जेएनयू के लापता छात्र नजीब के बारे में फर्जी ख़बर छापने वाले टाइम्स ऑफ इंडिया के पत्रकार राजशेखर झा को खबर प्लांट किए जाने की सच्चाई सामने आने के बाद सोशल मीडिया में अपने खिलाफ चले अभियान के बावजूद कोई फ़र्क नहीं पड़ा है। यह शख्स माफ़ी मांगने के बजाय लगातार अपने खिलाफ लिखने वालों को ट्विटर पर ब्लॉक किए जा रहा है। आज सुबह इस पत्रकार ने अपना फेसबुक खाता बंद कर दिया और ट्विटर खाते तक केवल ”वेरिफाइड यूजर्स” को पहुंचने की व्यवस्था कर के उसे भी सीमित कर दिया है।
पिछले कुछ घंटों में इसने ब्रिटेन के बम धमाकों से जुड़े ट्वीट और रीट्वीट किए हैं। पत्रकारों की पुलिस पर निर्भरता, उससे करीबी रिश्ते और खबरें प्लांट करने की क्षमता को केवल इस तथ्य से समझा जा सकता है कि राजशेखर झा ने ब्रिटेन में हुए आतंकी हमले के सिलसिले में यूके की मेट्रोपोलिटन पुलिस का आधिकारिक ट्वीट को रीट्वीट किया है। पुलिस अपने आधिकारिक ट्वीट में जनता से हमलावरों के फोटो मांग रही है और दिल्ली में बैठा एक पत्रकार अपनी बीट से आगे बढ़कर सात समुंदर पार की ट्वीट को आगे बढ़ा रहा है। देखिए दिलचस्प नमूना:
If you have photos or film of the incident in #Westminster please make sure you pass them to police https://t.co/l9dn1FQr7B
— Metropolitan Police (@metpoliceuk) March 22, 2017
यूके पुलिस की एक और ट्वीट में कहा गया है कि पुलिस इस घटना को आतंकी हमला मानकर चल रही है, जब तक सच्चाई सामने नहीं आ जाती। क्या एक पत्रकार को पुलिस की मान्यता के आधार को पुष्टि देने की ज़रूरत होती है? देखिए राजशेखर झा का किया रीट्वीट:
Incident in #Westminster: We are treating this as a terrorist incident until we know otherwise
— Metropolitan Police (@metpoliceuk) March 22, 2017
यह सब बताने की ज़रूरत इसलिए पड़ रही है ताकि टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी फर्जी ख़बर के संभावित गंभीर परिणामों को समझा सके और उसके पीछे काम करने वाले तंत्र को समझा जा सके। नजीब तो मौजूद है नहीं, पुलिस उसे अब तक खोज नहीं पाई है और पुलिस को खुद टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर का खंडन देना पड़ा है। मान लीजिए कि नजीब (कोई और नाम सुविधा के लिए चुन सकते हैं) अगर मौजूद होता और इस अखबार में बिलकुल 21 मार्च वाली खबर छपती कि वह इस्लामिक स्टेट के बारे में गूगल और यूट्यूब पर खोजता था और उसके नेताओं के भाषण सुनता था, तब कैसा नज़ारा होता?
दिल्ली पुलिस को उसे गिरफ्तार करने में घंटा भर भी नहीं लगता। उसके खिलाफ़ साक्ष्य गढ़ लिए जाते, एक खबर दूसरी खबरों का आधार बन जाती और बड़े-बड़े हर्फों में करार दिया जाता कि आइएस का दिल्ली मॉड्यूल जेएनयू से ऑपरेट करता था। यह कितना खतरनाक हो सकता है, उसे बताने की ज़रूरत नहीं क्योंकि हालिया अतीत में हम दिल्ली के कश्मीरी पत्रकार इफ्तिखार गीलानी का हश्र देख चुके हैं जिस मामले में कई पत्रकारों ने गलत रिपोर्टिंग कर के आतंक के मामले में उन्हें जेल की हवा खिलवा दी थी।
राजशेखर झा को अगर वो मामला याद है, तो उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि पत्रकारिता के करियर में इस किस्म की एक भी प्लांटेड ख़बर का भूत आजीवन रिपोर्टर के पीछे पड़ा रहता है, जैसा एनडीटीवी की नीता शर्मा के साथ गीलानी केस के वक्त से होता आया है जब वे हिंदुस्तान टाइम्स में रिपोर्ट करती थीं। उन्होंने भी पुलिस की थियरी के हिसाब से खबर प्लांट कर गीलानी को दोषी बना दिया था, जिसकी थर्ड डिग्री सज़ा गीलानी को भुगतनी पडी। इस पत्रकारिता जगत में गीलानी आज भी दिल्ली के आइएनएस बिल्डिंग वाले रुी मार्ग इलाके में दिन-भर दौड़भाग करते पाए जाते हैं जबकि नीता शर्मा सर्वश्रेष्ठ रिपोर्टर का तमगा हासिल कर के अपने पाप से मुक्त हो चुकी हैं।
ऐसा नहीं है कि पाठक पुलिस की कहानी पर खबर करने वाले पत्रकारों को नहीं पहचानते। जब से राजशेखर झा की खबर का विरोध शुरू हुआ है, लोग दूसरे पत्रकारों को भी इस सिलसिले में याद कर रहे हैं। चकोलेबाज़ के नाम से एक ट्वीट आया है जिसमें गरीब मुसलमानों की जिंदगी बरबाद करने का आरोप कुछ पत्रकारों पर लगाया गया है। नीता शर्मा का भी उसमें नाम है।
Praveen Swamy, Nita Sharma, @rajshekhartoi , @bhartijainTOI writes fiction stories & ruin lives of Muslims. Gareeb ki baddua lagegi inhe. https://t.co/E8Zp2JMblE
— The Chakolebaaz (@Chakolebaaz) March 21, 2017
नीता शर्मा को 2010 में जब साल के सर्वश्रेष्ठ रिपोर्टर का पुरस्कार मिला था, उस वक्त अभिषेक श्रीवास्तव ने मोहल्लालाइव पर एक लेख लिखा था। नजीब के मामले में टाइम्स ऑफ इंडिया के राजशेखर झा ने गंदा काम किया है, वह कितना घातक हो सकता था उसे समझने के लिए एक बार फिर नीता शर्मा और इफ्तिखार गीलानी की इस कहानी को पढ़ा जाना चाहिए।
मीडियाविजिल पत्रकारिता के मूल्यों के नाम पर राजशेखर झा से अपील करता है कि वे सार्वजनिक तौर पर बताएं कि उन्होंने किसके कहने पर नजीब-आइएस वाली ख़बर प्लांट की थी। गीलानी के केस में सारे पत्रकारों ने गलत ख़बर चलाने पर माफी मांग ली थी, अकेले नीता शर्मा ने ऐसा नहीं किया। जब-जब किसी निर्दोष के खिलाफ़ कोई पत्रकार ख़बर प्लांट करेगा, तो नीता शर्मा का केस नज़ीर के तौर पर उठाया जाएगा। एक गलत खबर का भूत पीछा नहीं छोड़ता है, चाहे आप कितने ही तमगे क्यों न हासिल कर लें। यह बात राजशेखर को समझनी चाहिए।
फिलहाल पढ़ें 2010 में लिखा अभिषेक श्रीवास्तव का लेख नीता शर्मा को मिले पुरस्कार पर, जिससे साफ़ होगा कि राजशेखर झा की गलत ख़बर किस हद तक जाकर नजीब का जीवन तबाह कर सकती थी।
नीता शर्मा के अपराध पर बिछी एक पुरस्कार की चादर
अभिषेक श्रीवास्तव
एनडीटीवी की नीता शर्मा को साल के सर्वश्रेष्ठ रिपोर्टर का पुरस्कार मिलने की खबर बुधवार को आयी, तो सबसे पहले इफ्तिखार गिलानी का चेहरा आंखों में घूम गया। अभी पिछले 25 को ही तो कांस्टिट्यूशन क्लब के बाहर यूआईडी वाली मीटिंग में वह दिखे थे। वैसा ही निर्दोष चेहरा, हमेशा की तरह विनम्र चाल और कंधे पर झोला… शायद। खबर आते ही एक वरिष्ठ सहकर्मी उछले थे, गजब की रिपोर्टर है भाई… उसकी दिल्ली पुलिस में अच्छी पैठ है। जब मैंने इफ्तिखार का जिक्र किया, तो उन्होंने अजीब सा मुंह बना लिया।
एक रिपोर्टर की दिल्ली पुलिस में अच्छी पैठ का होना क्या किसी दूसरे रिपोर्टर के लिए जेल का सबब बन सकता है? टीवी देखने वाले नीता शर्मा को जानते हैं तो प्रेस क्लब और आईएनएस पर भटकने वाले गिलानी को। लेकिन टीवी और अखबारों के न्यूजरूम में कैद लोग शायद यह नहीं जानते कि अगर हिंदुस्तान टाइम्स में रहते हुए नीता शर्मा ने गलत रिपोर्टिंग नहीं की होती, तो शायद गिलानी को तिहाड़ में उस हद तक प्रताड़ना नहीं झेलनी पड़ती, जिसके लिए अमानवीय की संज्ञा भी छोटी पड़ जाती है। गिलानी की लिखी पुस्तक ‘जेल में कटे वे दिन’ पढ़ जाएं, तो जानेंगे कि इसी दिल्ली में कैसे एक पत्रकार खुद अपनी ही बिरादरी का शिकार बनता है। गिलानी की कहानी में खलनायक नीता शर्मा उतनी नहीं, जितने वे पत्रकार हैं, जिन्होंने उन्हें पुरस्कार दिया है, जिन्होंने खबरें लाने को पुलिस का भोंपू बनने का पर्याय समझ लिया है। जिन पत्रकारों ने कभी जाना ही नहीं कि आखिर आईएनएस-प्रेस क्लब और पुलिस हेडक्वार्टर के बीच की कड़ी उन्हीं के बीच जगमगाते कुछ चेहरे हैं।
‘दि हिंदू’ (तत्कालीन, अब ‘दि वायर’)के पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन ने नीता शर्मा के बारे में जो लिखा है, उसे जरा देखें :
…जहां तक उस क्राइम रिपोर्टर का सवाल है, जिसने दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल द्वारा फीड की गयी स्टोरी को छापा, उसने कभी कोई माफी नहीं मांगी। एक सहकर्मी की शादी में इस रिपोर्टर से मेरा परिचय 2004 में हुआ। मैंने जब उससे कहा कि इफ्तिखार गिलानी के मामले में उसने जो हिट काम किया है, उसे लेकर मेरी कुछ आपत्तियां हैं, तो उसने कहा, मैं किसी इफ्तिखार गिलानी को नहीं जानती। मैं नाराज तो जरूर हुआ, लेकिन सोचा कि उसे एक सलाह दे ही डालूं, ‘जिन पुलिस अधिकारियों ने उस स्टोरी को प्लांट करने में तुम्हारा इस्तेमाल किया, वे तो अपनी प्रतिष्ठा बचा कर निकल लिये, लेकिन जो तुमने किया, वह हमेशा एक पत्रकार के रूप में तुम्हारी प्रतिष्ठा पर दाग की तरह बना रहेगा – जब तक कि तुम इफ्तिखार से माफी नहीं मांग लेती।
सिद्धार्थ आगे लिखते हैं :
…नीता शर्मा की स्टोरी पुलिस के लिए महत्वपूर्ण थी क्योंकि यह ठीक ऐसे समय में आयी, जब अनुहिता मजूमदार और इफ्तिखार के अन्य मित्रों द्वारा तैयार एक याचिका खबरों में थी। 10 जून को इस बारे में एक छोटी सी खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में आयी थी और पुलिस व आईबी को तुरंत एहसास हो गया कि किसी भी किस्म की पत्रकारीय एकजुटता को सिर उठाते ही कुचल देना उनके लिए जरूरी है। संपादकों पर दबाव बनाया जा सकता था (और वे झुके हुए ही थे) लेकिन इफ्तिखार के पक्ष में किये जा रहे प्रचार अभियान के खिलाफ इससे बेहतर क्या हो सकता था कि उसी के द्वारा फर्जी स्वीकारोक्ति करवायी जाए कि वह आईएसआई का एजेंट रहा है। तुरंत ऐसी खबरों की बाढ़ आ गयी और अधिकांश भारतीय मीडिया में कलंकित करने वाली रिपोर्टें आने लगीं, जिसमें इफ्तिखार पर एक षडयंत्रकारी और आतंकवादी, तस्कर और जिहादी, यौन दुष्कर्मी और भारतीय जनता पार्टी के सांसद व कभी खुद पत्रकार रहे बलबीर पुंज के शब्दों में पत्रकार होने का लाभ ले रहे एक जासूस होने के आरोप लगाये जाने लगे।
ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट के तहत सात महीने जेल में रहे कश्मीर टाइम्स के तत्कालीन ब्यूरो प्रमुख इफ्तिखार गिलानी के मामले में रिपोर्टिंग के स्तर पर न सिर्फ नीता शर्मा ने, बल्कि आज तक के दीपक चौरसिया और दैनिक जागरण आदि अखबारों ने भी गड़बड़ भूमिका अदा की। मन्निका चोपड़ा ने गिलानी से एक इंटरव्यू लिया था (जो अब भी सेवंती नैनन की वेबसाइट ‘द हूट’ पर मौजूद है), जिसमें गिलानी ने बताया था कि दीपक चौरसिया ने उनके घर से लाइव रिपोर्ट किया कि गिलानी फरार हो गये हैं, जबकि वह घर में ही थे। दीपक चौरसिया ने सनसनीखेज खबर दी कि पुलिस ने गिलानी के पास से एक लैपटॉप बरामद किया जिसमें अकाट्य सबूत हैं। गिलानी ने साक्षात्कार में कहा, मेरे पास लैपटॉप है ही नहीं।
इस साक्षात्कार के कुछ अंश देखें:
…दैनिक जागरण ने लगातार अपमानजनक रिपोर्टें छापीं और इसकी कीमत मुझे तिहाड़ जेल में चुकानी पड़ी क्योंकि अधिकतर कैदी उसी अखबार को पढ़ते थे। तीन हत्याओं के आरोप में कैद एक अपराधी ने मुझ पर हमला कर दिया यह कहते हुए कि मैं भारतीय नहीं हूं, गद्दार हूं। उसने इन रिपोर्टों को पढ़ा था। कुछ हिंदी और उर्दू के अखबार खबर का शीर्षक लगा रहे थे, इफ्तिखार गिरफ्तार, अनीसा फरार। (अनीसा इफ्तिखार की पत्नी हैं)।
..लेकिन असल चीज जिसने मुझ पर और मेरे परिवार पर सबसे ज्यादा असर डाला, वह 11 जून को हिंदुस्तान टाइम्स में छपी चार कॉलम की स्टोरी थी जो कहती थी कि मैं आईएसआई का एजेंट हूं। यह खबर नीता शर्मा के नाम से थी। आश्चर्यजनक रूप से रिपोर्टर ने मेरे हवाले से बताया कि मैंने एक सेशन कोर्ट में सुनवाई के लिए पेश होते वक्त स्वीकार कर लिया है कि मैं एजेंट हूं और मैंने गैर-कानूनी काम किये हैं। बाद में एक पुलिस अधिकारी ने मुझसे पूछा कि क्या मैंने किसी रिपोर्टर से बात की थी, तो मैंने इनकार कर दिया। इसने वास्तव में मेरे परिवार को और मुझे काफी दुख पहुंचाया। अगले ही दिन मेरी पत्नी ने एचटी की कार्यकारी और संपादकीय निदेशक शोभना भरतिया से इसकी शिकायत की और कहा कि यह सब गलत है, उन्हें माफी मांगनी चाहिए। अखबार ने अगले दिन माफी छापी।
सिर्फ एचटी ने ही नहीं, गिलानी के रिहा होने पर कई पत्रकारों ने उनसे माफी मांगी, खेद जताया। सिर्फ नीता शर्मा उन्हें भूल गयीं और कामयाबी की सीढि़यां चढ़ते हुए एनडीटीवी पहुंच गयीं। आज वह सर्वश्रेष्ठ रिपोर्टर भी बन गयी हैं।
गिलानी पत्रकार हैं, सो मामला सामने आ गया। क्या हम कभी जान पाएंगे कि नीता शर्मा की दिल्ली पुलिस में अच्छी पैठ का शिकार कितने निर्दोष लोग अब तक बने होंगे। शायद नहीं।
सिद्धार्थ वरदराजन ने नीता शर्मा से मुलाकात में जो कहा, वह छह साल पहले (लेख लिखे जाने से छह साल पहले यानी 2004) की बात है। उन्हें उम्मीद नहीं रही होगी कि गिलानी वाले मामले पर गलत रिपोर्टिंग में जिस व्यक्ति को वह पत्रकार के रूप में प्रतिष्ठा पर एक दाग झेलने की बात कह रहे थे, उसे आज मीडिया पुरस्कार देगा। गलती उन्हीं की थी, क्योंकि उन्होंने नीता शर्मा को पत्रकार मान लिया था।
पत्रकार तो इफ्तिखार हैं, जिन्होंने हुर्रियत नेता गिलानी का दामाद होने के बावजूद अपनी कलम की रोशनाई पर रिश्ते की धुंध कभी नहीं छाने दी, जबकि नीता शर्मा जैसे मीडियाकर्मी उस चरमराती लोकतांत्रिक मूल्य व्यवस्था के एजेंट हैं जिसके पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे खंभे पिघल कर आज एक खौफनाक साजिश के दमघोंटू धुएं में तब्दील हो चुके हैं – जिसमें हर मुसलमान आतंकवादी दिखता है, हर असहमत माओवादी और हर वंचित अपराधी।