माकपा-भाकपा एकीकरण : बीरबल की खिचड़ी !

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विष्णु राजगढ़िया

बीरबल की खिचड़ी का किस्सा मशहूर है। ऐसी खिचड़ी, जिसका पकना संदिग्ध हो। कुछ ऐसी ही स्थिति भारत में वाम दलों की एकता को लेकर भी है, जिसका भ्रम बरकरार हो और सफलता अनिश्चित।
सीपीआइ के पूर्व महासचिव कामरेड एबी वर्द्धन के जन्मदिन पर 25 सितंबर को आयोजित समारोह में कुछ ऐसा ही दृश्य दिखा।
माकपा नेता सीताराम येचुरी ने भाकपा द्वारा दिल्ली में आयोजित ए बी बर्धन स्मृति व्याख्यान में सीपीआइ सीपीएम के एकीकरण की बात कही। उन्होंने ‘अभिव्यक्ति की आजादी और मतभिन्नता का अधिकार’ विषय पर व्याख्यान के दौरान यह बात कही।
येचुरी ने कॉमरेड बर्धन के निधन से पहले उनसे अपनी अंतिम मुलाकात को याद करते हुए यह बात कही। बोले कि केन्द्र में मोदी सरकार बनने से चिंतित कामरेड बर्धन ने उनसे पूछा था कि अब देश का भविष्य कैसा होगा। येचुरी ने उस वक्त वामदलों के एकीकरण की जरूरत पर बल देते हुये कहा था ‘आपकी पीढ़ी ने दोनों दलों को तोड़ा था और अब हमारी पीढ़ी इन्हें जोड़ेगी।’
येचुरी ने कहा कि दोनों दलों में कार्यकर्ता से लेकर नेतृत्व के स्तर पर एकीकरण के मुद्दे पर आमराय कायम करने की प्रक्रिया चल रही है। उन्होंने कहा कि इस दौर की मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिये वामदलों का एकीकरण ही एकमात्र उपाय है और इस मकसद को पूरा करना कामरेड बर्धन को सच्ची श्रृद्धांजलि होगी।
दिलचस्प यह है कि येचुरी की इस बात पर भाकपा नेता अतुल अंजान ने कहा कि दोनों दलों के एकीकरण की प्रक्रिया अभी विचार के स्तर पर है. अंजान ने कहा कि वामदलों का एकीकरण समय की मांग है लेकिन दोनों दलों में इस मुद्दे पर कार्यकर्ताओं में आमराय बनाने के बाद ही इस मकसद को स्थायित्व के साथ पूरा किया जा सकेगा।
जाहिर है कि कामरेड एबी वर्द्धन के जन्मदिन पर एक समारोही मूड में सीताराम येचुरी द्वारा कही गई इस बात को महज सदिच्छा के तौर पर ही देखा जा सकता है।
अगर वह गंभीर होते तो माकपा और भाकपा के एकीकरण की पहल का कोई विवरण भी देते। लेकिन अब तक न ऐसा कोई प्रस्ताव है, न फॉर्मूले या बैठक का कोई जिक्र है। सिर्फ एक सदिच्छा की अभिव्यक्ति है और कार्यकर्ताओं के बीच आम राय बनाने की कोई गोलमटोल बात कह दी गई है।
अगर ऐसा कहकर सिर्फ अपने कार्यकर्ताओं को भ्रम में नहीं रखा जा रहा हो, तो क्या कोई भी ऐसा पत्र, लेख, दस्तावेज या परचा उपलब्ध है, जिसमें कार्यकर्ताओं की राय पूछी गई हो?
अगर ऐसी कोई चीज उपलब्ध कराई गई होती तो सीताराम येचुरी की बात में गंभीरता दिखती।
हालांकि इसका एक सकारात्मक पहलू यह है कि सीताराम येचुरी के इस ख्याली पुलाव ने देश की वामपंथी कतारों में उम्मीद जगा दी है। इससे उनके सवाल गहरे हो रहे हैं जिसका जवाब शीर्ष नेताओं के पास नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और आरटीआई कार्यकर्ता हैं।)