”अखबारों का असली कर्तव्य शिक्षा देना, लोगों से संकीर्णता निकालना, सांप्रदायिक भावनाएँ हटाना, परस्पर मेल-मिलाप बढ़ाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता बनाना था, लेकिन इन्होंने अपना मुख्य कर्तव्य अज्ञान फैलाना, संकीर्णता का प्रचार करना, सांप्रदायिक बनाना, लड़ाई-झगड़े करवाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता को नष्ट करना बना लिया है ” – भगत सिंह
भगत सिंह ने अख़बारों के लिए जो कसौटी रखी थी, उस पर अगर आज के मीडिया को कसा जाये तो वह बुरी तरह कसमसाने लगेगा। लेकिन इतनी उम्मीद तो फिर भी की जानी चाहिए कि वह कम से कम पाठकों में धार्मिक आधार पर भेद-भाव नहीं करेगा। अगर किसी धर्म के लोगों को यह लगने लगे कि कोई ख़ास अख़बार किसी दूसरे धर्म के लोगों की नुमाइंदगी करता है, तो यह न पत्रकारिता के लिए अच्छा है और न लोकतंत्र के लिए। पत्रकारिता नागरिक समुदाय के लिए होती है, इस या उस धार्मिक समुदाय के लिए नहीं।
अफ़सोस कि ”प्रभात ख़बर” जैसे नामी-गिरीमा और “अख़बार नहीं आंदोलन” का दावा करने वाले अख़बार ने रामनवमी के दिन पटना में हनुमान चालीसा बाँटकर ऐसा ही संकेत दिया है। बाक़ायदा ख़बर छापकर बताया गया कि यह सिलसिला 2010 से जारी है ! सवाल यह है कि क्या प्रभात ख़बर ने कभी बाइबिल, क़ुरआन और गुरुग्रंथ साहब का भी वितरण किया ? और क्या ऐसा करना किसी मीडिया संस्थान का काम है ?
देश के प्रसिद्ध और सरोकार वाले पत्रकारों में शुमार किये जाने वाले हरिवंश के अख़बार का यह स्वरूप निश्चित ही बड़ी बहस की माँग करता है। हाँलाकि तकनीकी दृष्टि से अब वे अख़बार में नहीं हैं, लेकिन इस पर उनकी टिप्पणी की प्रतीक्षा ज़रूर है। हरिवंश को नीतीश कुमार ने राज्यसभा भेज दिया है लेकिन वहाँ वे आँख मूँदकर बैठे रहेंगे, ऐसी कोई शर्त तो नहीं ही होगी। नीचे पढ़िये, कथकार और पत्रकार अरविंद शेष ने प्रभात ख़बर के इस अँधेरे पक्ष पर क्या लिखा है–
हनुमान चालीसा पत्रकारिता मठ…!
यह खबर भूतपूर्व ‘अखबार नहीं आंदोलन’ वाले प्रभात खबर के पटना संस्करण में छपी है। इस अखबार के संपादक हरिवंश रहे हैं! अब वे भले ही तकनीकी तौर पर संपादक नहीं हैं लेकिन अखबार में उनकी भूमिका मुख्य ही है। समाजवादी माने जाते हैं और बिहार में अपने अखबार के लालू प्रसाद के खिलाफ भाजपा वाले जदयू और नीतीश कुमार की आरती गाकर नीतीश की कृपापात्री प्राप्त कर राज्यसभा में सांसद हैं।
यों तो हरिवंश जी अक्सर खुद ही कुछ खास चमत्कारी गुरुओं और बाबाओं को अर्पित उनके महिमागान में एक दिन में दो-दो पन्ने का सचित्र लेख लिखते रहे हैं, इसलिए इस फोटो को देख कर हैरानी नहीं होनी चाहिए। सवाल तो नीतीश कुमार पर उठने चाहिए कि उन्होंने किस व्यक्ति को चुना। लेकिन उनसे भी सवाल क्यों..!
खुद को कभी ‘अखबार नहीं आंदोलन’ कहने वाला अखबार अपनी ओर हनुमान चालीसा बांट रहा है और यह सिर्फ इसलिए आके गुजर जाएगा टाइप मसला मान लिया जाएगा कि यह अपने प्रचार या जनभावनाओं मामला है…! लेकिन यह धंधा यह अखबार 2010 से ही कर रहा है और तब हरिवंश जी मुख्य भूमिका में थे.!
क्या हम समझ रहे हैं कि आज की तारीख में हनुमान चालीसा बांट कर समाज को क्या बनाने की राजनीति कौन खेल रहा है…! क्या खुद को कभी ‘अखबार नहीं आंदोलन’ कहने वाला यह अखबार भी अब परोक्ष रूप से संघियों-भाजपाइयों के राजनीतिक एजेंडे के तहत एक पार्टी की भूमिका में है…!!!
पत्रकारिता कही जानी वाली चीज को शायद अपने चेहरे पर पड़ी अभी बहुत सारी परतें उतारनी है…!
.अरविंद शेष
(नीचे तस्वीर में हरिवंश जी सबसे दायें यानी नितीश जी के बगल में चश्मा धारण किये हुए। ”संघ-मुक्त” भारत की तैयारी ! )