जामिया की इंकलाबी बेटी- चंदौली की चंदा यादव!

मो. आसिफ़
अभी-अभी Published On :


11 दिसंबर 2019 को केंद्र सरकार ने संसद में विवादित ‘नागरिकता संशोधन कानून’ पारित किया। इसमें धर्म के आधार पर नागरिकता देने का प्रावधान है। यह संविधान की मूल अवधारणा के भी खिलाफ है। इसके साथ ही अमित शाह ने कहा था कि नागरिकता संशोधन कानून के बाद ‘एनआरसी’ (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर) भी लाया जाएगा। इस कानून के विरोध में सबसे पहले जो आवाज उठी, वह जगह थी जामिया मिल्लिया इस्लामिया। जामिया के छात्रों ने इस कानून के खिलाफ एकजुट होकर हल्ला बोला लेकिन पुलिसिया दमनकारी बर्बरता के कारण छात्रों का यह आंदोलन देश-विदेश की मीडिया में चर्चा का विषय बन गया। क्रूरता के साथ पुलिस द्वारा आँसू गैस के गोले दागे जाने और लाठीचार्ज किये जाने से विश्वविद्यालय में एक दर्दनाक दृश्य पैदा कर दिया। शांतिपूर्ण तरीके से पुस्तकालय में पढ़ रहे छात्रों को भी बेरहमी से पीटा गया।

इस आंदोलन में तीन लड़कियों का एक फोटो मीडिया में चर्चा का केंद्र बना। उन्हीं तीन लड़कियों में एक नाम चंदा यादव का भी है। चन्दा यादव बी.ए. तृतीय वर्ष हिन्दी (आनर्स) की छात्रा हैं। वह छात्र संगठन ‘आइसा’ (आल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन) से जुड़ी हुयी हैं। इस आंदोलन से पहले भी वे सक्रियता के साथ छात्र हितों के लिए आवाज़ उठाती रही हैं। इस से पहले जब जामिया में आएसा के सदस्य इज़राइली डेलिगेट का विरोध करते हैं तब उन्हें कारण ‘बताओ नोटिस’ भेजा जाता  है। चंदा यादव ने उस समय भी अपने साथियों के साथ विश्वविद्यालय प्रशासन के इस तानाशाही रवैये के खिलाफ जमकर विरोध प्रदर्शन किया। सात दिन तक लगातार चले उस विरोध प्रदर्शन के सामने जामिया प्रशासन को झुकना पड़ा और अंत में अपना फैसला वापस लेना पड़ा।

चंदा यादव उत्तर प्रदेश के चंदौली जिला के एक किसान परिवार से आती हैं। वह अपने परिवार के पीढ़ी की पहली लड़की हैं जो गाँव से बाहर निकलकर दिल्ली जैसे महानगर में पढ़ रही हैं। चंदा यादव एक स्त्रीवादी आंदोलनों से भी जुड़ी हुई हैं। जामिया में पिंजरातोड़ के आन्दोलन में भी सक्रिय थी। वह कहती हैं, “अब तक मेरे घर में लड़कियां सिर्फ शादी करने के लिए पढ़ाई जाती थी लेकिन मैं अपने अधिकार और आजादी के लिए पढ़ रही हूँ”।

चंदा यादव बताती हैं कि वह एक ऐसे रूढ़िवादी और पितृसत्तात्मक समाज से आती हैं जहां लड़कियों को घर से बाहर निकलने पर तरह-तरह की बन्दिशें लगाई जाती हैं। किन्तु मैं शुरू से ही इन पाबन्दियों और सामंती विचारों का विरोध करती रही हूँ।

दिल्ली पुलिस की लाठियों से एक पत्रकार साथी को बचाने के लिए खुद पुलिस की लाठियों का शिकार हो गयी। यह घटना एक दूसरे पत्रकार ने अपने कमरे में कैद कर ली। पुलिस लाठीचार्ज की यह वीडियो काफी वायरल हुई। इस प्रकार वह दूसरी बार चर्चा में आईं। सोशल मीडिया इत्यादि के माध्यम से जनसाधारण ने पुलिसिया गुंडागर्दी की काफी भर्त्सना की। पुलिस के इसी बर्बर एवं दमनपूर्ण लाठीचार्ज ने इस कानून के खिलाफ आंदोलन को और हवा दी।

भाजपा को छोड़कर देश की लगभग सभी पार्टियों ने इस कानून का खुले रूप से विरोध करना शुरू कर दिया है। शाहीन बाग की तर्ज पर देश के अलग –अलग हिस्सों में औरतें मुख्य भूमिका में आगे आकर इस कानून के खिलाफ लड़ रही हैं। जामिया के इस आंदोलन में मुखर होने के कारण जगह –जगह सीएए और एनआरसी के खिलाफ चल रहे आंदोलनों में चंदा को भागीदारी के लिए निमंत्रण आ रहे है किन्तु वह अपनी पढ़ाई-लिखाई की व्यस्तता के कारण सब जगह नहीं जा पाती हैं। इसके बावजूद बिहार के अररिया, महाराष्ट्र में मुंबई, उदगीर, हिंगोली, और भोपाल की जनसभा में इस कानून के खिलाफ भागीदारी करते हुये अपनी बात पुरजोर तरीके से रख चुकी हैं। उन्हें मेधा पाटकर, कन्हैया कुमार, जिग्नेश मेवानी इत्यादि के साथ मंच साझा करने का भी अवसर मिला है।

चंदा यादव जामिया से उठती हुई एक प्रतिरोध की आवाज बन चुकी हैं। अमूमन आंदोलनों में पुरुष वर्ग ही नेतृत्व की भूमिका में रहता है किन्तु जब एक महिला अपनी आवाज़ को बुलंद करती है तो वह कानून के विरोध के साथ-साथ समाज की जड़ता और पुरुषसत्ता को भी चुनौती दे रही होती है।

चंदा यादव के संघर्ष को महत्त्व देते हुए और उसे एक मिसाल के रूप में पेश करते हुए, बीबीसी के अपने एक लेख में जामिया की प्रोफेसर डॉक्टर फ़िरदौस अज़्मत सिद्दीकी कहती हैं, “चंदा यादव करोड़ों मुस्लिम लड़कियों के लिए एक आदर्श बन चुकी हैं”। वह आगे कहती हैं, “इतनी कम उम्र में उनकी यह वैचारिक चेतना और सामाजिक मुद्दों की समझ हमें आश्चर्य करती है।” चंदा के कमरों की दीवारों पर अंबेडकर, लोहिया, भगतसिंह, कार्ल मार्क्स, चेग्वेरा सावित्रीबाई फुले और फूलन देवी का पोस्टर लगा हुआ है। पूछने पर बताती हैं कि यही सब विचारक उनके आदर्श हैं। अपने जीवन में लड़ने और संघर्ष करने का रास्ता उन्होंने इनसे ही सीखा है।

चंदा यादव इस कानून को लेकर तीसरी बार चर्चा में तब आई जब 10 फरवरी 2020 को जामिया के छात्रों द्वारा जामिया से संसद तक मार्च निकाला जा रहा था। पुलिस ने इस मार्च को बीच में ही होली फेमिली हॉस्पिटल के पास रोक दिया। तब सभी छात्रों के साथ चंदा यादव ने बड़ी बहादुरी के साथ पुलिस बैरिकेडिंग का विरोध किया। वह पुलिस के निशाने पर आ जाती हैं और पुलिस इन्हें डिटेन कर लेती है। डिटेंशन के दौरान बस में एक पुरुष पुलिसकर्मी ने थप्पड़ मरते हुए कहा, “प्रोटेस्ट करती है?” बुरी तरह से घायल होने के बावजूद भी पुलिस की तरफ से इलाज का कोई प्रबंध नहीं किया गया। वहाँ से रिहा होने के बाद चंदा यादव के साथी उन्हें अलशिफा हॉस्पिटल में उपचार के लिए भर्ती कराते हैं। उनका कहना है कि पुलिस ने भीड़ का फायदा उठाते हुए उन्हें बेरहमी से पेट और हाथ पर लाठी से मारा है।

सीएए और एनआरसी के प्रतिरोध का एक चर्चित चेहरा बन चुकी चंदा का कहना है कि यह मुल्क सबका है, संविधान सबको बराबरी का हक देता है। किसी के साथ धार्मिक और जातिगत आधार पर भेदभाव उचित नहीं है। हम इस तानाशाही कानून के खिलाफ अंतिम सांस तक लड़ेंगे और अपनी पढ़ाई भी करेंगे।