बिहार के पटना में दैनिक जागरण के साहित्यिक आयोजन ”बिहार संवादी” पर संकट के बादल छाए हैं। दो दिनों तक 21 से 22 अप्रैल के बीच चलने वाला यह आयोजन शुक्रवार को अचानक विवादों में घिर गया जब जागरण ने अपने कई संस्करणों में जम्मू कश्मीर के कठुआ बलात्कार कांड संबंधी एक फर्जी ख़बर छाप दी। इसके बाद इस फर्जी खबर को हटाने के लिए कई ओर से अपील आई, किस नतीजा यह हुआ कि दिन भर अखबार की साइट पर यह खबर छुपा-छुपी खेलती रही। कभी कहा गया कि खबर हटा ली गई है तो कभी खबर वापस दिख जाती।
इस बीच हिंदी के कुछ संवेदनशील लेखकों ने जागरण के सवादी कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले लेखकों से अपील की कि वे आयोजन का बहिष्कार करें। शुक्रवार को दिन भी चले बहिकार कैंपेन का जबरदस्त असर हुआ है। मदन कश्यप, कर्मेंदु शिशिर, निवेदिता शकील, राकेश रंजन, आलोक धन्वा, तारानंद वियोगी और ध्रुव गुप्त ने आयोजन का बहिकार कर दिया है। माना जा रहा है कि आज भी कुछ लेखक बहिष्कार करेंगे।
इस बीच कई किस्म की प्रतिक्रियाएं सोशल मीडिया पर आई हैं जिन्हें हम संकलित कर रहे हैं। लेखक संगठनों में जन संस्कृति मंच ने बतौर संगठन इस कार्यक्रम का बहिष्कार करने की एक अपील जारी की है, जो सबसे अहम घटनाक्रम है।
जन संस्कृति मंच की अपील
जन संस्कृति मंच ने दैनिक जागरण के ‘बिहार संवादी’ नामक आयोजन के बहिष्कार की अपील की
20 अप्रैल 2018
जन संस्कृति मंच ने साहित्यकारों और साहित्यप्रेमियों से दैनिक जागरण द्वारा आयोजित ‘बिहार संवादी’ नामक आयोजन के बहिष्कार की अपील की है। कठुआ में आसिफा के साथ गैंगरेप और नृशंस हत्या तथा हत्यारों के पक्ष में शर्मनाक राजनीतिक तरफदारी का जब पूरे देश और दुनिया में विरोध हो रहा है, तब दैनिक जागरण द्वारा प्रमुखता से यह फर्जी खबर छापना कि ‘कठुआ मे बच्ची के साथ नहीं हुआ था दुष्कर्म’ न केवल पत्रकारिता के नाम पर कलंक है, बल्कि इस कुकृत्य को हत्यारों के साथ साझीदारी ही कहा जाएगा।
दैनिक जागरण इसके पहले भी पत्रकारिता की नैतिकता की अनदेखी करके सांप्रदायिक नफरत और उन्माद भड़काने वाली खबरें छापता रहा है। इस समय जबकि कुछ दक्षिणपंथी अंधभक्तों और मानसिक रूप से विकृत किए जा चुके लोगों को छोड़कर पूरे देश की जनता आसिफा के लिए न्याय की मांग कर रही है, तब उस नृशंसता को अंजाम देने वालों को बचाने के लिए दुष्कर्म न होने की खबर छापना पत्रकारिता के इतिहास में ऐसी कलंकित घटना है, जिसका शायद ही कोई दूसरा उदाहरण मिलेगा। जब हत्यारों का संयुक्त परिवार इस तरह मासूम बच्चियों को भी अपना शिकार बनाने से नहीं बाज आ रहा है और एक मीडिया घराना उसी में शामिल होकर ‘बिहार संवादी’ जैसा साहित्यिक-सांस्कृतिक आयोजन करे, तब साहित्यकार, संस्कृतिकर्मियों, कलाकारों, बुद्धिजीवियों समेत तमाम नागरिकों का फर्ज है कि इसका जोरदार विरोध करे। देश में लोकतांत्रिक मूल्यों और मनुष्यता को बर्बाद करने में जो साझीदार हैं, उनकी मूल मंशा संवाद की आड़ में प्रतिक्रियावाद का विस्तार ही हो सकता है। इसका विरोध मनुष्यता के वर्तमान और भविष्य के लिए बेहद ज़रूरी है।
राजेश कमल, संयोजक, जन संस्कृति मंच, पटना
राजेश चंद्र
एक ख़ानाबदोश समुदाय के ख़िलाफ़ साम्प्रदायिक नफ़रत के कारण अंजाम दिये गये कठुआ के बर्बर बलात्कार के मामले में दैनिक जागरण ने आज जांच एजेन्सी की चार्जशीट को दरकिनार कर एक झूठी रपट अपने कई संस्करणों में लगायी, जिसमें यह कहा गया था कि कठुआ में बच्ची से बलात्कार नहीं हुआ था। ज़ाहिर है यह रपट नफ़रत की आग में घी डालने, एक विशेष धार्मिक समुदाय के लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़का कर बलात्कारियों के पक्ष में माहौल बनाने और जांच तथा अभियोजन की न्यायिक प्रक्रिया पर दबाव डालने की मंशा से चलायी गयी। देखते-देखते भाजपा-आरएसएस और कट्टर हिन्दुत्ववादी संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं ने इस रपट को वायरल कर दिया।
जब इस झूठी रपट को लेकर दैनिक जागरण की निन्दा हुई तो उसने इस रपट को हटाने का नाटक शुरू किया। मूल बात यह है कि जिस साम्प्रदायिक-फ़ासीवादी एजेण्डे के अनुसार यह रपट प्रसारित की गयी, वह पूरी हो गयी और लाखों लोगों के मन में कठुआ बलात्कार की जांच और अभियोजन को लेकर एक नकारात्मक सोच पैदा हुई, जिसे तुरन्त दूर करना संभव नहीं है। सवाल यह है कि कोई अखबार जब इतनी ग़ैरज़िम्मेदारी दिखा सकता है, पत्रकारिता के न्यूनतम मूल्यों को भी तिलांजलि दे सकता है, जो नफ़रत फैलाने वालों का मोहरा बनने के लिये तैयार है, उसके प्रति समाज के सोचने-समझने वाले लोगों, साहित्यकारों-रंगकर्मियों का क्या रवैया होना चाहिये- उसका बहिष्कार करना या उसके बुलावे पर उसके मंच पर जाकर उसकी घृणित कारगुज़ारियों को वैधता प्रदान करना?
दैनिक जागरण द्वारा पटना में आयोजित हो रहे साहित्यिक कार्यक्रम संवादी में कल से उन जनवादी और कथित वामपंथी साहित्यकारों-संस्कृतिकर्मियों के भी शामिल होने की ख़बर आ रही है, जो समय-समय पर फ़ासीवाद और साम्प्रदायिकता से मोर्चा लेने की भंगिमा बनाते रहे हैं, और जनता के बीच ऐसी छवि पेश करते आये हैं, कि उन्हें देश के लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों की चिन्ता है। सवाल है कि आप भाजपा-आरएसएस की फ़ासिस्ट सरकार और दैनिक जागरण जैसे उसके गोदी अखबार को गलबहियां भी डालेंगे और जनवादी-लोकतांत्रिक भी बने रहेंगे, यह कैसे चलेगा? जिन साहित्यकारों का नाम संवादी के आयोजन से जुड़ा है, उन्हें अपना पक्ष साफ़ करना चाहिये कि वे जनता के पक्ष में हैं या बर्बर हत्यारों, बलात्कारियों और नफ़रत के क़ारोबारियों के पक्ष में।
वीरू सोनकर
भाड़ में जाये तुम्हारी ‘संवादी’
ऐसे लेखक भी हुए हैं जिन्होंने रिक्शा खींच लिया, भूखे रह लिया पर सिद्धांतो से कभी समझौता नही किया. कभी किसी अनैतिक काम के पक्ष में नही जुटे. कभी किसी गंदे हाथ से चेक नही स्वीकार किया. उन्होंने पांच सितारा होटल नही भोगे, वातानुकूलित यात्राएं नही की, उन्होंने चना-चबैना खा कर कविताएँ पढ़ी और कहानियां लिखी, देश की सत्ता से मुठभेड़ की. वह गरीबी में चमके और उसी गरीबी में स्वाहा हो गए. आज वह होते तो देखते की जिस साहित्य की गंगा को उन्होंने अपने कर्म-तप से शुद्ध किया था. उसे आज चंद लेखक किस कदर मलमूत्र से भर चुके हैं. वो इतने गिर चुके हैं कि उन्हें रेप के दोषियों के पक्ष में फर्जी खबरे गढ़ने वालो तक का आतिथ्य स्वीकार है. उनकी मनुष्यता उन्हें नही धितत्कारती है कि वह एक बच्ची के ऊपर हुए अन्याय पर ‘पोस्ट-जनित’ अपने प्रतीकात्मक विरोध से आगे जा कर बहिष्कार जैसा कुछ कर सकें. सामने भले ही कितना बड़ा संस्थान हो, भले ही पत्रकारिता की आड़ में अपने साहित्यिक मंसूबे पाल रहा ‘अनंत’ काल तक अपनी ‘विजय’ के सपने संजोता हुआ कोई इवेंट मैनेजर हो. ऐसे लेखक अब नही हैं जो एक डांट लगा कर कह सकें कि तुम और तुम्हारा मीडिया हाउस निहायत ही घटिया मानसिकता के हैं. अब ऐसे लेखक हैं जो यह सोच कर ही कांप उठते हैं कि चेक नही मिलेगी, तीन सितारा होटल में सोना नही हो पायेगा. किताब का भव्य विमोचन नही होगा, एक बहुत बड़ा साहित्यिक ग्रुप उनके खिलाफ हो जाएगा. हाय, वह फिर लक्जरी लेखक नही रहेंगे. हाय, फिर वह कैसे जिएंगे. हाय, फिर वह कैसे साँसे लेंगे ?
हँसी आती है जब ऐसे लेखक कहते हैं कि हम सत्ता से लड़ेंगे, हमे मनुष्यता बचाना है, एक स्त्री की गरिमा की लड़ाई लड़ना है आदि-आदि. इनके मुँह से कभी नही निकलेगा कि भाड़ में जाये तुम्हारी ‘संवादी’.
वरिष्ठ भाषाविद और हम सब के आदरणीय Rajendra Prasad Singh ने जागरण के बहिष्कार की अपील:
दैनिक जागरण ने पहले पन्ने पर, प्रमुखता से खबर छापी कि कठुआ में बच्ची से नहीं हुआ था दुष्कर्म। प्रायोजित खबर के विरोध में हमें सांकेतिक तौर पर एक दिन इस अखबार को खरीदना और पढ़ना नहीं चाहिए। 24 अप्रैल 2018 सिर्फ एक दिन इसे खरीदना और पढ़ना बंद करें, मिडिया को होश में लाने के लिए यह बहुत बड़ी क्रांति होगी।
तो याद रखें 24 अप्रैल 2018 !