क्या आप ‘असली’ पत्रकार हैं? क्या आप ‘असली’ पत्रकारों की तरह अपना नैतिक कर्तव्य निभा रहे हैं? क्या आपको पता है एक पत्रकार का ‘नैतिक’ कर्तव्य क्या होता है? आपके सारे जवाब गलत निकलेंगे। बस एक बार NIA (राष्ट्रीय अन्वेषण एजेंसी) की दी हुई परिभाषा जान लीजिए। आपको अपने पत्रकार होने पर शक़ होने लगेगा।
जम्मू और कश्मीर में पिछले साल पत्थरबाज़़ी के आरोप में गिरफ्तार चर्चित फोटो पत्रकार कामरान यूसुफ़ के मामले में एनआइए ने ‘असली’ पत्रकार और पत्रकार की ‘नैतिक’ जिम्मेदारी को अदालत के सामने परिभाषित किया है। पिछले साल कश्मीर घाटी में 5 सितंबर को पत्थरबाज़ी की एक घटना के सिलसिले में 12 युवकों को पकड़ा गया था, जिनमें पत्रकार कामरान भी थे। उस मामले में एनआइए ने 18 जनवरी को चार्जशीट दाखिल की है।
गुरुवार को दिल्ली में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश तरुण सहरावत के समक्ष यूसुफ़ की ज़मानत याचिका पर सुनवाई के दौरान एनआइए ने जो चार्जशीट पेश की है, उसमें ”पत्रकार के नैतिक कर्तव्य” को परिभाषित करते हुए कहा गया है:
”अगर वह पेशे से असली पत्रकार/स्ट्रिंगर होता, तो उसने पत्रकार का कोई एक नैतिक कर्तव्य निभाया होता जो अपने न्यायक्षेत्र में गतिविधियों और घटनाओं (अच्छी या बुरी) को कवर करना होता है। उसने कभी भी किसी सरकारी विभाग/एजेंसी के किसी विकास कार्य, किसी अस्पताल, स्कूल भवन, सड़क, पुल आदि के उद्घाटन को कवर नहीं किया, किसी सत्ताधारी पार्टी के बयान को कवर नहीं किया या राज्य सरकार अथवा भारत सरकार के किसी सामाजिक/विकास कार्य को कवर नहीं किया।”
यह चार्जशीट घाटी में सेना और अर्धसैन्य बलों द्वारा किए गए विकास कार्यो का भी जिक्र करती है, जैसे ”रक्तदान शिविर, मुफ्त मेडिकल जांच, कौशल विकास कार्यक्रम या इफ्तार पार्टी” इत्यादि। चार्जशीट ने कामरान के बारे में कहा है, ”कामरान यूसुफ़ ने ऐसी किसी गतिविधि का शायद ही कोई वीडियो लिया हो या तस्वीर उतारी हो जो उसके मोबाइल या लैपटॉप में देखी जा सके जो स्पष्ट तौर पर उसकी मंशा को बताता है कि वह केवल उन्हीं गतिविधियों को कवर करता था जो राष्ट्रविरोधी हैं और ऐसी फुटेज से वह पैसा कमाता था।”
एनआइए के मुताबिक यूसुफ़ पेशेवर पत्रकार नहीं था क्योंकि उसने किसी संस्थान से कभी प्रशिक्षण नहीं लिया। उसके कैमरे में पड़े वीडियो की जांच करने के बाद एनआइए ने निष्कर्ष दिया कि यूसुफ़ ने ”राष्ट्रविरोधी गतिविधियों” को कवर करने की विशिष्ट मंशा से वीडियो बनाया और उसे प्रकाशन के लिए ”स्थानीय मीडिया” को दे दिया।
ज़मानत की सुनवाई के दौरान कामरान के अधिवक्ता वरीशा फरासत ने अदालत से कहा कि ”असली पत्रकार” की एनआइए की परिभाषा के बावजूद यूसुफ सारी कसौटियों पर खरा उतरता था। उन्होंने बताया कि उनके पास कई तस्वीरें हैं जो दिखाती हैं कि कामरान एनआइए की परिभाषा पर खरा उतरता है। सुनवाई की अगली तारीख 19 फरवरी है।
गौरतलब है कि कश्मीर के चर्चित अख़बार ग्रेटर कश्मीर के लिए काम करने वाले 23 वर्षीय कामरान को पुलवामा पुलिस ने 4 सितंबर को पूछताछ के लिए बुलवाया था, जिसके बाद नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी (एनइाइए) ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और अगले दिन उन्हें कथित रूप से दिल्ली भेज दिया गया। उस वक्त संपादकों की संस्था कश्मीर एडिटर्स गिल्ड (केईजी) ने कामरान को बिना आरोप के हिरासत में रखे जाने की निंदा की थी।
कश्मीर के फोटो पत्रकार कामरान यूसुफ़ को रिहा करने के लिए आवाज़ें तेज़, CPJ ने निंदा की
इससे पहले अंतरराष्ट्रीय संस्था कमिटी टु प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) ने एक बयान जारी करते हुए कामरान की तत्काल रिहाई की मांग की थी। सीपीजे के उप कार्यकारी निदेशक रॉबर्ट महोनी ने कहा था, ”भारतीय प्रशासकों को जम्मू और कश्मीर क्षेत्र में स्वतंत्र प्रेस का दमन करने से बाज़ आना चाहिए। कामरान यूसुफ़ को तत्काल रिहा किया जाना चाहिए।”
कामरान यूसुफ़ स्वतंत्र फोटोग्राफर हैं जो ग्रेटर कश्मीर के अलावा कई अन्य प्रकाशनों को सहयोग करते थे। पिछले साल घाटी में हुए आंदोलन पर उनकी खींची तस्वीरों को काफी लोकप्रियता हासिल हुई थी और इन तस्वीरों को मिलाकर ढाई मिनट की एक फिल्म भी बनी थी जिसका नाम है – कश्मीर अपराइजिंग 2016, जिसे नीचे देखा जा सकता है।
साभार The Indian Express