उत्तर प्रदेश का जि़ला मेरठ। मेरठ की एक कॉलोनी। कॉलोनी में एक कमरा। कमरे में दो प्राणी। एक पुरुष, एक महिला। कमरे के बाहर सूबे के मुख्यमंत्री का पैदा किया हुआ एक संगठन है हिंदू युवा वाहिनी। उसे एक पुरुष और एक महिला के बंद कमरे में साथ होने से दिक्कत है। उसे इस बात से दिक्कत है कि पुरुष मुसलमान है और इस आधार पर उसका अनुमान है कि महिला हिंदू होगी और यह कथित ‘लव जिहाद’ का केस होगा। उसे आशंका है कि कमरे में बंद दरवाज़े के पीछे महिला को जबरन मुसलमान बनाया जा रहा है। उसे दरअसल दिक्कत ही दिक्कत है क्योंकि उसने पूरे समाज और समुदाय के सुख-चैन का ठेका लिया हुआ है और उनका संरक्षक राज्य की जनता का चुना हुआ मुख्यमंत्री है।
Hindu Yuva Vahini workers barge into a house in Meerut, rough up a couple on suspicion of 'love jihad'. pic.twitter.com/FaZMsdASd6
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) April 12, 2017
सो, इनका अगला कदम ज़ाहिर है। वाहिनी के लोग कमरे में जबरन घुसते हैं। लड़की और लड़के को पकड़ कर बाहर निकालते हैं। लड़के की पिटाई होती है। यूपी में गाली-गलौज आम बात है। दोनों को थाने ले जाया जाता है। कैमरे के सामने थोड़ा-बहुत बयानबाज़ी होती है। एकाध लोगों में नायकीय प्रतिभा का विस्फोट होता है। पुलिस का बयान आता है। अखबारों में ख़बर छपती है। टीवी पर ख़बर चलती है। शाम तक गूगल पर मेरठ की यह खबर छा जाती है। लेकिन ये क्या?
जिस अख़बार ने सबसे पहले पुलिस अधिकारी का बयान लेकर ख़बर चलाई थी, उसे भी इस बात से दिक्कत है कि लड़का और लड़की बंद कमरे में साथ थे। ध्यान दीजिएगा, हिंदुस्तान टाइम्स ने अपनी इस ख़बर में दो बार लड़की का परिचय कुछ इस तरह दिया है- ”गर्लफ्रेंड”! बाकी अख़बारों की ख़बरें भी यहां देख जाइए। किसी भी ख़बर में इतने विशिष्ट तरीके से दो कोट के भीतर गर्लफ्रेंड नहीं लिखा गया है, सिवाय वहां जहां हिंदुस्तान टाइम्स की ख़बर का हवाला है।
तो हिंदुस्तान टाइम्स को मेरठ की एक कॉलोनी के एक कमरे से ‘अश्लीलता’ के आरोप में पकड़े गए युवक की गर्लफ्रेंड से क्या दिक्कत है? क्या किसी युवक की एक गर्लफ्रेंड का होना कोई विशिष्ट या असामान्य बात है जिसे दो कोट्स में घेरकर दिखाया जा रहा है? या अख़बार ऐसा कर के खुद को बचाना चाह रहा है कि नहीं जी, गर्लफ्रेंड तो पुलिस के अधिकारी ने कहा था, हम तो ऐसा नहीं कह रहे। अख़बार खुद को क्यों बचाना चाहेगा?
सूबे के नए-नवेले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अभी कहा था कि एंटी-रोमियो दस्ते ”निर्दोष” जोड़ों को परेशान नहीं करेंगे। ये ”निर्दोष” जोड़े क्या बला हैं? सरकारी और गैर-सरकारी एंटी-रोमियो दस्तों की कार्रवाई के पैटर्न पर ध्यान दें तो साफ़ नज़र आता है कि उन्हीं जोड़ों को पकड़ा जा रहा है जो विवाहित नहीं हैं। वैसे, लखनऊ आदि जगहों पर कुछ विवाहित जोड़े भी धरे गए हैं लेकिन बाद में पुलिस ने उनसे माफी मांग ली है। इसका मतलब यह बनता है कि विवाहित दंपत्ति ”निर्दोष” है, बाकी सब ”दोषी”।
अगर उत्तर प्रदेश में एक पुरुष और एक स्त्री का बंद दरवाज़ों के पीछे अविवाहित होना ”अश्लीलता” है तो समझा जा सकता है कि समाज में खुले घूमने पर क्या सिला मिलेगा। अख़बार मानता है कि योगीजी की सरकारी और निजी सेना ”निर्दोषों” को नहीं सताएगी, इसीलिए जब मेरठ में वाहिनी के लोगों ने जोड़े को पकड़ा, तो अख़बार मानकर चल रहा था कि यह जोड़ा ”दोषी” होगा। जब पुलिस अधीक्षक आलोक प्रियदर्शी से बयान लिया, तो उन्होंने दावा करते हुए कि महिला भी मुसलमान है और गर्लफ्रेंड है, दोनों को छोड़ देने की बात कही।
अख़बार को यह बात हज़म नहीं हुई। अगर ”निर्दोष” नहीं हैं तो दोनों छोड़े क्यों गए? और ये गर्लफ्रेंड क्या होता है? योगीजी ने तो ”निर्दोष” जोड़े कहा था, कोई संज्ञा प्रयुक्त नहीं की थी। अब अख़बार पुलिस की माने या योगीजी और उनकी सेना की? अपना गला बचाने के लिए हिंदुस्तान टाइम्स ने ख़बर में दो बार लिखे गर्लफ्रेंड को डबल कोट्स लगाकर पुलिस अधीक्षक के मत्थे मढ़ दिया। जिन्होंने इस बयान का इस्तेमाल अपनी ख़बर में साभार किया, उन्होंने भी गर्लफ्रेंड को डबल कोट्स में ही घिरे रहने दिया ताकि गर्लफ्रेंड का बोझ उनके जिम्मे न आने पाए।
तेल देखिए, तेल की धार देखिए। सूबे में गर्लफ्रेंड होना अपराध हो गया है और एक अख़बार विशेष व्याकरणिक चिह्नों के इस्तेमाल से इसे मान्यता भी दे रहा है।