हिंदू संस्कृति और धार्मिक जीवन-जगत का एक अभिन्न अंग है सत्यनारायण कथा। हम सब ने बचपन में सुनी है। अब भी सुनते हैं। उसमें कथाएं चाहे कितनी ही काल्पनिक व विविध हों, लेकिन उनमें सत्य का एक तत्व अवश्य होता है। इस अर्थ में कि वे सदियों के दौरान समाज के आज़माये हुए नैतिक नुस्खे हैं। समय बदला है तो कथाएं भी बदली हैं। उनमें सत्य हो या नहीं, इससे बहुत फ़र्क नहीं पड़ता। ज़रूरी यह है कि कथा मुकम्मल होनी चाहिए, चाहे नैतिक सबक दे या नहीं। फिर उन्हें आज़माने की किसमें हिम्मत जब कथा खुद राजा ही बांच रहा हो। ऐसी कथाओं को ही नई नारायण कथा कहा जाता है। इसमें राजा-प्रजा के रिश्ते समान हैं, केवल सत्य के संधान के तरीके बदल गए हैं। थोड़ा आधुनिक तरीके हैं। हमारा राजा वैज्ञानिक है। हमारी प्रजा लैब-रैट। यानी नई नारायण कथाओं में राजा खुद प्रजा पर ही प्रयोग करता है। प्रजा ऐसे प्रयोग खुद पर करवा के कृतकृत्य होती है। ऐसे प्रयोगों पर अजीत यादव गहरी नज़र रखते हैं। मीडियाविजिल पर सावन के सोमवार के मुकद्दस मौके पर नई नारायण कथा के पहले खंड का वाचन प्रस्तुत है- संपादक
एक समय की बात है। धरती पर आर्यावर्त नामक देश में एक राजा हुआ करता था। राजा के राज्याभिषेक के बाद सदियों बाद ‘धर्म’ का राज स्थापित हुआ था। देवतुल्य राजा के राज संभालते ही राज्य का एक बड़ा वर्ग प्रसन्न रहने लगा। नदियों में दूध बहने लगा, पेड़- पौधों फल- फूल के साथ राज्य की मुद्रा भी उगने लगी। जिसे भी आवश्यकता होती वो निडर होकर मुद्रा तोड़ लेता था। सभी भय, रोगमुक्त जीवनयापन करने लगे।
राजा बड़ा महान और मायावी था वह जिस मार्ग से बस गुजर भर जाता उसके पीछे पक्की सड़कें, गुरूकुल और अन्न के ढेर लग जाते थे। चिड़िया मंगलगीत गाती उड़ती थी। उसके राज्य में कोई दुखी न था सिवाय मूल निवासी असुरों के। राजा को देशद्रोही असुरों पर क्रोध तो बहुत आया लेकिन क्रोध का प्रयोग अपने शत्रुओं पर करने का उसे अद्भुत वरदान प्राप्त था। कहते हैं कि युवावस्था में राजा बनने से पहले वह हिमालय से तप कर लौटा था। वहां तप करने से देवता उससे प्रसन्न हुए थे और देवताओं ने उसे वरदान देते हुए आदेश दिया कि हे मनुष्य, आप यहां के लिए नहीं बने हो, आप प्रजा के बीच जाओ, राज करो। राजा ने ऐसा ही किया।
राजा के तपस्या के लिए हिमालय जाने से पूर्व बालपन के भी किस्से बहुत मशहूर थे। एक बार राजा जब बालक था तब निकट की नदी से मगरमच्छ का एक बच्चा घर ले आया। बालक के पिता ने उसे मगरमच्छ के इस बच्चे को सही सलामत नदी में छोड़ने का आदेश दिया और बालक ने तब भी ऐसा ही किया। देखते-देखते बालक की ये साहसिक कथा पूरे क्षेत्र में फैल गई।
अब पुन: बात करते हैं राजा के राज की। राजा को तपस्या के समय ही एक वरदान प्राप्त हुआ था। राजा अपने क्रोध से क्या-क्या कर सकता है इसकी चर्चा चारों दिशाओं में फैल चुकी थी। राजा का क्रोध और उससे जुड़ी मायावी शक्ति इतनी बलवान थी कि वो जिसकी ओर दृष्टि भर कर दे, वो उसके वशीभूत हो जाता था। राजा को सदियों तक कठोर तप से एक और अदभुत वरदान प्राप्त हुआ था। वरदान के अनुसार जो भी राजा की आलोचना करता था वो आलोचना करते ही भस्म हो जाता था।
समय बीतने के साथ उसका प्रताप बढ़ता ही जा रहा था। राजा लगातार प्रजा के कल्याण के लिए योजनाओं की घोषणा करने में व्यस्त था। आम राज्य लगभग आ चुका था लेकिन कुछ असुर लगातार उसके इस महान उद्देश्य में विघ्न डालने का यत्न करते रहते थे। राजा में बस एक कमी थी, राजा की डेढ़ भुजाएं थी और उसके कान कमज़ोर थे। इन सब कमियों के बाद भी राजा अपने दो सुयोग्य मंत्रियों अमितनाथ और अरूणेंद्र के दम पर राज्य चला रहा था। राजा के मंत्रियों ने सलाह दी कि आपको जनता को अपने दिल की बात बतानी चाहिए। राजा मुदित हुआ, परंतु राजा के दरबार में बैठे कुछ मार्गदर्शक लोगों ने सलाह दी कि हमें प्रजा के मन की बात भी सुननी चाहिए। राजा में अपने दो सबसे विश्वस्त मंत्रियों अमितनाथ और अरूणेंद्र की ओर उनकी राय जानने के लिए देखा। मंत्रीद्वय ने बिना समय गंवाए राजा को विनम्र सलाह दी कि राजा सिर्फ कहता है, सुनने का काम प्रजा का है।
यह प्रकरण वहीं समाप्त हो गया और पुन: किसी मार्गदर्शक ने मुंह नहीं खोला। हां, कुछ जागीरदारों ने समय-समय पर नियंत्रित विद्रोह करने की कोशिश की लेकिन राजा ने उनके पुत्रों को अपने दरबार में ऊंचे पद देकर अपनी तरफ मिल लिया। समय बीतने के साथ ये छोटे विद्रोही शत्रु राजाओं से जा मिले लेकिन उनके पुत्रों के राजा के दरबार में होने से राजा निश्चिंत था। समय बीतता गया और राजा के दरबार में छोटेमोटे विद्रोह के स्वर भी समाप्त हो गए। राजा ने मजबूत राज्य के लिए अपने दरबारियों और प्रजा से उनकी जिह्वा का बलिदान मांगा। राजा का आदेश सुनकर प्रजा में से बहुत लोगो़ं ने दो कदम आगे बढ़कर अपने हृदय तक बलिदान कर दिए। कुछ असुर लोगों ने बलिदान करने से मना कर दिया। राजा के आदेश की अवहेलना करने पर राजा के आदेश से सैनिकों ने विद्रोहियों की खोज-खोज कर जिह्वा काट दी।
परंतु वो उनका हृदय नहीं निकाल पाए। बढ़ते असंतोष को दबाने के लिए राजा ने धर्म का दांव चला, लेकिन राजा का ये दांव भी बेकार चला गया। राजा द्वारा ईश्वर के भव्य मंदिर की स्थापना में असफल रहने के कारण ऋषि मुनियों और पुजारियों में भीे असंतोष गहरा गया था। राजा की मुश्किल बढ़ती जा रही थी। राजा के गुप्तचर असंतुष्टों का पता लगाते और अगले दिन वो राजा के आदेश पर उनकी जिह्वा काटते थे। राज्य में कटी जिह्वा का पहाड़ बन गया था। कटी जिह्वा का पहाड़ देख राजा को भय हो गया कि यदि सबकी जिह्वा काट देंगे तो उसकी जय जयकार कौन करेगा। राजा ने उसकी आलोचना करने वालों की सजा में बदलाव करते हुए कहा कि आलोचकों के पेट पर बस जोर से लात मार कर उन्हें छोड़ दिया जाय। राजा ने अपने सबसे योग्य मंत्री अरूणेंद्र के कहने पर राज्य की मुद्रा भी बंद करवा दी लेकिन इससे विद्रोहियों को नुकसान होने की जगह राज्य में व्यापार लगभग नष्ट हो गया। कुछ बड़े व्यापारियों को छोड़ अधिकांश लघु व्यापारियों को भारी घाटा उठाना पड़ा। इस कारण से व्यापारी भी असंतुष्ट रहने लगे। इस त्रासदी का इतना भीषण प्रभाव हुआ कि राजा के कई प्रिय व्यापारी रातोंरात अपना व्यापार छोड़ दूर देश चले गए। कई व्यापारियों को तो राजा के सैनिकों ने सीमा पार करवाई।
प्रजा में असंतोष व्याप्त था परंतु राजा के मजबूत प्रचार तंत्र में उनकी आवाज़ दब कर रह गई। गुप्तचर काले कंबल ओढ़े कर सभी जगह विचरण करते और कभी भी किसी की भी पिटाई कर देते थे। विरोध करने पर राजद्रोही बताकर उन्हें गाय के गोबर के उपलों में ज़िंदा चुनवा दिया जाता था। विद्रोह दबाने के अभियान में राजा का ध्यान अर्थव्यवस्था से बिल्कुल हट गया जिसके फलस्वरूप राज्य में ईंधन महंगा हो गया और साथ ही बेरोज़गारी भी फैल गई। चूंकि राजा बड़ा दयालु और मायावी था अत: राजा से प्रजा का ये दुख देखा नहीं गया। वो दिनरात लगाकर अनुसंधान करता और नए-नए प्रयोग करता। उसके ही अनुसंधान के कारण पृथ्वी पर आज देखने वाले जलपान गृह, तांबुल भंडार और गौशालाओं की शुरुआत हुई। उस समय राजा के ही अनुसंधान से ये बात सामने आई कि गौशालाओं से प्राप्त गोबर का लेप किले की दीवार पर करने से शत्रुओं द्वारा हमले के समय उनके आग्नेयास्त्र निष्प्रभावी हो जाते हैं।
इसी बीच राजा के विरूद्ध हो रहे षडयंत्रों की कड़ी में राजा पर हो रहे हमलों का लाभ उठा एक पड़ोसी राजकुमार ने पड़ोसी राज्य के छोटे-छोटे राजाओं से मुलाकात करनी शुरू कर दी। इन राजाओं ने आपस में साजिश रच कर एक गठबंधन सेना का गठन कर लिया। इन राजाओं की रणनीति एक साथ कई दिशाओं से उसके गोबर लिपे किले पर हमला करने की थी। राजा को उसके गुप्तचरों ने उसे जैसे ही इस साजिश की सूचना दी राजा ने अपने विश्वासपात्र अरूणेंद्र और अमितनाथ को तुरंत आपात मंत्रणा के लिए बुलाया। दोनों मंत्रियों ने राजा को पहले सांत्वना दी, उसके बाद सलाह देते हुए कहा कि जनता की बुद्धि भ्रष्ट हो गई है जो आपके द्वारा किए गए परोपकारी कार्य नहीं देख पा रही है। राजा ने विश्वस्तों से कहा कि वो जल्दी जनता से निपटने का उपाय ढूंढ कर लाएं अन्यथा वो राजा के कोप का भाजन बनने के लिए तैयार रहें।
कई दिनों के गहन विचार विमर्श के बाद विश्वस्त द्वय राजा के दरबार में लौटे और राजा के कान में कुछ कहा। राजा की आँखों की चमक देख कर लगा कि राजा को प्रजा के दुख और भ्रम दूर करने का बेहतरीन उपाय मिल गया है। राजा ने जल्दी ही राज्य में अकुशल, अर्धकुशल और कुशल कारीगरों की एक सभा बुलाई। राजा को कहानियां सुनाने का बहुत शौक था। उसने इस सभा में भी एक कहानी सुनाई। कहानी कुछ इस प्रकार थी:
“मैं (राजा) एक बार राज्य में विहार करते हुए जा रहा था, तभी मैैंने एक दुकानदार को मार्ग के किनारे कुछ बेचते हुए देखा। मैैंने देखा कि वो व्यापारी अपनी दुकान पर रखे जलपान को गर्म रखने के लिए एक अदभुत विधि का प्रयोग कर रहा था। व्यापारी ने अपनी दुकान के पीछे बहने वाले नाले में एक बर्तन को उलट कर रख दिया और उस बर्तन के पेंदे में एक छेद कर दिया था। इस छेद में एक नली जैसी चीज लगा रखी थी। इस नली के मार्ग से नाले से निकलने वाला पदार्थ उसके चूल्हे में ईंधन की तरह जल रहा था। इस मुफ्त के ईंधन से व्यापारी बिना किसी लागत के मुनाफा कमा रहा था।”
राजा ने पूरी सभा और प्रजा को इस तरह के उपाय अपना कर अपनी जरूरत पूरी करने की शिक्षा दे डाली। राजा का मन इतने से नहीं भरा क्योंकि वह दयालु और मायावी था इसलिए जानता था कि दरबारी और आलोचक दोनों ही आलसी हैं। चूंकि वो दयालु और प्रजापालक था इसलिए उसने राज्य में बह रहे सभी नालों में नलीनुमा चीज लगवा दी और उस नली का मुंह बस्ती की ओर कर दिया। अब वो पदार्थ पूरे वातावरण में फैल गया था। इसके बाद बस्ती से काफी दिनों तक कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी, सिर्फ नम: नम: के मंत्र गूंजते रहे।
कुछ समय बीतने के बाद गुप्तचर ने खबर दी कि दो राजकुमारों और दो महिलाओं ने गुप्त बैठकें की हैं और नदी के पार गहरी साजिश रचा जा रही है।राजा फिर बेचैन हो गया लेकिन क्रोध वाला वरदान उसे याद आया। इधर मंत्रीद्वय आसपास के राज्यों में जा कर संधि कर रहे थे। इसी बीच राजा को नई कहानी याद आ गई। राजा ने फिर से सभा बुलाने का आदेश दे दिया।