पत्रकारों पर हमले की दो घटनाओं के सिलसिले में तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की पुलिस ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआइ) का मज़ाक बना दिया है। दो मामलों में पुलिस को काउंसिल द्वारा जारी नोटिस की इस तरह अवमानना की गई है कि काउंसिल के अध्यक्ष व सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति सीके प्रसाद हैरत में हैं।
पहला मामला पिछले माह चिराला में दिनदहाड़े एक पत्रकार नागार्जुन रेड्डी पर हुए हमले का था जिसमें पीसीआइ की सुनवाई के दूसरे दिन प्रकाशम जिले के पुलिस अधीक्षक नदारद रहे। इस मामले में काउंसिल की जांच कमेटी ने पुलिस पर सवाल उठाए हैं। अध्यक्ष ने एक बार फिर जिला एसपी को समन भेजा है। उन्होंने प्रकाशम जिले के पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे पत्रकारों को ”जबरन गिरफ्तार” न करें।
दूसरा मामला हैदराबाद की साइबराबाद पुलिस का है जिसने पीसीआइ द्वारा स्वत: संज्ञान में लिए गए एक मामले पर जवाब नहीं दिया है। यह मामला फ्रंटलाइन पत्रिका के पत्रकार कुणाल शंकर से जुड़ा है जो रोहित वेमुला की बरसी पर हैदराबाद विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने गए थे और उन्हें प्रशासन ने गिरफ्तार करवा दिया था। प्रेस काउंसिल ने पुलिस समेत विश्वविद्यालय प्रशासन से चार हफ्ते में जवाब मांगा है। यह घटना बीते जनवरी की है।
विश्वविद्यालय के भीतर प्रवेश करने पर पत्रकार के खिलाफ प्रशासन ने एक एफआइआर दायर करवा दी थी। विश्वविद्यालय प्रशासन ने गढ़चिरौली पुलिस में शिकायत की थी कि उक्त पत्रकार बिना अनुमति के परिसर में घुस गया था जबकि परिसर में मीडिया का प्रवेश वर्जित है। पत्रकार की दलील थी कि वह एक फैकल्टी सदस्य के अतिथि के रूप में वहां आया था और गेट पर उसने अपना ड्राइविंग लाइसेंस भी बाकायदा जमा करवा दिया था। उसका कहना था कि परिसर में वह छात्रों की एक रैली को कवर कर रहा था।
प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष न्यायमूर्ति सीके प्रसाद ने बुधवार को विश्वविद्यालय प्रशासन से पूछा कि उसने परिसर में पत्रकारों का प्रवेश क्यों वर्जित किया है। प्रशासन का कहना है कि उसकी ऐसी नीति है कि किसी आयोजन को कवर करने के लिए मीडिया को अनुमति की जरूरत होती है। प्रो-वाइस चांसलर प्रोफेसर बीपी संजय के मुताबिक वे उच्च न्यायालय के एक निर्देश का पालन कर रहे थे जो बाहरियों द्वारा परिसर के भीतर किसी आयोजन को रोकने का प्रावधान करता है।
जस्टिस प्रसाद ने संजय को वह रिट याचिका जमा करवाने का निर्देश दिया है जिसके जवाब में उच्च न्यायालय ने उक्त निर्देश जारी किया था। जांच कमेटी का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने अदालत के निर्देश की गलत व्याख्या की है।
पत्रकार कुणाल शंकर को कैंपस स्थित अपने आवास में आमंत्रित करने के एवज में असिस्टेंट प्रोफेसर अनुपमा पोटलुरी को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है।