NDTV के आंतरिक ‘स्वच्‍छता अभियान’ में क्‍या अगला नंबर सोनिया सिंह का है?

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पिछले शनिवार यानी 22 अक्‍टूबर को एनडीटीवी के सीईओ विक्रम चंद्रा के चैनल छोड़ देने की आशंका वाली ख़बर चलाते वक्‍त जब एक्‍सचेंज4मीडिया ने उनके इस्‍तीफे की अटकलों के बारे में पूछा था तब उन्‍होंने साफ़ कह दिया था कि ऐसी अटकलें हर रोज़ लगाई जाती हैं, इसलिए जब भी ऐसा कुछ होगा तो वे सूचित कर देंगे। ठीक पांच दिन बाद 27 अगस्‍त को ”हर रोज़” लगाई जाने वाली अटकलों को उन्‍होंने हकीक़त में तब्‍दील कर दिया और वास्‍तव में अपने पद से इस्‍तीफा दे दिया। क्‍या यह संयोग था या पहले से चले आ रहे किसी घटनाक्रम का परिणाम? क्‍या एनडीटीवी में अभी कुछ और विकेट गिरने बाकी हैं?



विक्रम चंद्रा ने अपने इस्‍तीफे की वजह के बारे में ट्वीट किया है और अख़बारों को बताया भी है कि वे पत्रकारिता की ओर लौटना चाहते थे क्‍योंकि प्रबंधकीय काम से उनका जी भर गया था। यह बात अपने आप क्‍या विरोधाभासी नहीं है? क्‍या किसी समाचार संस्‍थान का सीईओ जो खुद एक पत्रकार हो, अपनी मर्जी से अपने किस्‍म की पत्रकारिता अपने समूह में इस पद पर रहते हुए नहीं कर सकता?

चंद्रा के बयान को अगर सच मानें, तो इसका मतलब यही निकलता है कि वे पत्रकारिता नहीं कर पा रहे थे, केवल प्रबंधन करने में जुटे हुए थे। किसका प्रबंधन? कैसा प्रबंधन?

यही वह पहेली है जो एक के बाद एक अलग-अलग कारणों से इस महीने एनडीटीवी के सुर्खियों में लगातार बने रहने की वजह है। सबसे पहले 6 अक्‍टूबर को पूर्व वित्‍त मंत्री पी. चिदंबरम का एक साक्षात्‍कार जो बरखा दत्‍त ने लिया था, उसे नहीं चलाया गया। ध्‍यान रहे कि बरखा दत्‍त ने भी हाल ही में चैनल की पूर्णकालिक नौकरी से अपना इस्‍तीफा दिया है और वहां परामर्शदाता की हैसियत से काम कर रही हैं तथा एक मीडिया कंपनी स्‍थापित करने की कवायद में जुटी हैं।

बहरहाल, चिदंबरम का साक्षात्‍कार नहीं चलाए जाने पर हुई खिंचाई के बाद अचानक शेखर गुप्‍ता ने एनडीटीवी पर कारोबारी मुकेश अम्‍बानी का एक इंटरव्‍यू कर दिया, जिनकी कथित तौर पर इस मीडिया समूह में मालिकाना हिस्‍सेदारी भी है। इसी हिस्‍सेदारी से जुड़े एक संदिग्‍ध समझौते की जांच को पी. चिदंबरम ने रोकने की कोशिश की थी और बाद में प्रवर्तन निदेशालय ने इस संबंध में फेमा कानून के उल्‍लंघन के आरोप में एनडीटीवी पर 2030 करोड़ का नोटिस ठोंक दिया था। इस मामले में बीते अगस्‍त में सुब्रमण्‍यन स्‍वामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीन पन्‍ने का पत्र लिखकर एनडीटीवी, प्रणय रॉय, बरखा दत्‍त, विक्रम चंद्रा और सोनिया सिंह के खिलाफ सीबीआइ-ईडी की जांच की मांग की थी।

इस पत्र के कुछ महीने पहले ही बरखा समूह संपादक के अपने पद से इस्‍तीफा दे चुकी थीं। अब विक्रम चंद्रा ने सीईओ के पद से इस्‍तीफा दे दिया है और कुल मिलाकर बची हैं सोनिया सिंह, जो फिलहाल संपादक की भूमिका निभा रही हैं। ध्‍यान रहे कि सोनिया सिंह कांग्रेस के नेता आरपीएन सिंह की पत्‍नी हैं। ज़ाहिर है, प्रणय रॉय खुद इस समूह के प्रमोटर हैं तो उनके हटने का कोई सवाल नहीं उठता। तो क्‍या माना जाए कि एनडीटीवी के खिलाफ घोटाले की जांच अंदरखाने तेज़ हो चुकी है और कंपनी किसी बड़ी कार्रवाई की आशंका में स्‍वच्‍छता अभियान में जुटी हुई है जिसके तहत विक्रम चंद्रा बाहर गए हैं?

बरखा, विक्रम, सोनिया आदि एनडीटीवी के कोर ग्रुप के चेहरे हुआ करते थे। इन्‍हें एक ज़माने में ‘रॉयज़ ब्‍वायज़‘ कहा जाता था। ये सभी लोग काफी बड़े खानदानों से आते हैं। एक समय में तो यह बात आम थी कि अगर आप किसी नौकरशाह के परिवार से ताल्‍लुक नहीं रखते तो एनडीटीवी में नौकरी पाना आपके वश में नहीं है। इन तमाम पत्रकारों के परिवारों की धमक दिल्‍ली के सत्‍ता के गलियारों में रही है। मसलन, विक्रम चंद्रा नागरिक विमानन के पूर्व महानिदेशक योगेश चंद्रा के पुत्र हैं। योगेश चंद्रा के ससुर गोविंद नारायण थे जो पूर्व गृह और रक्षा सचिव हैं तथा कर्नाटक के राज्‍यपाल भी रह चुके हैं। इसी तरह चंद्रा की जगह अब सीईओ बने केवीएल नारायण राव पूर्व सैन्‍य जनरल केवी कृष्‍णा राव के बेटे हैं जो जम्‍मू और कश्‍मीर समेत कुछ अन्‍य राज्‍यों के राज्‍यपाल रह चुके हैं। सोनिया सिंह जो पहले सोनिया वर्मा थीं, कांग्रेसी नेता आरपीएन सिंह की पत्‍नी हैं। इसके अलावा एनडीटीवी के परिचित चेहरे श्रीनिवासन जैन दक्षिण अफ्रीका में उच्‍चायुक्‍त रह चुके एलसी जैन और अर्थशास्‍त्री देविका जैन के सुपुत्र हैं। निधि राज़दान पीटीआइ के मुख्‍य संपादक एम.के. राज़दान की पुत्री हैं। ऐसे पत्रकारों की एनडीटीवी में लंबी फेहरिस्‍त हैं जिनके बाप-दादा-चाचा आदि सत्‍ता के गलियारों में बड़े ओहदों पर रहे हैं।

ज़ाहिर है, ऐसे लोगों के चलते एनडीटीवी का शुरुआती दौर बहुत मजब़ूत भी रहा जिसने इस चैनल की शक्‍ल को गढ़ने में मदद की। राज्‍यसत्‍ता से मिलने वाली इससे ज्‍यादा मदद क्‍या होगी कि चैनल अपनी शुरुआत प्रधानमंत्री निवास से करता है और अपनी 25वीं सालगिरह राष्‍ट्रपति भवन में मनाता है। पत्रकारिता के लिए इससे ज्‍यादा बड़ा संपर्क क्‍या होगा कि खुद देश का वित्‍त मंत्री इस चैनल को घोटाले के आरोप से बचाने के लिए जी-जान लगा देता है और जांच कर रहे एक आयकर अधिकारी का जीना हराम कर देता है। इस पूरी कहानी में बस ग़लती एक हुई- 16 मई, 2014 को इस देश का निज़ाम बदल गया।

निज़ाम बदला और आस्‍थाएं बदलीं। आस्‍थाएं बदलीं तो सत्‍ता को अपने हिसाब से चलाने की ताकत पर असर पड़ा। दबाव बनने शुरू हुए। उसका असर आज हम एनडीटीवी की परत दर परत दर उघड़ने के रूप में साफ़ देख पा रहे हैं। बरखा जा चुकी हैं। चंद्रा भी जा चुके हैं। सवाल रह जाता है कि क़यामत आने से पहले क्‍या अगली बारी सोनिया सिंह की है?