वरिष्ठ पत्रकार और इंडिया टुडे चैनल के सलाहकार संपादक की राजदीप सरदेसाई ने आज कुछ चैनलों को समाज में विभाजन पैदा करने के लिए निशाना बनाया । उन्होंने जो लिखा उसका आशय कुछ यह था–‘कुछ चैनल समाज में विभाजन पैदा कर रहे हैं। इस पेशे (पत्रकारिता) का हर शख्स जानता है कि वे कौन हैं, लेकिन फिर भी हम ख़ामोश हैं। ऐसे में नेताओं को दोष देने का क्या मतलब है ?”
दैखा जाये तो राजदीप ने वह कहा जिसे समाज का संवेदनशील तबका अरसे से महसूस कर रहा है। लेकिन राजदीप ने इस ट्वीट में दूसरों से जो अपेक्षा की उस पर ख़ुद खरे नहीं उतरे। उन्होंने किसी चैनल का नाम नहीं लिया। ऐसे में आईबीएन 7 में उनके साथ काम कर चुके पत्रकार पंकज श्रीवास्तव समेत कुछ लोगों ने उनसे सीधे सवाल किया–
चैनलों का नाम लीजिए सर…काँख दबी रहे और मुट्ठी तनी रहे, नहीं चलेगा ! https://t.co/DZvIfzYDku
— डॉ.पंकज श्रीवास्तव (@PankajSDr) June 15, 2016
यह कोई बड़ी माँग नहीं थी। राजदीप जिस ख़माशो को निशाना बना रहे थे, उसको तोड़ना उनके लिए मुश्किल नहीं होना चाहिए था। लेकिन राजदीप ने ऐसा कोई साहस दिखाने के बजाय अपना ट्वीट ही हटा लिया। जब इस पर सवाल हुआ तो उन्होंने साफ कहा कि उनमें फ़िलहाल नाम लेने की हिम्मत नहीं है।
इसमें कोई शक नहीं चैनल जिस तरह समाज को जोड़ने के बजाय सांप्रदायिक विभाजन को हवा देने में जुटे हैं, उस पर मज़बूती से सवाल उठाने की ज़रूरत है। यह सिर्फ़ टीआरपी का मसला नहीं, बल्कि सांप्रदायिक राजनीति को जानबूझकर ताकत देना है। राजदीप जैसे पत्रकार एडिटर्स गिल्ड के अध्यक्ष भी रह चुके हैं, हालात की गंभीरता का उन्हें अंदाज़ा है, लेकिन अफ़सोस, वे कोई जोख़िम या मोर्चा लेने को तैयार नहीं हैं। इतिहास के इस मोड़ पर यह चुप्पी लंबे समय तक शोर करती रहेगी।
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