्तविक इच्छा भी यही है। किसी को पता है कि चैनलों को चेताने के लिए गृहमंत्री राजनाथ सिंह से की गई विशेष दूत की गुज़ारिश का आख़िर हुआ क्या ?

 

.बर्बरीक