मीडियाविजिल अपने पाठकों के लिए एक विशेष श्रृंखला चला रहा है। इसका विषय है ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और विकास। यह श्रृंखला दरअसल एक लंबे व्याख्यान का पाठ है, इसीलिए संवादात्मक शैली में है। यह व्याख्यान दो वर्ष पहले मीडियाविजिल के कार्यकारी संपादक अभिषेक श्रीवास्तव ने हरियाणा के एक निजी स्कूल में छात्रों और शिक्षकों के बीच दो सत्रों में दिया था। श्रृंखला के शुरुआती चार भाग माध्यमिक स्तर के छात्रों और शिक्षकों के लिए समान रूप से मूलभूत और परिचयात्मक हैं। बाद के चार भाग विशिष्ट हैं जिसमें दर्शन और धर्मशास्त्र इत्यादि को भी जोड़ कर बात की गई है, लिहाजा वह इंटरमीडिएट स्तर के छात्रों और शिक्षकों के लिहाज से बोधगम्य और उपयोगी हैं। इस कड़ी में प्रस्तुत है ”ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और विकास” पर चौथा भाग:
1964 में न्यू जर्सी के क्रॉफर्ड हिल पर एक रेडियो टेलिस्कोप लगाया गया। रेडियो टेलिस्कोप यानी वैसा टेलिस्कोप जो प्रकाश के अदृश्य तरंगों को पकड़ सके। यहां से शुरू होती है कहानी आधुनिक खगोलविज्ञान की। इस टेलिस्कोप को कई दिशाओं से कुद रहस्यमय तरंगें आती हुई पता चलीं। यह बिग बैंग नामक प्रस्थापना का पहला फिजिकल सबूत था जिसे खोजने वाले वैज्ञानिक पेंजियस को 1978 में नोबल पुरस्कार दिया गया। अस्सी का दशक आते आते बिग बैंग की थियरी स्थापित हो चुकी थी क्योंकि उसकी आरंभिक तरंगों को पकड़ा जा चुका था। अब मामला यह था कि रेडियो टेलिस्कोप को और करीब भेजा जाए जाए ताकि वह कुछ तस्वीरें और सूचनाएं धरती पर भेज सके।
अब पहाड़ पर टेलिस्कोप को रखने की जरूरत नहीं थी। प्रक्षेपण यान और उपग्रहों का दौर आ चुका था। इसलिए 2001 में नासा ने केनेडी स्पेस सेंटर से एक प्रक्षेपण यान में रेडियो टेलिस्कोप लगाकर अंतरिक्ष में भेजा। इससे भी पहले 1990 में 12 टन का हबल स्पेस टेलिस्कोप नासा भेज चुकी थी। इन सबका उद्देश्य बिग बैंग के समय के विस्फोट में पैदा हुए कणों और तरंगों को पकड़ना था। यह बहुत दिलचस्प था। यह एक तरह से ब्रह्माण्ड के बाहर देखने जैसा था या कहें समय में पीछे यात्रा करने जैसा था। आप उस चीज को पकड़ने जा रहे थे जो अरबों साल पहले घट चुकी थी। टाइम मशीन बनाना तो संभव नहीं है, लेकिन ब्रह्माण्ड की चौहद्दी की यात्रा करना समय में पीछे चलने के बराबर ही है। उससे कम नहीं।
टेलिस्कोप की सीमा है। हमने अब तक जो कुछ जाना, वह टेलिस्कोप के बगैर मुमकिन नहीं था लेकिन अब कंप्यूटरों का दौर आ चुका था और हमें पता था कि बिग बैंग के वक्त परिस्थितियां क्या रही होंगी। इसलिए वैज्ञानिकों ने बिग बैंग की सच्चाई का पता लगाने के लिए लैब का सहारा लिया। यह कहा गया कि यदि हम बिग बैंग जैसी परिस्थिति को लैब में कंप्यूटर पर नकली तरीके से निर्मित कर दें, तो काफी कुछ पता चल सकता है। इसे कंप्यूटर सिम्युलेशन कहते हैं। इसके लिए हालांकि एक बहुत बड़ी मशीन और काफी ज्यादा मेमोरी की जरूरत थी। तब जाकर एक बहुत बड़ी मशीन बनाई गई।
इसे आपने महामशीन के नाम से अखबारों टीवी में देखा होगा। इसे एलएचसी कहते हैं। लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर। यह महामशीन जिनेवा में स्थित है। फ्रांस और स्विट्जरलैंड की सीमा पर जिनेवा में जो विशाल खाली जमीन है, उसके नीचे एक लैब में यह मशीन काम करती है। 1998 से 2008 के बीच दस साल तक इस मशीन को दुनिया के दसियों हजार वैज्ञानिकों ने बनाया और 100 से ज्यादा देश इस काम में लगे रहे।
सोचिए, अस्तित्व का सवाल, ब्रह्माण्ड का सवाल इससे पहले इतना बड़ा कब रहा होगा? जाहिर है, विज्ञान को अपने निष्कर्षों और अपनी थियरी पर इतना भरोसा रहा होगा, तभी तो मानवता के इतिहास की सबसे बड़ी मशीन बनाने पर पैसा खर्च किया गया और इतनी मेहनत की गई? बस सोच कर देखिए, इसमें 28 किलोमीटर लंबी सुपरकंडक्टर चुम्बकों की रिंग है। 28 किलोमीटर का मतलब दिल्ली के एक कोने से दूसरे कोने तक की लंबाई। इस मशीन में सब एटॉमिक पार्टिकल्स को छोड़ने और आपस में लड़ाने की सुविधा है। ये इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कण बहुत हाइ स्पीड में निकलते हैं और एक दूसरे से टकराते हैं। इससे जो परिस्थिति बनती है, वह बिग बैंग के आरंभ में अरबवें सेकंड की परिस्थिति के बराबर है। अगर आपने वैसी परिस्थिति नकली तरीके से निर्मित कर ली तो समझिए कि आपने अस्तित्व का बुनियादी सवाल हल कर लिया। सामान्य लहजे में कहें तो आपने भगवान को खोज लिया।
तीन साल पहले इस मशीन को लेकर काफी खबरें आई थीं। कहा गया था कि इस मशीन ने गॉड पार्टिकल खोज लिया है। वह ईश्वरीय कण खोज लिया है जिससे इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई थी। दरअसल, यह मशीन ब्रह्माण्ड को जानने की एक प्रक्रिया है और किसी नए कण का खोज लिया जाना अस्तित्व के सवालों का अंतिम जवाब नहीं है। बुनियादी कणों की टकराहट के दौरान इसमें वास्तव में एक कण खोजा गया गया था। इसे हिग्स पार्टिकल का नाम दिया गया और उसके आधार पर वैज्ञानिक पीटर हिग्स ने यह थियरी दी कि स्पेस में एक फील्ड या प्रभाव क्षेत्र मौजूद है जिसे हिग्स फील्ड कहते हैं। इसी फील्ड से गुज़र कर आरंभिक पार्टिकल्स अपना मास यानी द्रव्यमान अर्जित करते हैं।
दरअसल, ब्रह्माण्ड की बुनियाद है पदार्थ यानी मास। एक और चीज है जिसे हम ऊर्जा कहते हैं। पहले के विज्ञान और दर्शन में पदार्थ और ऊर्जा को दो अलग-अलग इकाइयां माना जाता था। कहते थे कि यही दो चीजें हमारे अस्तित्व की नींव हैं। बाद में आइंस्टीन ने E=MC2 का फॉर्मूला दिया, तब जाकर पता चला कि पदार्थ और ऊर्जा आपस में कैसे संवाद करते हैं और एक-दूसरे में बदलते हैं। इसमें C प्रकाश की गति है। प्रकाश कण भी है तरंग भी। पार्टिकल और वेव की इस डुअलिटी (दोहरे चरित्र) को बहुत पहले खोज लिया गया था। सारा मामला इस बात पर फंसा हुआ था कि प्रकाश के जो आरंभिक कण हैं, उनमें मास कैसे आया रहा होगा। हिग्स फील्ड या हिग्स पार्टिकल इसी की अपूर्ण व्याख्या करता है।
मसलन, मान लीजिए कि एक रेस्त्रां में पार्टी चल रही है और आप बाहर से कमरे में दाखिल होते हैं। दो बातें हो सकती हैं। या तो कमरे में तमाम भीड़ के बावजूद ऐसा सीधा रास्ता हो कि आप बिना किसी से टकराए, किसी को छुए सीधे काउंटर तक पहुंच जाएं। दूसरे, यह भी हो सकता है कि आप कमरे में घुसें और दो-चार लोग आपको देखकर करीब आ जाएं जिससे भीड़ बढ़ जाए और आप आगे निकलने से पहले उनसे संवाद करने लगें। तो जो कण बिना संवाद किए सीधे निकल गया, वह तो वेव रह गया लेकिन जिसने दूसरे कणों के साथ इंटरैक्ट किया, वह संवाद की इस प्रक्रिया में मास अर्जित करने लगा। काउंटर तक पहुंचते पहुंचते यह बाद वाला कण पदार्थ बन गया यानी इसका एक द्रव्यमान हो गया। कहने का मतलब ये कि बिग बैंग की आरंभिक अवस्था में कणों के आपसी संवाद और क्रिया से पदार्थ की जो उपज हुई, वही इस ब्रह्माण्ड के मौजूदा स्वरूप का असल रहस्य है। लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर इसी की खोज कर रहा है। हिग्स फील्ड एक प्रस्थापना है। हिग्स पार्टिकल एक खोज है लेकिन वह थियरी के अलावा कुछ भी ठोस तरीके से पुष्ट नहीं करता है। फिलहाल चुनौती यह है कि स्पेस के मानक मॉडल को माना जाए या हिग्स मॉडल को।
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति में इस बाद के विकास को समझने के लिए हमें दो चीजों में पारंगत होना पड़ेगा। एक रिलेटिविटी यानी सापेक्षता का सिद्धांत और दूसरा क्वान्टम मेकैनिक्स यानी क्वान्टम गतिकी। हम कह सकते हैं कि ब्रह्माण्ड के बनने और विकसित होने के दो स्तंभ ये दो सिद्धांत हैं। बिना रिलेटिविटी और क्वान्टम को समझे आप आगे नहीं बढ़ सकते। शुरुआत में मैंने मैक्रो और माइक्रो की बात कही थी। मैक्रो को समझने के लिए रिलेटिविटी है और माइक्रो को समझने के लिए क्वान्टम है। लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर एक ऐसी महामशीन है और ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति एक ऐसा विषय है जहां ये दोनों सिद्धांत अजबोगरीब तरीके से आपस में जुड़ जाते हैं। इसे कभी-कभार ग्रैंड यूनीफिकेशन थियरी के नाम से भी पुकारा जाता है जिसका मतलब सामान्य भाषा में यह होता है कि दुनिया को, यूनिवर्स को चलाने वाली ताकत दरअसल एक ही है, मामला चाहे माइक्रो का हो या मैक्रो का।
हमारा शरीर हो या फिर अरबों मील दूर चमकते तारे, बुनियादी बल एक ही है। अगर आपको दोनों की उत्पत्ति का रहस्य समझना है तो दोनों के सिद्धांत को एक साथ लाना होगा और एक नतीजे पर पहुंचना होगा। सारा विज्ञान, सारा ज्ञान, यहां आपस में समाहित हो जाता है। इस अर्थ में कहें तो एलएचसी ज्ञान-विज्ञान के विकास का सर्वकालिक महानतम प्रतीक है, हमारा ब्रह्माण्ड उसका मूल उद्देश्य है, रिलेटिविटी और क्वान्टम मेकैनिक्स उसकी दो आधारशिलाएं हैं और हिग्स पार्टिकल यानी गॉड पार्टिकल उसकी अब तक की हासिल एक ऐसी मंजिल है जो अज्ञात और अदृश्य को समझ पाने में हमारे भरोसे को और मजबूत करती है।