बिहार से लेखकों और कवियों का एक अहम आयोजन रद्द होने की ख़बर आई। यहां के बोधगया में इमरजेंसी दिवस के अवसर पर 25 जून को हिंदी के लेखकों-कवियों का एक बड़ा जुटान होना प्रस्तावित था जिसमें दिल्ली से मंगलेश डबराल और असद ज़ैदी जैसे बड़े लेखकों को जाना था। यह आयोजन इंटेलिजेंस और प्रशासन के दबाव के चलते रद्द कर दिया गया है।
कार्यक्रम ‘जुटान’ के संयोजक कवि रंजीत वर्मा ने फोन पर बताया कि दिल्ली से इंटेलिजेंस की एक टीम को कथित तौर पर पर खुफिया रिपोर्ट प्राप्त हुई थी कि गया में ‘माओवादियों’ की एक बैठक होने वाली है। उसके बाद छानबीन करने के लिए जब दिल्ली से टीम बोधगया गई, तो उसने कार्यक्रम के लिए चंदा देने वाले एकाध लेखकों से पूछताछ की।
पटना से एक वरिष्ठ लेखक ने इस बात की पुष्टि की। उन्होंने बताया कि गया में दो साल पहले हुए बम विस्फोट के बाद से ही वहां गुप्तचर एजेंसियों की तैनाती बहुत चौकस है और किसी भी किस्म के कार्यक्रम पर नज़र रखी जा रही है। गया में इस कार्यक्रम की मेजबानी साहित्यिक पत्रिका हंस के प्रकाशक संजय सहाय कर रहे थे। गुप्तचर विभाग की छानबीन और पूछताछ के बाद बिहार के लेखकों में खलबली मची हुई है।
खुफिया विभाग की हरकतों के कारण कुछ स्थानीय लेखकों ने कार्यक्रम से अपना कदम वापस खींच लिया है। वहीं दूसरी ओर कुछ और लेखकों ने 25 जून को ही इस कार्रवाई के खिलाफ़ एक प्रतिरोध मार्च गया में निकालने की योजना बनाई है जिसमें लेखक-संस्कृतिकर्मी, किसान, मजदूर और छात्रों के भारी संख्या में शामिल होने की संभावना है।
वर्मा ने बताया कि सहाय समेत कुछ अन्य लेखक कार्यक्रम को रद्द न करने के पक्ष में थे, लेकिन इसे इसलिए रद्द किया गया क्योंकि लेखक अनावश्यक टकराव नहीं चाहते थे। इसके पहले दिल्ली में ‘जुटान’ का पहला संस्करण आयोजित हुआ था जिसमें कई राज्यों से लेखक पहुंचे थे। अगला संस्करण 25 जून को गया में रखा गया था और माना जा रहा था कि यहां प्रतिरोध के साहित्य पर गंभीर चर्चा होगी।
आयोजन से जुड़े लेखकों के बीच कयास लगाया जा रहा है कि आखिर इस साहित्यिक आयोजन के साथ इंटेलिजेंस की निगरानी का क्या लेना-देना है। कुछ का कहना है कि एकाध दक्षिणपंथी लेखकों का ही यह किया-धरा है जिन्होंने सत्ता से लाभ-लोभ के चक्कर में ‘जुटान’ को निशाना बनाया है। दिल्ली के कुछ और लेखकों का मानना है कि आखिरी मौके पर कार्यक्रम रद्द किए जाने के पीछे कोई और वजह भी हो सकती है।
बहरहाल, आयोजन से जुड़े लेखक-कवि इस दमन के खिलाफ एक निंदा-वक्तव्य तैयार कर रहे हैं जिसे जल्द ही अलग-अलग माध्यमों पर प्रसारित किया जाएगा तथा लेखकों की जासूसी के खिलाफ एक हस्ताक्षर अभियान चलाया जाएगा।
कल प्रस्तावित प्रतिरोध मार्च को ख़बर लिखे जाने तक प्रशासन ने मंजूरी नहीं दी थी। वर्मा के मुताबिक अगर अनुमति नहीं मिली, तब भी एक सांकेतिक प्रदर्शन लेखकों की ओर से तो किया ही जाएगा।