टेलीग्राफ़ ने संस्थापक संपादक अकबर का ‘मी टू’ बेहिचक छापा! मंत्री हैं तो छिपा रहे हैं हिंदी अख़बार!

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मीटू का असर मुंबई, मीडिया से मंत्रिमंडल तक

संजय कुमार सिंह

 

मीटू के तहत केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर पर उंगली उठने के बाद सवाल था कि अंग्रेजी दैनिक दि टेलीग्राफ इस खबर को कैसे पेश करेगा। आम अखबारों की तरह प्रतिकूल खबर को पी जाएगा या एक अच्छे मीडिया संस्थान के रूप में पूरी खबर विस्तार से देगा। टेलीग्राफ एक अच्छा मीडिया संस्थान साबित हुआ है। उल्लेखनीय है कि एमजे अकबर टेलीग्राफ के संस्थापक सपादक हैं। टेलीग्राफ ने इस खबर को लीड बनाया है। इस तथ्य के साथ कि अकबर अखबार के संस्थापक संपादक हैं जबकि ज्यादातर हिन्दी अखबारों ने या तो मीटू अभियान को ही छोड़ दिया है या इसे मुंबई और फिल्मी दुनिया पर ही केंद्रित रखा है। इसकी आंच एक केंद्रीय मंत्री तक पहुंच रही है और “भाजपा में इस्तीफे नहीं होते” के बावजूद इस खबर को दबाने में हिन्दी अखबारों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। मैं जो अखबार देख पाया उनमें दैनिक भास्कर अपवाद है (आज राजस्थान पत्रिका नहीं मिली)।

कोलकाता के इस अखबार ने, “मीटू फिंगर ऐट यूनियन मिनिस्टर” (मीटू की उंगली केंद्रीय मंत्री पर) शीर्षक से प्रकाशित ही नहीं किया है, टेलीग्राफ में पहले पेज पर लीड है। दूसरी ओर, दिल्ली के हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर खबरों के पहले पेज पर नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस में मीटू से संबंधित एआईबी (ऑल इंडिया कॉमेडी कलेक्टिव) की खबर जरूर पहले पेज पर है। उसमें हिन्दुस्तान टाइम्स के इस बयान की सूचना है कि अखबार के ब्यूरो प्रमुख और नेशनल पॉलिटिकल एडिटर ( राष्ट्रीय राजनीतिक संपादक) प्रशांत झा ने इस्तीफा दे दिया है। यह खबर दूसरे पेज पर जारी है पर उसमें भी एमजे अकबर की चर्चा नहीं है। अलग किसी पेज पर हो तो मेरी दिलचस्पी नहीं है। नवोदय टाइम्स ने इसे दूसरे पेज पर छापा है पर उसमें एमजे अकबर का नाम नहीं है।

टाइम्स ऑफ इंडिया में आज खबरों के पहले पेज पर आधा विज्ञापन है। और इसमें पहले पेज पर मीटू की चर्चा नहीं है। और जाहिर है केंद्रिय मंत्रिमंडल के एक वरिष्ठ सदस्य पर उंगली उठने का मामला पहले पेज से तो गायब है। मैं इस खबर को पहले पेज पर इसलिए देखना चाहता हूं क्योंकि यह सरकार “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” का नारा देती है और पढ़ी-लिखी बची हुई बेटियां जब अपने अधिकार की बात करती हैं तो पार्टी के विधायक और नेता चपेट में आते हैं। मीडिया बेटियों का साथ तो नहीं ही देता है उनकी खबर पहले पेज पर छापने से भी हिचक रहा है। रंग-बिरंग व आकार के विज्ञापन वाले अखबार में कोई खबर कहां छप जाए और क्यों छूट जाए कोई ठिकाना नहीं है और ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता है कि खबर अखबार में है ही नहीं हालांकि जो खबर पढ़ी नहीं गई उसका छपना किस काम का?

हिन्दी अखबारों में दैनिक जागरण ने मीटू को तो पहले पेज तो रखा है लेकिन ना शीर्षक में ना खबर में एमजे अकबर का जिक्र है। असल में यह खबर मुंबई डेटलाइन से ब्यूरो की है और फिल्मों पर ही केंद्रित है। इसमें क्या है मीटू भी बताया गया है। पहले पेज पर पेज 11 देखने की भी सूचना थी। पर खबर पेज 13 पर मिली। आजकल अखबारों का पहला पेज विज्ञापन के जैकेट से भरा रहता है और पहला पेज अक्सर तीसरा होता है। वहां एआईबी की खबर बॉक्स में है। यहां यह बता देना वाजिब होगा कि जागरण में भी पहले (यानी तीसरे) पेज पर आधा विज्ञापन है। संपादक बेचारा क्या करे? दैनिक हिन्दुस्तान में पहले पेज पर आधा विज्ञापन है और मीटू या एमजे अकबर की खबर नहीं है।

सभी अखबारों की खबरें देखने के चक्कर में नहीं पड़कर आज टेलीग्राफ ने क्या लिखा वह पठनीय है और मिसाल भी। अखबार ने लिखा है कि मीटू आंदोलन देश के कई मीडिया संस्थानों में हंगामा मचाने के बाद नरेन्द्र मोदी सरकार तक पहुंच गया है और एक पत्रकार ने पूर्व संपादक तथा कनिष्ठ विदेश मामलों के मंत्री एमजे अकबर का नाम लिया है। खबर के मुताबिक, पत्रकार प्रिया रमानी ने ट्वीट किया है, मैंने इसे लिखने की शुरुआत एमजे अकबर से जुड़ी अपनी कहानी से की थी। मैंने उनका नाम नहीं लिखा क्योंकि उन्होंने कुछ किया नहीं। वे वोग पत्रिका में 2017 में प्रकाशित अपने आलेख की चर्चा कर रही थीं। वोग का आलेख एक खुले पत्र के रूप में था, जो “प्रिय पुरुष बॉस” को संबोधित था।

इसमें नौकरी के लिए हुए एक कथित इंटरव्यू की चर्चा थी जो मुंबई के एक होटल के कमरे में हुई थी और लगा कि1994 में हुई होगी क्योंकि उस समय बॉस की आयु 43 बताई गई थी। वर्णन में लिखा है, उस रात मैं बच गई। आपने मुझे नौकरी पर रखा, मैंने कई महीने आपके लिए काम किया हालांकि मैंने कसम खा रखी थी कि मैं फिर कभी आपसे कमरे में अकेले नहीं मिलूंगी। अखबार ने इस लिखा है कि इस मामले में अकबर की प्रतिक्रिया नहीं ली जा सकी। वे नाईजीरिया में हैं और उनसे प्रतिक्रिया के लिए संदेश मंत्री को और उनके मंत्रालय – दोनों को भेजा गया था। इसके बाद अखबार ने लिखा है कि अकबर द टेलीग्राफ के संस्थापक संपादक हैं और 1989 तक अखबार से जुड़े थे।

अखबार ने लिखा है मीटू का अभियान गए साल शुरू होने के बाद गए हफ्ते फिर से शुरू हुआ है और उसमें अकबर पहले लोक सेवक हैं जिसका नाम आया है। समाचार पोर्टल फर्स्ट पोस्ट में एक अनाम लेखिका ने मुंबई स्थित एक होटल के कमरे में एक राष्ट्रीय दैनिक के संपादक के दुराचार का वर्णन किया है। लेखिका ने संपादक का नाम नहीं लिखा है पर यह बताया है कि वे एक महत्वपूर्ण सरकारी पद पर हैं। विवरण के अंत में कहा गया है मैं इस माहौल में उनका नाम नहीं ले सकती क्योंकि अपने महत्वपूर्ण काम के मद्देनजर वे समझते हैं के वे सुरक्षित है। टेलीग्राफ की खबर में हिन्दुस्तान टाइम्स के प्रशांत झा के इस्तीफे की सूचना के साथ बताया गया है कि एक आंतरिक सूचना में टाइम्स ऑफ इंडिया ने कहा है कि हैदराबाद के स्थानीय संपादक, केआर श्रीनिवास से वाजिब और निष्क्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए छुट्टी पर जाने के लिए कहा गया है।

बिजनेस स्टैंडर्ड ने मयंक जैन के खिलाफ जांच शुरू की है। अखबार ने लिखा है कि जब यह अभियान शुरू हुआ था तो कई पत्रकारों पर अनुचित आचरण के आरोप लगे थे और उनमें एक टेलीग्राफ के अनाम लेखक भी हैं। हालांकि अखबार की आंतरिक शिकायत समिति को अभी तक नाम नहीं मालूम हुआ है और ना यह पता है कि वह लेखक अभी भी अखबार में है कि नहीं। अखबार ने लिखा है कि सोमवार को पत्रकारों के समूह ने मीडिया संस्थानों से अपील की कि यौन उत्पीड़न के मामलों की जांच के लिए कानूनन आवश्यक कार्रवाई की व्यवस्था की जाए।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।