
होली के दो दिन पहले से हैदराबाद युनिवर्सिटी को छावनी में तब्दील कर दिया गया था। पानी, बिजली, खाना, इंटरनेट और सारी बुनियादी आजादी परिसर में ख़त्म कर दी गई थीं। फिर हुआ 22 मार्च का सुनियोजित हमला, जिसमें तेलंगाना की पुलिस ने न केवल छात्रों को बल्कि छात्राओं को भी घसीट-घसीट कर पीटा। कई छात्र अस्पताल में भर्ती हुए। पूरा विश्वविद्यालय युद्धक्षेत्र बना हुआ था, लेकिन राष्ट्रीय मीडिया ने इस खबर को ब्लैकआउट कर दिया था।
ऐसे में वेब पत्रिका ”दि सिटिजन” ने विस्तार से इस घटना पर लीड स्टोरी प्रकाशित की जिसके देखते ही देखते 500 से ज्यादा शेयर हो गए। अचानक 25 मार्च को दिन में ११ बजे के आसपास फेसबुक ने इस स्टोरी का लिंक हटा दिया। इसकी सूचना वेबसाइट की संपादक सीमा मुस्तफा ने इस तरह से दी:
दिलचस्प यह रहा कि जितने शेयर मूल खबर के नहीं हुए थे, उससे कहीं ज्यादा शेयर खबर को फेसबुक पर प्रतिबंधित किए जाने के हो गए और वो भी 12 घंटे के भीतर, जिसके दबाव में आकर फेसबुक को रात में उक्त पोस्ट को बहाल करना पड़ा। सीमा मुस्तफा ने इस बारे में दोबारा सूचना जारी की:
दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इतने बड़े घटनाक्रम और सोशल मीडिया पर ऐन होली के बीच इतनी हलचल के बावजूद अब तक मुख्यधारा के टीवी चैनलों ने हैदराबाद की ओर से अपनी आंखें मूंद रखी हैं। पूरा मीडिया हैदराबाद युनिवर्सिटी में हुए सरकारी दमन की खबर को छुपाने में लगा था, लेकिन छोटे-छोटे निजी प्रयासों ने सोशल मीडिया पर इस घटना को जिंदा बनाए रखा है।