भारत छोड़ो आंदोलन की हीरक जयंती पर राष्‍ट्रीय आंदोलन फ्रंट ने दिया ‘भारत जोड़ो’ का नारा

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राष्ट्रीय आंदोलन फ्रंट ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के हीरक जयंती वर्ष को अनोखे अंदाज में मनाएगा। इसके तहत फ्रंट की केन्द्रीय कमेटी ने साल भर चलने वाले आयोजनों की रूपरेखा तैयार की है, जिसमें फ्रंट के साथी इस साल को ‘भारत जोड़ो आंदोलन’ के रूप में मनाएंगे। इसकी शुरुआत बुधवार 9 अगस्त 2017 से जन्तर-मन्तर से की जा चुकी है। इस दिन का खासा ऐतिहासिक महत्व है।

इसी दिन 1942 को महात्मा गाँधी ने बम्बई के ग्वालिया टैंक से ऐतिहासिक भाषण देते हुए कहा था: ”मंत्र है, छोटा सा मंत्र जो मैं आपको देता हूँ। उसे आप अपने हृदय में अंकित कर सकते हैं और अपनी साँस द्वारा व्यक्त कर सकते हैं। वह मंत्र है – करो या मरो! या तो हम भारत को आज़ाद कराएँगे या इस कोशिश में अपनी जान दे देंगे। अपनी गुलामी का स्थायित्व देखने के लिए हम जिंदा नहीं रहेंगे।”

गांधी के इसी भाषण के साथ समूचा देश आज़ादी की आखिरी लड़ाई लड़ने के लिए सड़कों पर उतर गया था।

राष्ट्रीय आंदोलन फ्रंट का मानना है कि आजादी आसानी से नहीं मिली बल्कि उसके लिए हमारे पुरखों ने भारी कीमत चुकाई थी। आजादी हासिल करना जितना कठिन था उससे भी कठिन चुनौती उसे बनाए रखना है। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए जिस तरह लोग एकजुट हुए थे, उसे उस समय कुछ राजनैतिक संगठनों ने बांटने की कोशिश की तो आज फिर विभाजन करने की कोशिशें हो रही हैं। अंदर ही अंदर बंटे देश को किसी बाहरी दुश्मन की आवश्यकता नहीं होती, उसके लिए आपसी फूट, ईर्ष्‍या और घृणा ही सबसे खतरनाक दुश्मन का काम करती है। ऐसा करने वाले लोग अंग्रेजों वाली ‘फूट डालो राज करो’ की नीति पर चलते हुए देश के सामाजिक सद्भाव को खराब करने का काम कर रहे हैं। ये लोग आजादी की लड़ाई के उसूलों से नहीं, आजादी की लड़ाई में हिस्सा न लेने वालों के उसूलों से प्रेरणा पाते हैं।

इसके बावजूद फ्रंट का मानना है कि अपने ही इन भाइयों के खिलाफ ‘भारत छोड़ो’ का नारा नहीं दिया जा सकता। फ्रंट उनके खिलाफ नहीं, बल्कि उनकी विभाजनकारी सोच के खिलाफ है।

इस माहौल को देखते हुए फ्रंट के साथी ‘भारत जोड़ो आंदोलन’ का आह्वान करते हैं। इस अभियान के तहत फ्रंट से जुड़े लोग एक दूसरे की कलाई पर तिरंगा रक्षा सूत्र बांधकर एक दूसरे से प्रेम और सहयोग करने की सौगन्ध लेंगे। साथ ही प्रार्थना करेंगे कि हमारे हृदय से हर प्रकार की घृणा का अंत हो। सबसे पहले और उसके बाद भी एक भारतीय के रूप में पहचाने जाएं। यही फ्रंट की नियति है और यही उसका ध्येय है।