मीडिया विजिल को 7 रुपये रोज़ की मदद देकर पत्रकारिता की सूरत बदल सकते हैं आप !

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दोस्तो,

बीते क़रीब तीन साल से मीडिया विजिल.कॉम के ज़रिए हम ख़बरों की दुनिया में चल रहे गोरखधंधों को लेकर आपको सचेत कर रहे हैं। यही नहीं, तमाम उन ख़बरों और ज़रूरी जानकारियों को लेकर भी आपके सामने आ रहे हैं जिनके लिए कारोबारी मीडिया में कोई जगह नहीं बची है। इस बीच हमें बहुत प्यार और सम्मान मिला है। मीडिया विजिल को हिंदी जगत का एक ज़रूरी डिजिटल मंच माना जाने लगा है, न  सिर्फ़ सूचनाओं के लिए  बल्कि उन बहसों के लिए भी जिनसे ग़ुज़रकर ही किसी समाज में नवजागरण आता है।

नहीं, हम तटस्थ बिलकुल नहीं हैं। तथ्यों को पूरी तरह पवित्र मानते हुए हम प्रेमचंद के इस आदर्श से प्रभावित हैं कि दुनिया में शासकों और शासितों के बीच युद्ध जारी है और बतौर पत्रकार हमें शासितों के वक़ील की तरह काम करना है।

इसी के साथ यह भी स्पष्ट है कि हमारा पक्ष किसी पार्टी के साथ नत्थी नहीं है। हमारी प्रतिबद्धता भारतीय संविधान के प्रति है जिसने अभिव्यक्ति की आज़ादी के रूप में एक ऐसा हथियार दिया है जिसके बिना पत्रकारिता संभव नहीं है। स्वाभाविक है कि समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व जैसे संविधान के मूल भाव हमारे लिए किसी कसौटी की तरह हैं।

मीडिया विजिल की अब तक की यात्रा सिर्फ़ निजी प्रयास और कुछ मित्रों के सहयोग से संभव हुई है। हमने सारी गुल्लकें तोड़ डालीं और जेबें उलटते-पलटते हुए अब तक का सफ़र पूरा किया है, लेकिन अब इसे रफ़्तार देने के लिए संसाधनों की सख़्त ज़रूरत है। न हमारे पास कोई टीम है, न दफ़्तर और न अन्य ज़रूरी संसाधन। संसाधन जुटाने के जो स्वाभाविक उपलब्ध रास्ते हैं, वह अक्सर उसी ओर जाते हैं जहाँ पत्रकारिता लोभ-लाभ की बेड़ी में जकड़ दी जाती है। आज की हिंदी पत्रकारिता इसलिए भी इतनी गर्हित स्थिति में है क्योंकि उसको संचालित करने वाली पूँजी, एक ऐसे अभियान के साथ नत्थी है जिसका मक़सद भारत को पाँच हज़ार साल पुराने किसी पौराणिक युग में पहुँचाना है। यह पत्रकारिता भारत को आधुनिक और वैज्ञानिक चेतना से लैस बनाने के किसी भी प्रयास के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ चुकी है।

फिर समाज में झूठ, अंधविश्वास, युद्धोन्माद फैलाते हुए शासकों के वकील बनकर खड़े हाहाकारी कारोबारी मीडिया से मुक़ाबला कैसे हो ? बहुत सोचने पर इसका एक ही जवाब मिला – पाठक!

तो हम पाठक यानी जनता की भागीदारी से जनता का मीडिया खड़ा करने का अभियान शुरू कर रहे हैं। सोच यह है कि 50 करोड़ से आबादी वाले विशाल हिंदी भाषी समाज में ऐसे पाँच-दस हज़ार लोगों को जोड़ा जाए जो रोज़ाना 6-7 रुपये की मदद कर सकें। इतने रुपयों में एक कप चाय भी नहीं मिलती आजकल।

हम आपसे सिर्फ़ 200 रुपये महीने की मदद चाहते हैं। चूँकि हर महीने पैसा लेने में दिक़्क़त आएगी, इसलिए हम साल में एक बार आपसे एकमुश्त 2400 रुपये की मदद को चाहते हैं। वरना ख़बरों में जूझने से ज़्यादा वक़्त चंदा माँगने में चला जाएगा।

अगर हमें सिर्फ़ पाँच हज़ार लोग ऐसे मिल जाएँ जो साल में एक बार 2400 की मदद कर दें तो हम देशभर में संवाददाताओं का एक जाल तैयार कर सकते हैं और पेशेवर पत्रकारों की एक टीम को मीडियाविजिल से जोड़ सकते हैं। वेतन, दफ़्तर से लेकर तमाम तकनीकी ज़रूरतों के लिए कम से कम 10 लाख रुपये महीने की ज़रूरत है।

आप अपना सहयोग सीधे मीडिया विजिल ट्रस्ट के बैंक खाते में भेज सकते हैं जो मीडिया विजिल वेबसाइट चलाने वाली एक अलाभकारी संस्था है। आर्थिक मदद करने के लिए हर स्‍टोरी के अंत में और हर पेज पर एक बटन दिया गया है। इस बटन को आप दबाएंगे तो चंदा देने के लिए आपकी सहूलियत के तमाम विकल्‍प मौजूद मिलेंगे- डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, नेटबैंकिंग, कई किस्‍म के वॉलेट और सरकारी यूपीआइ ऐप। आप राशि भरें और जिस भी माध्‍यम से चंदा देना चाहते हों, उसका विकल्‍प चुन लें। दो मिनट के भीतर इस तरीके से आप हमारी मदद कर सकते हैं।

हम जानते हैं कि यह आसान नहीं है लेकिन नामुमकिन भी नहीं है। हमें उम्मीद है कि आप ना सिर्फ़ ख़ुद 200 रुपये महीने की मदद करेंगे बल्कि दोस्तों को भी इसके लिए प्रेरित करेंगे। जो मित्र एकमुश्त ज़्यादा रक़म देकर मीडियाविजिल के कोष को समृद्ध करना चाहते हैं, उनका स्वागत है।

एक साल में 2400 रुपये की मदद, न्यूनतम अपेक्षा है। अगर आप इससे ज़्यादा दे सकें तो स्वागत है। अगर 10 हज़ार रुपये या इससे ज़्यादा की मदद करना चाहें तो अपना पैन नंबर ज़रूर दें।

जो मित्र, पेमेंट गेटवे की जगह सीधे बैंक खाते में पैसा डालना चाहते हैं, वे मीडिया विजिल फेसबुक पेज पर संदेश भेजें या   mediavigilindia@gmail.com पर लिखें। आपको बैंक अकाउंट डिटेल भेज दिया जाएगा।

हमें यक़ीन है कि आप मीडिया विजिल के इस विचार से सहमत होंगे कि मौजूदा दौर में सच्ची पत्रकारिता करने के लिए पत्रकारों को आर्थिक संसाधान भी जुटाने होंगे। किसी सेठ के पैसे से पत्रकारिता करने का अंजाम यह है कि मुनाफ़े का प्रेत तमाम नामी पत्रकारों और संपादकों को अतीत का क़िस्सा बना चुका है।

आप आर्थिक मदद का सिलसिला इसी वक़्त शुरू कर सकते हैं। नीचे नीले रंग से लिखे ‘आर्थिक सहयोग करें’ पर क्लिक करें और भुगतान करें।

आर्थिक सहयोग करें

आपको बताते हुए खुशी हो रही है कि इस सुविधा के वेबसाइट पर लगने के बाद जो सबसे पहली मदद हमें बिना मांगे मिली, वह एक छात्र की है। लखनऊ के छात्र मनीष भारती ने हमें अपने खर्च से काटकर 500 रुपये का चंदा देते हुए भुगतान का कारण लिखा है- ”फॉर सपोर्टिंग सोशल जस्टिस” यानी सामाजिक न्‍याय का समर्थन करने के लिए। इससे बड़ा प्रोत्‍साहन मीडियाविजिल के लिए और कुछ नहीं हो सकता।

आपके सहयोग के इंतज़ार में

डॉ.पंकज श्रीवास्तव
संस्थापक संपादक