अमन कुमार/दीपांकर पटेल
दिल्ली: दुनिया भर में वैज्ञानिक सोच पर हो रहे हमले और शिक्षा में सिकुड़ते वैज्ञानिक दायरे के विरोध में दुनिया भर के वैज्ञानिकों, समाजविज्ञानियों ने अपने-अपने शहर में शनिवार को एक मार्च का आयोजन किया। इसी क्रम में विज्ञान और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए दिल्ली में भी मंडी हाउस से संसद मार्ग तक एक मार्च का आयोजन किया गया। इस मार्च में विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर शामिल रहे। देश भर के 65 शहरों में ऐसे ही मार्च का आयोजन किया गया।
दिल्ली के मार्च में शामिल प्रोफेसर ध्रुव रैना ने कहा कि सरकार वैज्ञानिक सोच पर लगातार हमले कर रही है। सरकारें नहीं चाहतीं कि लोगों में वैज्ञानिक चेतना आए क्योंकि इससे सरकार को खतरा उत्पन्न होता है। हैदराबाद यूनिवर्सिटी में विज्ञान का एक छात्र आत्म्हतया कर लेता है। सरकार आत्महत्या के कारण जानने के बजाय अपनी पूरी जिम्मेदारी रोहित वेमुला की जाति को खोजने में लगाती है।
मेडिकल की एक शोध छात्रा ने कहा कि सरकार लगातार फेलोशिप में कटौती कर रही है, शोध के लिए आवश्यक सीटों को कम कर सोच रही है कि देश को आगे ले जाए जबकि ऐसा सम्भव ही नहीं है। विज्ञान द्वारा प्रमाणित है कि बंदर मानव का पूर्वज है लेकिन सरकार के एक मंत्री कहते हैं कि हमारे किसी पूर्वज ने कपि से इंसान बनने का जिक्र नहीं किया वहीं विज्ञान एवं तकनीक मंत्री डाक्टर हर्षवर्धन कहते हैं कि महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंस मानते थे कि आइंस्टीन की पूरी थ्योरी वेद में है। मन्त्रियों के बयान से सरकार की वैज्ञानिक समझ और विज्ञान पर उसके दृष्टिकोण को समझा जा सकता है।
मार्च में शामिल सभी लोगों ने सरकार से मांग की कि शिक्षा में विज्ञान के लिये अलग से बजट आवंटित किया जाए जो पूरे बजट का 3 प्रतिशत हो और शिक्षा के लिए 10 प्रतिशत का बजट आवंटित किया जाए जो देश के बेहतर भविष्य के लिए आवश्यक है।