आज से चार महीने पहले गोरखपुर शहर को पीपली लाइव बना देने और सरकारी चिकित्सक डॉ. कफ़ील खान को नत्था बना देने वाले मीडिया को इस बात का इल्म तक नहीं है कि उनके ठहराए दोषी डॉक्टर पर से आरोप लगाने वाली यूपी एसटीएफ ने खुद भ्रष्टाचार और प्राइवेट प्रैक्टिस के दो संगीन आरोप वापस ले लिए हैं। ध्यान रहे कि डॉ. कफ़ील के ऊपर जो तमाम आरोप लगाए गए थे, उनकी बुनियाद में उनका प्राइवेट प्रैक्टिस करना ही था।
वेबसाइट twocircles.net पर सिद्धांत मोहन ने ख़बर की है कि गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत के मामले में सबसे बड़े दोषी ठहराए गए डॉ. कफ़ील को एसटीएफ ने दो संगीन आरोपों से मुक्त कर दिया है, हालांकि वे अब भी दो अन्य गैर-जमानती धाराओं के तहत हिरासत में ही हैं जिनमें एक धारा आइपीसी की 409 सरकारी गबन से ताल्लुक रखती है।
ऑक्सीजन की सप्लाइ रुकने से मारे गए बच्चों की वास्तव में मदद करने वाले डॉ. कफ़ील को पूरे मीडिया ने मिलकर एक स्वर में खलनायक करार दिया था। उस वक्त शायद एकाध संस्थान ही ऐसे रहे जो लगातार डॉ. कफ़ील की बेगुनाही के बारे में लिखते रहे थे। मीडिया कफ़ील को जेल भिजवाकर चैन की गहरी नींद सो गया और आज भी सोया पड़ा है। अब तक डॉ. कफ़ील से जुड़ी यह ताजा खबर अखबारों और चैनलों तक नहीं पहुंची है।
वेबसाइट के मुताबिक उत्तर प्रदेश स्पेशल टास्क फोर्स ने डॉ. कफ़ील अहमद खान के खिलाफ़ लगाए प्राइवेट प्रैक्टिस और भ्रष्टाचार का एक आरोप हटा लिया है। अगस्त में गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में हुई बच्चों की मौत के बाद उसके चिकित्सक डॉ. कफ़ील समेत कई को इस हादसे का जिम्मेदार ठहराया गया था। राज्य सरकार के कहने पर यूपी एसटीएफ ने मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. राजीव मिश्र और डॉ. कफ़ील के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया था।
इनके अलावा गोरखपुर पुलिस ने डॉ. पूर्णिमा, डॉ. सतीश कुमार, गजानन जायसवाल, लेखा विभाग के लिपिकों सुधीर पांडे, उदय शर्मा और संजय त्रिपाठी तथा पुष्पा सेल्स के मालिक मनीष भंडारी के खिलाफ भी आरोप पत्र दायर किया था।
इतने सारे लोगों को गोरखपुर कांड का दोषी ठहराया गया, लेकिन दिलचस्प बात यह रही कि डॉ. कफ़ील को छोड़कर राजीव मिश्रा सहित अन्य की गिरफ्तारी की खबर को मीडिया में कोई तवज्जो नहीं दी गई। ऐसा लगा कि मीडिया ने पहले ही तय कर दिया हो कि कफ़ील ही सारे बच्चों का ‘विलेन’ है। इस बारे में मीडियाविजिल ने एक अहम टिप्पणी प्रकाशित की थी।
कफ़ील खान पर आइपीसी की धारा 120-बी, 308 और 409 के तहत मुकदमा दायर किया गया था। इसके बाद अगस्त के आखिरी हफ्ते में मुख्य सचिव राजीव कुमार की अध्यक्षता में गठित एक उच्चस्तरीय कमेटी की सिफारिश पर भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 7/13, आइटी कानून की धारा 66 और इंडियन मेडिकल काउंसिल कानून की धारा 15 को भी आरोप पत्र में जोड़ा गया।
जांच अधिकारी अभिषेक सिंह ने टू सर्किल को बताया कि डॉ. कफ़ील के खिलाफ उसे कोई भी ठोस सामग्री अथवा साक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ। न तो वे प्राइवेट प्रैक्टिस में लिप्त थे और न ही उन्होंने आइटी कानून के किसी प्रावधान का उल्लंघन किया।
फिलहाल कफ़ील अब भी धारा 409 और 120-बी के तहत भीतर न्यायिक हिरासत में हैं।
twocircles.net पर सिद्धांत मोहन की लिखी ख़बर से साभार