सेल्फ़ी पत्रकारिता के नायक मोदी को दिखाया एक्सप्रेस संपादक ने आईना !

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चौथे खंबे के बतौर पत्रकारिता की साख जब बहुत नीचे पहुँच गई हो और सत्ता के सारे उपकरण पत्रकार को चाटुकार बनाने में इस्तेमाल हो रहे हों, तो इस घटना का ऐतिहासिक महत्व हो जाता है। 2 नवंबर को रामनाथ गोयनका सम्मान समारोह में इंडियन एक्सप्रेस के संपादक राजकमल झा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने जो कहा उसकी गूँज लंबे समय तक सुनाई देगी। नीचे राजमकल झा के इस भाषण का अनुवाद है और उसके भी नीचे उनका अंग्रेज़ी भाषण का वीडियो-

सरकार से आलोचना, पत्रकार का तमग़ा   

“आपके शब्दों के लिए बहुत आभार। आपका यहाँ होना एक मज़बूत सन्देश है। हम उम्मीद करते हैं कि अच्छी पत्रकारिता उस काम से तय की जाएगी जिसे आज की शाम सम्मानित किया जा रहा है, जिसे रिपोर्टर्स ने किया है, जिसे एडिटर्स ने किया है। अच्छी पत्रकारिता सेल्फी पत्रकार नहीं परिभाषित करेंगे जो आजकल कुछ ज़्यादा ही नज़र आ रहे हैं, जो हमेशा आपने आप से अभिभूत रहते हैं, अपने चेहरे से, अपने विचारों से जो कैमरे को उनकी तरफ रखते हैं, उनके लिए सिर्फrajkamal-quot-jpg-1 एक ही चीज़ मायने रखती है, उनकी आवाज़ और उनका चेहरा। आज के सेल्फी पत्रकारिता के दौर में अगर आपके पास तथ्य नहीं हैं तो कोई बात नहीं, फ्रेम में बस झंडा रखिये और उसके पीछे छुप जाइये।

आपके भाषण के लिए बहुत बहुत शुक्रिया सर, आपने साख/भरोसे की ज़रूरत को अंडरलाइन किया। ये बहुत ज़रूरी बात है जो हम पत्रकार आपके भाषण से सीख सकते हैं। आपने पत्रकारों के बारे में बहुत अच्छी बातें कही जिससे हम थोड़ा नर्वस भी हैं।

आपको ये विकिपीडिया पर नहीं मिलेगा, लेकिन मैं इंडियन एक्सप्रेस के एडिटर की हैसियत से कह सकता हूँ कि रामनाथ गोयनका ने एक रिपोर्टर को नौकरी से निकाल दिया जब उन्हें एक राज्य के मुख्यमंत्री ने बताया कि आपका रिपोर्टर बड़ा अच्छा काम कर रहा है।

इस साल मैं 50 का हो रहा हूँ और मैं कह सकता हूँ कि इस वक़्त जब हमारे पास ऐसे पत्रकार हैं जो रिट्वीट और लाइक के ज़माने में जवान हो रहे हैं, जिन्हें पता नहीं है कि सरकार की तरफ से की गयी आलोचना हमारे लिए इज़्ज़त की बात है।

इस साल हमारे पास इस अवार्ड के लिए 562 एप्लीकेशन आयीं। ये अब तक की सबसे ज़्यादा एप्लीकेशन हैं। ये उन लोगों को जवाब है जिन्हें लगता है कि अच्छी पत्रकारिता मर रही है और पत्रकारों को सरकार ने खरीद लिया है। अच्छी पत्रकारिता मर नहीं रही, ये बेहतर और बड़ी हो रही है। हाँ, बस इतना है कि बुरी पत्रकारिता ज़्यादा शोर मचा रही है जो 5 साल पहले इतना नहीं मचाती थी ।”

राजकमल झा

संपादक, इंडियन एक्सप्रेस