पंकज श्रीवास्तव
1993 में जब राजदीप सरदेसाई के संपादक ने यूपी चुनाव को लेकर उनका आकलन पूछा था तो उन्होंने रामलहर पर सवार बीजेपी की ज़बरदस्त जीत की भविष्यवाणी की थी। वे तब बदलते सामाजिक समीकरणों को नहीं समझ पाये थे और बुरी तरह ग़लत साबित हुए थे। 3 मार्च को हिंदुस्तान टाइम्स में छपा उनका लेख यह जानकारी देता है। (अख़बार की वेबसाइट पर यह लेख 2 मार्च को ही छप गया था।) लेकिन अपने इस लेख में राजदीप फिर एक बार भविष्यवाणी कर रहे हैं। यह भविष्यवाणी है- यूपी विधानसभा चुनाव 2017 बीजेपी जीतने जा रही है।
चुनाव के दौरान ‘ओपीनियन ’ पोल पर रोक लग जाती है। वजह यह कि इससे जनमत प्रभावित होता है। लेकिन पत्रकारों के ओपीनियन देने पर कोई रोक नहीं है, क्योंकि उनसे यह उम्मीद की जाती है कि वे जीत-हार नहीं, बल्कि मुद्दों और समाज में बह रही तमाम अंतर्धाराओं को पकड़ेंगे। राजदीप मँझे हुए पत्रकार हैं और ऐसा नहीं कि वे इस मर्यादा को जानते नहीं है। पूँजी कैसे ‘माहौल बनाने का खेल रचती है’, और यह किसके पक्ष में होता है, यह भी उनसे छिपा नहीं होगा। लेकिन उन्होंने ‘ख़तरा’ उठाते हुए भी बीजेपी की जीत की भविष्यवाणी कर दी है।
बीजेपी को और क्या चाहिए। पहले सारे समाचार माध्यमों को पैसे के बल पर भगवा रंग में रंग डालो और फिर कहो कि देखो अख़बार क्या कह रहे हैं। मोदी जी अपनी रैली में कह भी रहे हैं कि “अख़बार और टीवी देख लीजिए कि कौन जीत रहा है।”
सवाल यह नहीं कि बीजेपी की जीत नहीं सकती। वह जीत भी सकती है और हार भी सकती है। यूपी जैसी जटिल सामाजिक संरचनाओं के बीच हो रहे त्रिकोणीय मुक़ाबले में जीत-हार तमाम कारकों पर निर्भर है। एक-दो फ़ीसदी मतों का अंतर अर्श से फ़र्श पर पटक सकता है। ‘राजशक्ति’, ‘अतुलनीय साधन’ और ‘ध्रुवीकरण महाप्रयास’ जैसे बाणों से बीजेपी अगर लक्ष्यभेद में सफल हो जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
आश्चर्य यह है कि राजदीप भविष्यवक्ता बनना चाहते हैं। वह भी अंतिम चरण के परिणाम आने के बाद नहीं जब पेशेवर तरीके से किए गए एक्ज़िट पोल के नतीजे आ जाते हैं (और उन्हें यह सुविधा है कि अंतिम परिणाम आने तक वह उन आँकड़ों को लेकर स्टूडियो में भविष्य रचें) बल्कि वह छठें चरण के मतदान के ठीक दो दिन पहले बीजेपी की जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं। वह भी पूरे प्रदेश से प्राप्त आँकड़ों या किसी अध्ययन के नतीजों के आधार पर नहीं। वाराणसी में मोदी जी के गोद लिए गाँव और पान की दुकान पर मिले मोदी समर्थक ही उनकी भविष्यवाणी का आधार हैं। ज़ाहिर है,इसका फ़ायदा उठाने में बीजेपी समर्थक जुट गए हैं। राजदीप ने वह काम कर दिया, जो करोड़ों के विज्ञापन नहीं कर पाते। वे हर जगह दावा कर रहे हैं कि “अब तो राजदीप ने भी कह दिया !”
2002 से लेकर 2014 तक अपनी ग्राउंड रिपोर्टिंग की वजह से भक्तों ही नहीं, सीधे भगवान मोदी की आँख में खटक रहे ‘सिकुलर’ पत्रकार राजदीप अचानक बीजेपी के लिए ‘काम के आदमी’ साबित हो गए हैं। यह देखना दिलचस्प है कि सोशल मीडिया पर ख़ासतौर पर, राजदीप और उनकी पत्नी तथा पत्रकार सागरिका घोष को बदनाम करने की हर मुमकिन कोशिश करने वाले, राजदीप का यह लेख लेकर उड़ गए हैं। राजदीप की बरसों से अर्जित ‘साख’ आज उनके काम आ रही है।
यह मानने का कोई कारण नहीं कि राजदीप ने ऐसा किसी फ़ौरी स्वार्थ की वजह से किया होगा। तो क्या वह थक गए हैं ? क्या वे अब उस सत्ता से संधि करना चाहते हैं, जो (उनकी ही तमाम रिपोर्टिंग के मुताबिक) रक्तपात और सामाजिक विद्वेष से निर्मित हुई है। जो ‘आयडिया ऑफ इंडिया’ को बरबाद करने पर तुली हुई है। जिसके नाम पर उमड़े ‘घमंड-घन’ कमज़ोर-दिल लोगों को डरा रहे हैं। ऐसे में उसका मुक़ाबला करने की जगह ‘अपनी दुनिया को सुरक्षित कर लेना’ ही राजदीप सरदेसाई को अक्लमंदी लग रहा है ! अगर बीेजेपी जीत गई तो उनकी ‘नज़र’ को दाद मिलेगी और अगर हार गई तो उनके पास ‘सिकुलर’ ना होने का एक प्रमाणपत्र होगा।
माफ़ करना राजदीप ! इतिहास का इतनी जल्दी अंत नहीं होने वाला। हमें ‘पत्रकार’ राजदीप चाहिए। ‘भविष्यवक्ता’ राजदीप हमारे किस काम का ! बीच चुनाव जीत-हार के खेल में जुटे पत्रकार तो गली-गली घूम रहे हैं !!
(लेखक अंबानी के न्यूज़ चैनल से बरख़ास्त पत्रकार हैं।)