भारत के ओडिशा में नियमगिरी के आदिवासियों के हाथों एक बार बड़ी हार का स्वाद चख चुकी अनिल अग्रवाल की बहुराष्ट्रीय कंपनी वेदांता को अबकी ज़ाम्बिया के ग्रामीणों से झटका लगा है और लंदन स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध यह विशालकाय कंपनी लंदन की ही अदालत में मुकदमा हार गई है।
वेदांता अपनी अनुषंगी कंपनी कोंकोला कॉपर माइंस (केसीएम) के माध्यम से ज़ाम्बिया में खदानें चलाती है। परियोजना स्थल के गांव वालों का मानना था कि चांगा कॉपर खदानों से होने वाले प्रदूषण के कारण उनकी आजीविका और ज़मीन तबाह हो गई है। पिछले मई में ज़ाम्बिया के उच्च न्यायालय के एक जज ने फैसला दिया था कि 1826 गांववासी प्रदूषण के खिलाफ लंदन की अदालत में अपना दावा ठोक सकते हैं।
वेदांता ने इस फैसले को लंदन की अदालत में चुनौती दी थी जिसे वह हार चुकी है। शुक्रवार को गांववासियों को उनकी कानूनी कार्यवाही से रोकने के लिए वेदांता के प्रयासों पर पानी फैरते हुए लंदन की अदालत ने आदेश दिया है कि करीब 2000 ज़ाम्बियावासी वेदांता के ऊपर लंदन की अदालत में मुकदमा ठोक कर दावा कर सकते हैं।
वेदांता के खिलाफ़ आदिवासियों के आंदोलन के मशहूर कार्यकर्ता समरेंद्र दास ने इस फैसले पर खुशी जताते हुए शुक्रवार की रात अपनी फेसबुक दीवार पर संदेश लिखा।
इस फैसले ने एक बार फिर विदेश में उसके अनुषंगियों की कार्रवाइयों के मामले में वेदांता को शर्मसार किया है और बहुत संभव है कि उसे ज़ाम्बिया में प्रदूषण फैलाने और जिंदगियां तबाह करने का दोषी मान लिया जाए।
गौरतलब है कि वेदांता कंपनी ओडिशा की नियमगिरी की पहाडि़यों में बॉक्साइट का खनन करना चाहती थी जहां करीब 10,000 डोंगरिया कोंढ और कुटिया कोंढ नाम के दुर्लभ आदिवासी रहते हैं। भारत की सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर ग्राम सभा बुलाने का फैसला दिया। ग्राम सभा की सुनवाइयों में नियमगिरी के आदिवासियों ने एक स्वर में वेदांता के खनन को नकार दिया था, जिसके बाद से वहां खनन का काम शुरू ही नहीं हो सका है।
यह कंपनी पर्यावरण और आजीविका से खिलवाड़ करने के मामले में दुनिया भर में बदनाम है। इसके मालिक अनिल अग्रवाल नाम के भारतीय हैं लेकिन यह लंदन स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड है।