बाग़ों में बहार है…! 4 नवंबर को एनडीटीवी पर रवीश कुमार का कार्यक्रम वैसे तो सोशल मीडिया पर छाया हुआ है, लेकिन इसका महत्व पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए ज़्यादा है। भाषा और भावों को औज़ार बनाकर बड़ी बात बिना चीखे-चिल्लाये कैसे कही जा सकती है, यह इस कार्यक्रम से सीखा जा सकता है। पी.एम 2.5 में जो श्लेष (अलंकार)है, वह बेजोड़ है। प्रधानमंत्री मोदी के ढाई साल और वातावरण (समय) को प्रदूषित करने वाले पार्टिकुलेट मैटर (पी.एम) 2.5 का साम्य, इस दौर पर एक अहम संपादकीय टिप्पणी बन जाती है। यह चैनल पर सरकारी बैन के ख़िलाफ़ रचनात्मक प्रतिवाद की मिसाल है। मीडिया विजिल इस कार्यक्रम के लिए रवीश कुमार समेत एनडीटीवी की पूरी टीम को बधाई देता है और इसके महत्व को दर्ज करता है ताकि सनद रहे और (मीडिया छात्रों को) वक़्त-ज़रूरत काम आये—संपादक