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क्या मज़दूरी बढ़ाने की माँग पर कोई मुख्यमंत्री नौकरी खा जाने की धमकी दे सकता है? आमतौर पर मुख्यमंत्री स्तर का राजनेता सार्वजनिक रूप से ऐसा कुछ नहीं करता जिससे उसकी छवि ‘मज़दूर विरोधी’ बने। लेकिन, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपने क्रोध पर काबू नहीं है। ख़ासतौर पर जब कोई उनका चुनावी वादा याद दिलाए।
गोरखपुर में 11 जून को ऐसा ही मंज़र दिखा। योगी आदित्यनाथ गोरखनाथ मंदिर में अपना जनता दरबार सजाए हुए थे जहाँ “ऑल इंडिया आशा बहू कार्यकर्ता कल्याण सेवा” की राष्ट्रीय अध्यक्ष चंदा यादव के नेतृत्व में आशाकर्मी उन्हें ज्ञापन देने पहुँचीं। वे मानदेय में बढ़ोतरी की माँग क रही थीं। यह योगी आदित्यनाथ का चुनावी वादा भी था। लेकिन सहानुभूति जताने के बजाय योगी आदित्यनाथ भड़क उठे। उन्होंने नराज़गी जताते हुए यह भी चेताया कि सेवा नियमावली के अनुसार आशाकर्मी प्रदर्शन नहीं कर सकतीं। इतना ही नहीं, योगी आदित्यनाथ ने आंदोलनकारी आशाकर्मियों को नौकरी से निकालने की भी धमकी दी। उन्होंने तुरंत आंदोलन ख़त्म करके काम पर जाने की नसीहत दी, साथ ही वहाँ मौजूद गोरखपुर के जिलाधिकारी से कहा कि धरना-प्रदर्शन करने वालों को हटाकर नई आशा कार्यकर्ताओं का चयन कर लिया जाए।
दरअसल, योगी आदित्यनाथ 10 जून की घटना से ख़ासतौर पर नाराज़ थे। गोरखपुर में हजारों आशाकर्मी 25 मई से लक्ष्मी बाई पार्क में धरना दे रही हैं। 10 जून को मुख्यमत्री के आगमन की सूचना पर उन्होंने कचहरी चौराहे पर जाम लगा दिया था जिससे मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में व्यवधान पड़ा था।
योगी का रुख देखकर चंदा यादव साथियों के साथ जनता दरबार से निकल आईं। उन्होंने बाहर आकर मीडिया कर्मियों के आगे अपनी नाराजगी जाहिर कीं। उन्होंने कहा कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय बढ़ा दिया गया है। आशाकर्मियों का भी मानदेय बढ़ाने का आश्वासन योगी आदित्यनाथ ने दिया था। जो वायदा चुनाव के समय किया था उसे उन्हें पूरा करना चाहिए।
चंदा यादव ने आरोप लगाया कि सीएम ने आशा बहुओं का अपमान किया है। वे किसी की धमकी से डरने वाली नहीं हैं। उन्होंने बताया कि धरना को पांच दिन तक स्थगित किया गया है क्योंकि उन्हें एक बैठक में शामिल होने लखनऊ जाना है। आशा बहुओं का कार्य बहिष्कार मांगे न मानी जाने तक जारी रहेगा।