शिक्षण संस्थानों में 200 प्वाइंट रोस्टर की जगह 13 प्वाइंट रोस्टर के आधार पर आरक्षण के ख़िलाफ़ महीनों से आंदोलन चल रहा है। कहा जा रहा है कि इससे आरक्षित वर्गों के अभ्यर्थियों को ज़बरदस्त नुकसान हुआ है। यह एक तरह से आरक्षित पदों पर डाका है। हाईकोर्ट के आदेश के बहाने यह लूट जारी है जबकि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इस बीच तमाम विश्वविद्यालयों में धड़ाध़़ड़ नियुक्तियाँ हो रही हैं । देश की राजधानी दिल्ली में डूटा (दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ) के बैनर तले कई विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं, लेकिन रोज़ाना ‘हिंदू-मुसलमान ‘ जैसे मुद्दों पर वबाल काट रहे मीडिया ने इस मुद्दे को कोई तवज्जो नहीं दी।
ये मुद्दा कल सर्वदलीय बैठक में भी उठा था और आज मानसून सत्र के पहले दिन समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेंद्र यादव ने इस मुद्दे को ज़ोरशोर से उठाया। एनडीए में शामिल अपना दल की नेता और मोदी सरकार में मंत्री अनुप्रिया पटेल भी इसके ख़िलाफ़ बोल रही हैं। कल इस मुद्दे पर संसद मार्ग पर प्रदर्शन होगा और संसद में भी हंगामे की आशंका है। डर है कि कहीं मीडिया अचानक नींद से जागे और इसे अराजकता न कहने लगे। तब ऐसा करने वाले चैनलों और अख़बारों से ज़रूर पूछिएगा कि अब तक कहाँ और क्यों सोए पड़े थे। मीडिया विजिल के पाठकों को रोस्टर प्रणाली और उसे लेकर हो रहे घपले के बारे में दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक लक्ष्मण यादव लगातार बताते रहे हैं। पेश है उनकी एक ताज़ा टिप्पणी जिसके नीचे धर्मेद्र यादव का भाषण भी सुना जा सकता है- संपादक
लक्ष्मण यादव
लोकतंत्र का सबसे बड़ा सत्ता प्रतिष्ठान, आम जन की आवाज़, चुने हुए प्रतिनिधियों की जनता के प्रति जवाबदेह संसद में अब हमें अपनी आवाज़, अपने मुद्दे की गूंज सुनानी है. आज से मानसून सत्र शुरू हो रहा है. हमने दर्जनों सांसदों से अपील की है, कल सूत्रों से पता चला कि ‘सर्वदलीय बैठक में ही रोस्टर का मुद्दा उठा और कई दलों के सांसदों ने लोकसभा अध्यक्षा से कहा कि अगर उच्च शिक्षा में सामाजिक न्याय के हत्यारे रोस्टर पर सरकार कोई कदम नहीं उठाती है, तो हम संसद चलने नहीं देंगे. क्योंकि ये बहुत ख़तरनाक रोस्टर है. ये उच्च शिक्षा में सामाजिक न्याय को पूरी तरह बर्बाद कर देगा.’ आज कल में संसद से शायद सकारात्मक पहल सुनाई दे.
साथियो! अब हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम संसद की सडकों को अपने हुजूम से भर दें. सामाजिक न्याय के सवाल पर, उच्च शिक्षा के निजीकरण, ऑटोनामी, फंड-कट, सीट-कट जैसे तमाम मस्ल्लों पर हमारी लड़ाई मुल्क को बचाने की लड़ाई है. अगर विश्वविद्यालय बर्बाद हो गए, अगर उनमें वंचितों-शोषितों को मौक़ा नहीं मिला, तो ये इस मुल्क की सबसे भयावह क्षति होगी. क्योंकि विश्वविद्यालयों में ही तो सवाल करने और आलोचना के ज़रिये एक बेहतर मुल्क बनाने का सकारात्मक प्रयास करने की ट्रेनिंग मिलती है. आइये, इस मुल्क को और इसमें सबकी हिस्सेदारी को बचाने के लिए संसद की सडकों पर अपने अधिकार के लिए घेराव करें.
तो आइये! कल अपने अधिकारों के लिए हम संसद घेरने चलते हैं. लोहिया ने कहा था कि “जब सड़कें ख़ामोश हो जाती हैं, तो संसद आवारा हो जाती है.” इसलिए कल अगर हम अपनी संख्या से एक दबाव बनाने में कामयाब रहे तो संसद और सरकार को झुकना पड़ेगा.
आइये! कल जब हमारे चुने हुए सांसद सदन में उच्च शिक्षा में सामाजिक न्याय विरोधी रोस्टर पर सरकार को घेर रहे होंगे, तब हम सड़क को घेरें, संसद घेरें.
आप सभी से अनुरोध है कि भारी संख्या में अपने साथियों, दोस्तों के साथ ज़रूर पहुंचें. कल दोपहर 12 बजे, संसद मार्ग, नई दिल्ली. …….
इंक़लाब ज़िंदाबाद
सामाजिक न्याय ज़िंदाबाद
जय भीम जय बिरसा जय मंडल