बैन ग़लत ! पर NDTV कोकाकोला और वेदांता जैसे ‘लुटेरों’ के साथ क्यों ?

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NDTV पर हमले के प्रतिकार का प्रसंग पूरी तरह पवित्र नहीं हो पा रहा

आपातकाल के दौरान खबर के प्रकाशन के पहले और बाद दोनों सेन्सरशिप लागू थी। रामनाथ गोयन्का के एक्सप्रेस समूह,गुजराती के सर्वोदय आन्दोलन से जुड़े ‘भूमिपुत्र’,राजमोहन गांधी के ‘हिम्मत’ ,नारायण देसाई द्वारा संपादित ‘बुनियादी यकीन’आदि द्वारा दिखाई गई हिम्मत के अलावा जगह-जगह से ‘रणभेरी’,’चिंगारी’ जैसी स्टेन्सिल पर हस्तलिखित और साइक्लोस्टाईल्ड बुलेटिन ने इसका प्रतिवाद किया था। विलायत से स्वराज नामक बुलेटिन आती थी और बीबीसी हिन्दी भी खबरों के लिए ज्यादा सुनी जाती थी। उस दौर में संवैधानिक प्रावधान द्वारा समस्त मौलिक अधिकार निलम्बित कर दिए गए थे। ‘रणभेरी’ का संपादन-प्रकाशन इंकलाबी किस्म के समाजवादी युवा करते थे । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा इसके वितरण से इस टोली को आपत्ति नहीं थी। 1977 में आई जनता पार्टी की सरकार ने आंतरिक संकट की वजह से मौलिक अधिकार को निलंबित रखने के संवैधानिक प्रावधान को संवैधानिक संशोधन द्वारा दुरूह बना दिया। संसद के अलावा दो तिहाई राज्यों में दो-तिहाई बहुमत होने पर ही आन्तरिक संकट की वजह से आपातकाल लागू किया जा सकता है। जनता पार्टी लोकतंत्र बनाम तानाशाही के मुद्दे पर चुनी गई थी।आन्तरिक आपातकाल को दुरूह बनाने का संवैधानिक संशोधन इस सरकार का सर्वाधिक जरूरी काम था।उस सरकार को सिर्फ इस कदम के लिए भी इतिहास में याद किया जाएगा।

बहरहाल,1977 की जनता सरकार में सूचना प्रसारण मंत्रालय संघ से जुडे लालकृष्ण अडवाणी के जिम्मे था। उन्होंने आकाशवाणी और दूरदर्शन में जम कर ‘अपने’ लोगों को नौकरी दी। समय-समय पर वे अपनी जिम्मेदारी खूब निभाते हैं। कहा जाता है मंडल सिफारिशों को लगू करने के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह जिस राष्ट्र के नाम प्रसारण में अपना इस्तीफा दे रहे थे उसे एक विशिष्ट शत्रु-कोण से खींच कर प्रसारित किया जा रहा था। निजी उपग्रह चैनल तब नहीं थे।

मौजूदा दौर 1992 में शुरु हुई वैश्वीकरण की प्रक्रिया के बाद का दौर है। जीवन के हर क्षेत्र को नकारात्मक दिशा में ले जाने वाली प्रतिक्रांति के रूप में वैश्वीकरण को समझा जा सकता है। लाजमी तौर पर सूचना-प्रसारण का क्षेत्र भी इस प्रतिक्रांति से अछूता नहीं रहा। निजी उपग्रह चैनल भी नन्हे-मुन्ने ही सही सत्ता-केन्द्र बन गए हैं। इनसे भी सवाल पूछना होगा।नरेन्द्र मोदी की सरकार ने NDTV-इंडिया को छांट कर ,सजा देने की नियत से एक असंवैधानिक आदेश दे दिया है। सभी लोकतांत्रिक नागरिकों, समूहों और दलों को इसका तीव्रतम प्रतिवाद करना चाहिए । नागरिकों के हाथ में अब एक नया औजार इंटरनेट भी है जिस पर रोक लगाना कठिन है। आपातकाल के बाद के दौर में भी बिहार प्रेस विधेयक जैसे प्रावधानों से जब अभिव्यक्ति को बाधित करने की चेष्टा हुई थी तब उसके राष्ट्रव्यापी प्रतिकार ने उसे विफल कर दिया था।

अभिव्यक्ति के बाधित होने में नागरिक का निष्पक्ष सूचना पाने का अधिकार भी बाधित हो जाता है। मौजूदा दौर में NDTV इंडिया के लिए जारी फरमान के जरिए हर नागरिक का निष्पक्ष सूचना पाने का अधिकार बाधित हुआ है। निष्पक्ष सूचनाएं अन्य वजहों से भी बाधित होती आई हैं। उन वजहों के खिलाफ इस दौर में प्रतिकार बहुत कमजोर है। इन आन्तरिक वजहों पर भी इस मौके पर गौर करना हमें जरूरी लगता है।

हमारे देश में अमूल्य प्राकृतिक संसाधनों का भंडार है जिनकी वजह से भारतीय अर्थशास्त्र के पहले पाठ में पढाया जाता था-‘भारत एक समृद्ध देश है जिसमें गरीब बसते हैं’।संसाधनों पर हक उस दौर की राजनीति तय करती है। यह दौर उन संसाधनों को अडाणी-अम्बानी जैसे देशी और अनिल अग्रवाल और मित्तल जैसे विदेशी पूंजीपतियों को सौंपने का दौर है। मुख्यमंत्री और केंद्र में बैठे मंत्री वंदनवार सजा कर इनका स्वागत करते हैं। संसाधनों पर कब्जा जमाने के लिए कंपनियां घिनौनी करतूतें अपनाती हैं। स्थानीय समूहों द्वारा इस प्रकार के दोहन का प्रतिकार किया जाता है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर स्थानीय आबादी के बीच जनमत संग्रह कराया गया कि वेदांत कंपनी द्वारा नियामगिरी पर्वत से बॉक्साइट खोदा जाए अथवा नहीं। एक भी वोट इंग्लैण्ड स्टॉक एक्सचेंज में पंजीकृत वेदांत कंपनी के पक्ष में नहीं पड़ा। इसी प्रकार कोका कोला-पेप्सी कोला जैसी कंपनियों द्वारा भूगर्भ जल के दोहन से इन संयंत्रों के आस पास जल स्तर बहुत नीचे चला गया है। इंसान और पर्यावरण के विनाश द्वारा मुनाफ़ा कमाने वाली वेदान्त,कोक-पेप्सी जैसी कंपनियां  निजी मीडिया प्रतिष्ठानों को भारी पैसा दे कर कार्यक्रम प्रायोजित करती हैं। इस परिस्थिति में मीडिया समूह सत्य से परे होने के लिए बाध्य हो जाते हैं।
NDTV और उसके नव उदारवादी संस्थापक प्रणोय रॉय ने अपने चैनल के साथ वेदांत और कोका कोला कंपनी से गठबंधन किए हैं।लाजमी तौर पर इन कंपनियों की करतूतों पर पर्दा डालने में NDTV के यह कार्यक्रम सहायक बन जाते हैं। वेदान्त के साथ NDTV महिलाओं पर केन्द्रित कार्यक्रम चला रहा था तथा कोका कोला के साथ स्कूलों के बारे में कार्यक्रम चला रहा था। इस प्रकार के गठबंधनों से दर्शक देश बचाने के महत्वपूर्ण आन्दोलनों की खबरों से वंचित हो जाते हैं तथा ये घिनौनी कम्पनियां अपनी करतूतों पर परदा डालने में सफल हो जाती हैं।

वेदान्त का अनिल अग्रवाल मोदी और प्रणोय रॉय के बीच पंचायत कराने की स्थिति में है अथवा नहीं,पता नहीं।

अफ़लातून अफलू

(लेखक समाजवादी जनपरिषद के नेता हैं।)