दुष्यंत का नाम लिए बिना कविता का इस्तेमाल, ये कैसी नैतिकता TV9 भारतवर्ष ?

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विनीत कुमार 
TV9 भारतवर्ष समाचार चैनल के लांच हुए अभी चौबीस घंटे भी नहीं हुए कि वो बुनियादी, मामूली किन्तु सहज पकड़ में आ जानेवाली नैतिकता बरतने से चूक गया.

वैसे हमने बहुत पहले ही किसी भी चैनल से नैतिकता की उम्मीद करना छोड़ना छोड़ दिया है लेकिन जिस दावे और वायदे के साथ पिछले कुछ दिनों से इस चैनल के प्रोमो सोशल मीडिया पर जारी किए जाते रहे, हमें लगा कि इस चैनल से पत्रकारिता की बुनियादी नैतिकता की उम्मीद करके देखने में कोई हर्ज नहीं है. चैनल की पंचलाइन है- आओ देश बदलें. लेकिन

सवाल है कि क्या इसी तंग सोच और रवैये के साथ देश बदला जा सकेगा ? पहले ही दिन एक मशहूर जनकवि/ शायर का हक मारकर ?

क्या चैनल की अनुभवी, तेजतर्रार और तथाकथित विश्वसनीय टीम ने कभी इस सिरे से विचार किया कि देश बदलने के दावे करने से पहले खुद अपने भीतर, मीडिया के भीतर किस स्तर के बदलाव की जरूरत है ?

चैनल की सबसे जूनियर एंकर और उसके ही शब्दों में कहें तो देश के सबसे अनुभवी मीडियाकर्मी स्क्रीन पर नजर आते हैं, एंकर के माध्यम से चैनल का दावा है- सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि सूरत बदलनी चाहिए.

ये दुष्यंत कुमार की वो मशहूर पंक्ति है जिसे कि किसी भी स्कूल/कॉलेज में, चाहे प्रतियोगिता का विषय कुछ भी हो, भाषण, वाद-विवाद के दौरान प्रतिभागी अमूमन शुरूआत इसी पंक्ति से करते हैं. लेकिन वो भी साथ में ये जोड़ना नहीं भूलते कि अध्यक्ष महोदय ! साये में धूप में दुष्यंत कुमार ने ठीक ही लिखा है..और तब वो आगे की बात करते हैं.

थोड़ी देर के लिए ये मान भी लिया जाए कि एंकर से चूक हो गयी कि नाम नहीं लिया . लेकिन क्या ये महज एंकर की चूक है ? चैनल तो इसे अपनी सोच बता रहा है. कम से कम टाइमलाइन पर तो इसकी चर्चा की जाती.

आपने जिस कवि की पंक्ति से प्रेरित होकर चैनल की सोच ही खड़ी कर दी और तब भी एक बार भी उनका नाम लेना जरूरी नहीं समझा, ऐसे में हम दर्शक आगे उम्मीद कर सकते हैं कि आप किसी का हक नहीं मारेंगे, नैतिक बने रहेंगे ? यदि आपकी सोच दुष्यंत कुमार की इस पंक्ति से निकलकर आयी है, तब तो संभव है ये मामला महज नैतिकता का नहीं, कानूनी मसला भी बने.

एक के बाद एक वीडियो जारी करके चैनल ने बाकी को जनतंत्र का खलनायक और खुद को मसीहा साबित करने की कोशिश की है, क्या मसीहा का नजरिया इतना तंग और दिल इतना छोटा होता है ?

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