2017 की शुरुआत में बीबीसी के महानिदेशक लॉर्ड हॉल ने ‘स्लो न्यूज़ अप्रोच’ के तहत ख़बर बताने पर ज़ोर दिया था, जिसकी काफ़ी चर्चा हुई थी। उन्होंने कहा था कि बीबीसी को ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ के पीछे भागने के बजाय कोशिश करनी चाहिए कि उसके दर्शक और श्रोता, दुनिया को बेहतर तरीक़े से समझ सकें।
ऐसे वक़्त में जब मिनट-मिनट में ख़बर ब्रेक की जा रही हो, लॉर्ड हॉल की बात पर कान कौन देता ? भारतीय मीडिया, ख़ासतौर पर यहाँ के कॉरपोरेट मीडिया से तो इस मामले में वैसे ही कोई उम्मीद नहीं की जा सकती, जहाँ ‘स्पीड न्यूज़’, ‘फटाफट न्यूज़’ या ‘न्यूज़ शतक’ जैसे नामों वाले कार्यक्रम हों, जिनमें दर्शकों पर ख़बरों की बमबारी होती है।
फिर भी, कुछ लोग अपनी साख बचाने की कोशिश करते दिख ही जाते हैं। इनमें एक नाम राजदीप सरदेसाई का भी है। लेकिन दिन पहले उन्होंने भी जल्दबाज़ी में एक ग़लती कर दी थी। उन्होने ट्वीट किया था कि बीएचयू के वीसी प्रो.गिरीशचंद्र त्रिपाठी ने पीएम मोदी के रोड शो में शिरकत की थी।
मीडिया विजिल ने इस प्रकरण पर विस्तार से ख़बर छापी थी जिसमें कुलपति का खंडन शामिल था। कुलपति ने धमकी दी थी कि माफ़ी नहीं माँगने पर वे अदालती कार्रवी करेंगे। नतीजतन दो दिन बाद पुराने ट्वीट हटाकर, राजदीप ने कुलपति से माफ़ी माँगते हुए नया ट्वीट किया-
राजदीप जैसे वरिष्ठ पत्रकार के लिए यह वाक़ई लज्जित करने वाली बात है। वैसे, यह न्यूज़रूम के अंदर के हाल का बयान भी करता है। राजदीप ने जिस प्रोड्यूसर के कहने पर ट्वीट किया था, उसे एएनआई की वीडियो फ़ीड देखकर ‘ऐसा लगा’ कि मोदी के साथ रोड शो में कुलपति त्रिपाठी मौजूद हैं। उसने अपने ‘लगने’ को जाँचने का प्रयास नहीं किया। ख़बर बना दी और राजदीप ले उड़े। टीआरपी के लिए परेशान प्रोड्यूसर की जल्दबाज़ी तो समझी जा सकती है, लेकिन क्या राजदीप को ऐसा व्यक्तिगत आक्षेप वाला ट्वीट करने के पहले ‘क्रॉसचेक’ नहीं करना चाहिए था ?
पत्रकारिता का एक बुनियादी उसूल है कि व्यक्तिगत आक्षेप होन पर व्यक्ति को सफ़ाई देने का मौक़ा भी दिया जाता है। इसके लिए उस व्यक्ति से संपर्क किया जाता है। अगर ट्वीट करने के पहले राजदीप इस बुनियादी उसूल को ध्यान में रखते तो शायद उन्हें इस शर्म से ना गुज़रना पड़ता। ख़ुद उनके सहयोगी संपादक राहुल कँवल ने कुलपति के खंडन और माफ़ी की माँग का ट्वीट किया-
वैसे भी, राजदीप की उम्र अब ट्विटर पर ‘चिड़िया उड़’ खेलने की नहीं रह गई है। ‘स्लो न्यूज़ अप्रोच’ उनके काम आ सकता है। यह बीबीसी की बपौती नहीं है।
.बर्बरीक