अब नदियों पर किताब लिखने से पहले भी सोचना होगा कि कहीं राजद्रोह का मुकदमा न हो जाए। तमिलनाडु के एक लेखक के ऊपर केवल इसलिए राजद्रोह का केस कर दिया गया है क्रूोंकि उन्होंने सरकार की नदीजोड़ परियोजना के विरोध में 48 पन्ने की एक पुस्तिका लिख दी है। दिलचस्प यह है कि इस पुस्तिका की केवल 100 प्रतियां ही छपकर आई हैं।
टी जयरामन एंटी मीथेन प्रोजेक्ट मूवमेंट के मुख्य संयोजक हैं और ओएनजीसी के खिलाफ तंजावुर जिले में विरोध प्रदर्शन के चलते उन्हें 42 दिन जेल में बिताने पड़े थे। इस दौरान उन्होंने एक पुस्तिका नदी जोड़ परियोजना के विरोध में लिख मारी। वे ज़मानत पर बाहर आए थे और 22 अक्टूबर को ही उन्होंने अपने इस पुस्तिका का लोकार्पण किया था।
पुस्तिका का नाम है ”नदीगल इनयप्पम आरुगलाइ पिडिंगी वीरक्कुम इंडिया” (नदियों को जोड़ना और नदियों को छीनने व बेचने वाला भारत)। इसके बाद आइपीसी की धारा 153बी(1)(बी) के अंतर्गत राष्ट्रीय अखंडता और सम्प्रभुता के खिलाफ बोलने के मामले में उनके ऊपर केस कर दिया गया।
न्यूज़मिनट से बातचीत में वे कहते हैं, ””अगर मुझे अपने विचार जाहिर करने की छूट नहीं है तो यह लोकतंत्र कैसे है? क्या हमें सरकारी योजनाओं के खिलाफ लिखने की अब छूट नहीं है? केद्र अपनी आलोचना सह नहीं पा रहा जबकि राज्य सरकार अपने लोगों को भूल चुकी है औश्र बीजेपी सरकार के दबाव में है।”
बरसों विचार-विमर्श के बाद आखिरकार केंद्र सरकार नदियों को जोड़ने की परियोजना पर राज़ी हुई है। इसकी लागत फिलहाल 87 अरब डॉलर बतायी जा रही है। इसके तहत 60 नदियों को आपस में जोड़े जाने की योजना है जिसमें गंगा भी शामिल है। जयरामन ने लिखा है कि यह जनता से उसके जल संसाधन छीनने की एक साजिश है ताकि कॉरपोरेट को उनका नियंत्रण दिया जा सके।
आवरण तस्वीर साभार न्यूज़मिनट