NBSA यानी नेशनल ब्रॉडकास्ट स्टैंडर्ड अथॉारिटी के कुएँ में भाँग पड़ गई है। क्या आप यकीन करेंगे कि ऐसी संस्था ने किसी शिकायतकर्ता को रात 11.30 बजे सुनवाई के लए बुलााया है। एडवोकेट अपूर्व सिंह के साथ ऐसा ही हुआ है। वे रिपब्लिक टीवी और अर्णव गोस्वामी की शिकायत लेकर एनबीएसए गए तो उन्हें सात साढ़े 11 बजे सुनवाई के लिए बुलाया गया है।
पहले जानिए कि मामला क्या है। 9 जनवरी को दिल्ली के संसद मार्ग पर जिग्नेश मेवानी की युवा हुंकार रैली हुई थी जिसे कवर करने रिपब्लिक की रिपोर्टर शिवानी गुप्ता गई थीं। वे मंच के सामने खड़ी होकर लाइव कर रही थीं। आरोप है कि मेवानी के समर्थकों ने उन्हें बोलने नहीं दिया। उनके साथ बदतमीज़ी की। वहीं लोगों का कहना था कि रिपब्लिक टीवी बीजेपी का एजेंडा चलाता है। कुछ लोगों का कहना यह भी था कि वे मंच और लोंगो के बीच आ रही थीं, इसलिए हूटिंग हुई। बहरहाल, रिपब्लिक टीवी पर अर्णव गोस्वामी ने ‘शिवानी पर हमले’ को बड़ा मुद्दा बनाया और कई लोगों के चेहरे पर लाल गोला लगाकर उन्हें ठग, गुंडा और देशद्रोही करार दिया। रिपब्लिक ने लाल गोला तो एबीपी का एक रिपोर्टर भी लगा दिया था। एबीपी ने जब कड़ा रुख अपनाया तो उसने खेद जता दिया था ।
लेकिन एडवोकेट अपूर्व सिंह के प्रति ऐसी कोई शराफ़त अर्णव गोस्वामी ने नहीं दिखाई जबकि उनके चेहरे पर भी लाल गोल बनाकर उन्हें गुंडे से लेकर देशद्रोही जैसी गालियों से नवाज़ा गया था।अपूर्व ने चैनल से बार-बार खेद प्रकाशित करने की की माँग की लेकिन कुछ नहीं हुआ।
अपूर्व सिंह को जब चैनल ने तवज्जो नहीं दी तो वे एनबीएसए की शरण में गए। लेकिन यह देखकर हैरान हैं कि एनबीएसए ने सुनवाई के लिए उन्हें 11 जुलाई की रात 11.30 बजे तलब किया है।
कुछ साल पहले, किसी बाहरी ट्रिब्यूनल द्वारा नियमन के ख़तरे को देखते हुए न्यूज़ चैनलों ने ‘आत्मनियमन’ का दाँव चला था। एनबीए यानी ‘नेशनल ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन’ का गठन हुआ जिसने नेशनल ब्रॉडकास्ट स्टैंडर्ड अथॉारिटी यानी एनबीएसए बनाया ताकि कंटेंट पर नज़र रखी जा सके। इसके पहले अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस रहे जे.एस.वर्मा रहे और उनके निधन के बाद अब जस्टिस रवींद्रन हैं। चैनलों में नीचे एक पट्टी चलाई जाती है कि अगर दर्शकों से शिकायत हो तो एनबीएसए में शिकायत दर्ज कराएँ। लेकिन किसे अंदाज़ा होगा कि शिकायत करने पर वह रात साढ़े ग्यारह बजे भी तलब हो सकता है।
वैसे, एनबीएसए अपनी प्रासंगिकता लगातार खोता जा रहा है। उसने शायर और विज्ञानी गौहर रज़ा के मामले में तीन बार माफ़ीनामा प्रकाशित करने का आदेश दिया लेकिन ज़ी न्यूज़ के कान में जूँ नहीं रेंगी। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आख़िर स्वनियमन की तमाम बातों का क्या मतलब जब चैनल कोई बात सुनने को ही तैयार नहीं हैं। क्या चैनलों के लिए भी किसी नियामक संस्था बनाने का वक़्त आ गया है, बेशक स्वायत्त और सरकार से पूरी तरह स्वतंत्र।
पढ़िए गौहर रज़ा का मामला—
ग़ौहर रज़ा मामले में ज़ी न्यूज़ की अपील फिर ख़ारिज, 17 मई को माफ़ीनामा प्रसारित करना होगा!