पटना से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान के 1 अगस्त के अंक में छपी एक तस्वीर के गलत कैप्शन ने हिंदी के लेखन जगत में विवाद खड़ा कर दिया है। इस विवाद के सूत्रधार कर्मेंदु शिशिर नाम के एक बिहार निवासी आलोचक हैं और निशाने पर हैं दिल्लीवासी कवि मंगलेश डबराल। यूं तो मंगलेश डबराल और कर्मेंदु शिशिर के बीच विवादों का पुराना अतीत है, लेकिन इस बार कवि को घेरने के चक्कर में आलोचक अखबारी फिसलन पर रपट गया है। दिलचस्प यह है कि हकीकत सामने आने के बावजूद कर्मेंदु शिशिर ने अपनी गलती स्वीकार नहीं की है और वे मंगलेश डबराल के खिलाफ दुष्प्रचार में जुटे हुए हैं।
किस्सा यूं है कि पटना के प्रेमचंद रंगशाला में संगीत नाटक अकादमी द्वारा प्रेमचंद जयंती पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। कवि मंगलेश डबराल जन संस्कृति मंच के आयोजन में हिस्सा लेने के लिए पटना गए हुए थे। दोनों ही कार्यक्रम पहले से तय थे और बिहार में सरकार की पलटा-पलटी इसी बीच हुई। संगीत नाटक आदमी के अध्यक्ष आलोक धन्वा का कार्यकाल डेढ़ महीने पहले समाप्त हो गया था। आमंत्रण अकादमी के सचिव तारानंद वियोगी की ओर से था। मंगलेश डबराल वहां गए।
अगले दिन दैनिक हिंदुस्तान ने पटना लाइव के पन्ने पर आयोजन की रिपोर्ट छापी। उसमें एक तस्वीर थी जिसमें आलोक धन्वा और मंगलेश डबराल दीप प्रज्ज्वलित करते दिख रहे हैं। अखबार ने कैप्शन लिखा, ”प्रेमचंद रंगशाला में मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम का आगाज करते मंत्री कृष्ण कुमार ऋषि, आलोक धन्वा व अन्य अतिथिगण।” दीप प्रज्जवलित करने वालों में आलोक धन्वा और मंगलेश डबराल हैं जबकि साथ खड़े बाकी लोगों में रंगकर्मी जावेद अख्तर, रामधारी सिंह दिवाकर, खगेंद्र ठाकुर, तारानंद वियोगी और पीछे खड़े एक व्यक्ति हैं जिनका चेहरा स्पष्ट नहीं है। बताया गया है वे अकादमी के कोई अफ़सर हैं। बड़ी बात ये है कि जिस कला-संस्कृति मंत्री का नाम लिया गया है, वह फोटो में मौजूद नहीं है।
दरअसल, जिस मंत्री का नाम कैप्शन में है, उसे महज दो दिन पहले कला व संस्कृति मंत्रालय का पोर्टफोलियो मिला था। वह कार्यक्रम में उपस्थित नहीं था फिर भी अख़बार ने उसका नाम लिख, तो इसकी एक वजह यह हो सकती है कि उसके कार्यालय संवाददाता ने मंगलेश डबराल को ही ‘मंत्री’ समझ लिया हो क्योंकि उनके अलावा कार्यक्रम का ‘आग़ाज़’ (दीप प्रज्ज्वलन) तो आलोक धन्वा ही कर रहे थे। वैसे भी पूरी ख़बर में कहीं भी मंत्री का जि़क्र नहीं है, केवल कैप्शन में है। चूंकि मंत्री नए हैं, इसलिए बहुत से लोगों को उनके चेहरे की पहचान भी नहीं है। अखबार के डेस्क से यह बड़ी चूक हुई है।
बहरहाल, फोटो छपते ही कर्मेंदु शिशिर ने सबसे पहले इसे लपका और बिना जांच-पड़ताल किए इसे फेसबुक पर निम्न टिप्पणी के साथ साझा कर दिया, ”इसमें अभी अभी बिहार के भाजपा कोटे से कला मंत्री बने ऋषिदेव (यह नाम गलत है, मंत्री का नाम कृष्ण कुमार ऋषि है) के साथ हिन्दी के नोबल प्राइज के विकल प्रतीक्षित महाकवि मंगलेश डबराल जी जो मुझे संघी बताते रहे। साथ में आलोक जी और खगेन्द्र जी।” शायद इतना काफी नहीं था कि शिशिर ने दो और पोस्ट इस तस्वीर के साथ डाली निम्न टिप्पणियों के साथ:
- ज्यादा साफ तस्वीर रविरंजन जी ने भेजा है।
- यह साफ तस्वीर मेरे मित्र रविरंजन जी ने भेजा है।
एक ही तस्वीर को तीन बार डालने की मंशा बिलकुल साफ़ थी। यह विवाद खड़ा करने की कोशिश थी और कुछ देर के लिए वे इसमें कामयाब भी हुए। अगले दो दिन में यह मुद्दा फेसबुक पर घूमने लगा। जब मंगलेश डबराल को इस बारे में पता चला तो उन्होंने अव्वल तो मंत्री के वहां होने की बात को गलत बताया और बाकी आरोपों को भी खारिज करते हुए फेसबुक पर निम्न टिप्पणी की है:
”बिहार संगीत नाटक अकादेमी के प्रेमचंद-आयोजन में भाजपा के संस्कृति विभाग का ही नहीं, किसी भी विभाग का कोई मंत्री नहीं था. वहां खगेन्द्र ठाकुर, रामधारी सिंह दिवाकर, रंगकर्मी जावेद अख्तर, आलोकधन्वा और सचिव तारानंद वियोगी थे. और मैं था. मैंने अकादेमी से कोई किराया नहीं लिया, मैं जसम की तरफ से पटना गया था- उसके राष्ट्रीय सम्मलेन में शामिल होने. टिकट का पैसा मुझे अभी जसम को लौटाना है. अकादेमी ने और लोगों की तरह मुझे भी नियमानुसार पारिश्रमिक दिया, इसके अतिरिक्त न मुझे कुछ मिला और मिलता भी तो मैं नहीं स्वीकार करता, हालाँकि मुझे पता है कि हवाई यात्रा की अनुमति होती है. पता चला है कि यह कुत्सित-विरूप झूठ बिहार के एक तथाकथित और अविश्वसनीय व्यक्ति बन चुके आलोचक की तरफ से फैलाया जा रहा है जिनका पूरा जीवन कुंठाओं में बीत गया है और जो इस उम्र में भी मेरे विरुद्ध प्रचार करने में किसी भी हद तक जाते रहे हैं. और हाँ, आलोकधन्वा का कार्यकाल बिहार में नयी सरकार आने से बहुत पहले समाप्त हो गया था. अंत में, अच्युतानंद की कविता को पुरस्कार मिलने पर शुभकामना. दोस्तों से निवेदन है कि वे पहले खबरों की विश्वसनीयता जांच लें.”
कर्मेंदु शिशिर ने इस उद्घाटन के बाद भी अपनी लीक नहीं छोड़ी और उन्होंने फेसबुक पर लिखा:
”सर्किट हाऊस जसम का था? तीन दिन ठहराव जसम ने चुकाये? संस्कृति मंत्रालय वामपंथ के अधीन है? कुंठा तो बार बार टपक जा रही है। दस हजार रुपये किस मद के थे? दैनिक हिन्दुस्तान मेरे बाप की जागीर है क्या जो मेरे कहे से तस्वीर छाप दी। वह भी कुंठित होगा? यह याद रखिए फ्यूज बल्ब हमेशा कूड़े के ढेर में मिलते हैं।”
ज़ाहिर है, कोई अख़बार किसी के ”बाप की जागीर” नहीं हो सकता लेकिन अगले ही दिन (2 अगस्त) जिस तरीके से पटना लाइव के पन्ने पर ठीक उसी जगह कर्मेंदु शिशिर का विशाल लेख प्रकाशित हुआ, वह सवाल खड़े करता है कि क्या फोटो के विवाद को जानबूझ कर जन्म दिया गया था।
इस बीच कवि मंगलेश डबराल ने मीडियाविजिल से बातचीत में बताया कि इस मानहानि के लिए वे शिशिर के ऊपर मुकदमा करने जा रहे हैं। इस बारे में उन्होंने फेसबुक पर भी लिखा है।