शिक्षा के निजीकरण के ख़िलाफ़ अमेरिका के कई राज्यों में फैला ‘लालकुर्ती आंदोलन!’

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अमेरिका के कई राज्यों की सड़कों पर आजकल लाल समुद्र लहरा रहा है। लाल कमीज़ें पहने लाखों  शिक्षक और अन्य शिक्षाकर्मी सड़कों पर हैं। छात्र और अभिभावक भी शिक्षा के निजीकरण के ख़िलाफ़  चल रहे इस आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं।  उनका आरोप है कि सरकार सार्वजनिक शिक्षा पर खर्च कम करती जा रही है। आंदोलन का नारा है-रेड फ़ॉर एड।  ‘लाल कमीज़’ विद्रोह का प्रतीक बन गई है जो भारत के ‘लालकुर्ती आंदोलन’ की याद दिलाता है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान के ‘ख़ुदाई खिदमतदार’ भी लालकुर्ती पहनते थे। अजीब बात है कि भारत का सूचना जगत यूँ तो अमेरिकी फ़ैशन में होने वाले मामूली परिवर्तन पर भी ‘कड़ी नज़र’ रखता है, लेकिन लाखों लोगों की ज़िंदगी से जुड़ा यह मुद्दा उसे नज़र नहीं आ रहा है। बहरहाल पढ़िए इस सिलसिले में मुकेश असीम की रिपोर्ट, जो शायद हिंदी में पहली है–संपादक  

 

मुकेश असीम

 

यूँ तो दक्षिण और पश्चिमी अमेरिका में शिक्षा से जुड़ा व्यापक समुदाय, सार्वजनिक शिक्षा में बजट कटौती, स्कूलों की बुरी हालत और शिक्षकों-अन्य कर्मियों के वेतन और सुविधाओं की समस्याओं पर लम्बे समय से उद्वेलित था। लेकिन अंदर-अंदर पल रहा आक्रोश अब आंदोलन के रूप में फूट पड़ा है। वेस्ट वर्जीनिया से शुरू हुए इस आंदोलन और हड़तालों की लहर ओक्लाहोमा, जॉर्जिया होते हुए वेस्ट वर्जीनिया, एरिजोना पहुँच गईं हैं| कोलोरेडो और नॉर्थ कैरोलिना में भी इसकी तैयारी जारी है।  शिक्षकों के संगठनों द्वारा आरम्भ किए गए इस संघर्ष में अन्य स्कूल-कर्मी जैसे स्कूल बस ड्राइवर भी शामिल हो रहे हैं| साथ ही बड़े पैमाने पर छात्र और उनके अभिभावक भी निजीकरण और धन कटौती से सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था को बचाने के लिए शिक्षकों के साथ एकजुटता दिखा रहे हैं|

‘Red for Aid’ के नारे के साथ शुरू हुए इन अभियानों में लाल कमीजें, टी शर्ट एक प्रतीक बन गईं हैं। लाल वस्त्र पहने लाखों प्रदर्शनकारियों से इन राज्यों की सड़कें पट गईं हैं| 11 अप्रैल को एक लाख दस हजार शिक्षकों, शैक्षणिक कर्मियों, छात्रों और अभिभावकों ने प्रदर्शनों में भाग लिया जिसके बाद अन्य विरोध कार्यक्रम हुए। छात्रों के समूहों जैसे स्कूलों में गोलीबारी विरोधी फीनिक्स मार्च फॉर आवर लाइव्जने भी शिक्षकों के प्रति समर्थन व्यक्त किया है। एरिजोना की पैरेंट टीचर असोसिएशन और ‘सेव आवर स्कूल्ज’ अभियान का भी समर्थन रेड फॉर एडको प्राप्त हुआ| इसके बाद 15 अप्रैल को हड़ताल पर शिक्षक-शैक्षणिक कर्मियों की राय जानने के लिए मतदान हुआ जिसमें 57 हजार कर्मियों में से 78% ने हड़ताल का समर्थन किया और 26 अप्रैल से यह हड़ताल आरम्भ हुई है|

मुख्य मुद्दा वर्षों से सार्वजनिक शिक्षा के लिए की जा रही फंड कटौती से इन स्कूलों की ख़राब होती हालत है| साथ ही चोर दरवाजे से निजीकरण भी शुरू कर दिया गया है जिसके तहत विशेष स्वायत्त चार्टर स्कूलोंको निजी निवेशकों और मुनाफाखोरों के हाथ में सौंपा जा रहा है| समान सार्वजनिक शिक्षा के स्थान पर ये स्कूल खर्च उठाने में समर्थ अभिजात वर्ग के लिए आरक्षित विशेष शिक्षा की व्यवस्था बन गए हैं जबकि आम जनता के बच्चों के लिए उपलब्ध सार्वजनिक स्कूलों को इरादतन बरबाद किया जा रहा है। इनमें सुविधाओं में भारी कटौती हो चुकी है। शैक्षणिक सामग्री, पुस्तकालयों, क्लास कक्षों, खेल मैदानों, प्रयोगशालाओं की स्थिति दयनीय है और शिक्षकों की भारी कमी है| साथ ही, शिक्षकों और कर्मियों के वेतन में भी समुचित वृद्धि नहीं हो रही है। एरिजोना में ही 2010 से वास्तविक वेतन 10% कम हुआ है|

यही वजह है कि शिक्षकों द्वारा शुरू इस संघर्ष को छात्रोंअभिभावकों और आम जनता का समर्थन हासिल हो रहा है| समाचार चैनल सीबीएस 5 टीवी के सर्वेक्षण के अनुसार एरिजोना जैसे दक्षिणी अनुदार राज्य में 63% लोग शिक्षकों की हड़ताल के समर्थन में हैं| टकसन हाई स्कूल के एक छात्र पीटर रॉबलेज़ के शब्दों में  मेरे छात्र मेरे साथ खड़े हैं, इसलिए मैं उनके साथ हड़ताल में खड़ा हूँ।

वारेन फॉकनर नाम के शिक्षक का यह ट्ववीट असंतोष की स्थिति का परिचायक है-

मैं एक पंजीकृत रिपब्लिकन और अनुदारवादी हूँ| मैंने 27 साल हाईस्कूल गणित पढ़ाया है और हड़ताल का विचार मेरे लिए कल्पनातीत था| पर इस गुरुवार मैं हड़ताल में शामिल हूँगा| बहुत हो चूका, मैं अपने काम से प्यार करता हूँ और जिन छात्रों को पढ़ाता हूँ उनसे प्यार करता हूँ| मैं हड़ताल नहीं चाहता, पर अपने छात्रों के लिए मैं हड़ताल में शामिल हो रहा हूँ|’   

लेकिन हर श्रमिक हड़ताल की तरह इस शिक्षक हड़ताल की राह भी आसान नहीं होने जा रही है| निजीकरण की हिमायत में पूंजी निवेश और राजनीति करने वाले इसके खिलाफ डटे हैं। चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स, रिपब्लिकन पार्टी और बहुत से पी.आर कम्पनियाँ इसे बदनाम करने के प्रचार अभियान में जुट चुकी हैं| सत्ता की ताकत भी उनके साथ है। हड़ताल के नेताओं के खिलाफ अतिवामपंथी उग्रवादी होने का प्रचार चालू है| स्कूलों के राजनीतिकरण का घिसा-पिटा आरोप तो है ही ,जिसे पूंजीवादी मीडिया भोंपू जोरों से रटना चालू कर चुका है।

नतीजा जो भी निकले, दोनों पक्षों की ओर से सचेत, संगठित मोर्चा सजाया जा चुका है| संघर्ष लम्बा और कटु होने वाला है| पूरे अमेरिका में सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था को बचाने के लिए फ़ैल रहे संघर्ष के लिए यह एक अहम लड़ाई है|   

 

  

मुकेश असीम स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।