‘पप्पू’ में निवेश बेकार गया तो आक्रामकता बढ़ गई !


चौकीदार चोर है जैसे आक्रमण को पप्पू की छवि से उड़ा देने की चाल नाकाम होने की हताशा है।


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संजय कुमार सिंह

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कल के अख़बारों मे दो बड़ी खबरें थीं। एक रैली में प्रधानमंत्री द्वारा कर्जमाफी को लॉलीपॉप कहना, चोरों की नींद उड़ी की सूचना और चौकीदार की ईमानदारी का एलान। इसके मुकाबले रद्द किए जा चुके अगस्ता वेस्टलैंड सौदे के बिचौलिए क्रिश्चियन मिशेल का खुलासा- मिसेज गांधी और आर नाम वाला पुत्र। नवभारत टाइम्स, दैनिक जागरण, अमर उजाला, नवोदय टाइम्स में पहले पन्ने की पहली खबर थी, अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर करार के बिचौलिए क्रिश्चियन मिशेल ने मिसेज गांधी का नाम लिया। मिसेज गांधी मतलब सोनिया गांधी और उनके बेटे या आर मतलब राहुल गांधी ही है। इनमें अमर उजाला और नवोदय टाइम्स ने दूसरी बातें भी आस-पास अन्य खबरों के जरिए बताई है पर किस अखबार ने क्या कैसे लिखा की जगह मैं मुख्य शीर्षक औऱ इस मामले से जुड़े कुछ तथ्य रखना चाहता हूं।

आप जानते हैं कि मिशेल ईडी यानी एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट या प्रवर्तन निदेशालय की हिरासत में है और पुलिसिया पूछताछ में तमाम लोग तमाम बातें कहते हैं, बाद में मुकर जाते हैं। अभी हाल में सोहराबुद्दीन हत्याकांड में 22 लोगों को बरी किया गया है और फैसले के आधार पर खबर छपी है कि सीबीआई कुछ नेताओं को फंसाने के लक्ष्य पर काम कर रही थी। खबर में नाम नहीं लिखा है पर स्पष्ट है कि वो नेता कौन हैं और भारतीय जनता पार्टी के ही हैं। फिर भी सीबीआई के खिलाफ किसी कार्रवाई की चर्चा देश में (या अखबारों) में अभी तक नहीं है।

ऐसे में एक विदेशी, जो किसी और देश से पकड़कर लाया गया है उसके कहने का क्या मतलब? फिर भी कहा है तो खबर बनती है। खबर यह भी है कि ईडी ने पटियाला हाउस कोर्ट में कहा कि वह अभी यह नहीं बता सकता है कि मिशेल ने मिसेज गांधी का नाम किस संदर्भ में लिया है। अब बताइए – अगर ऐसा है तो यह खबर है? और शीर्षक – आपको भ्रमित करने के लिए नहीं है तो और किसलिए हो सकता है? अगर ऐसा ही होता और यह मामला इतना ही गंभीर होता तो क्या हिन्दुस्तान इसे पहले पन्ने पर भी नहीं रखता? यहां एक बात और उल्लेखनीय है। मिशेल यानी अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर सौदे का कथित दलाल। इस सौदे को यूपीए सरकार ने रद्द कर दिया है और जो भुगतान हुआ था उससे ज्यादा की बैंक गारंटी जब्त कर ली गई है। फिर भी इसे राफेल सौदे में लगे आरोपों की काट की तरह पेश किया जा रहा है। राफेल में दाम नहीं बताने से लेकर और भी गड़बड़ियां हैं जो आप जानते हैं।

हिन्दुस्तान में मिशेल की खबर पहले पन्ने पर थी लेकिन शीर्षक है, मिशेल को कोर्ट ने फिर ईडी के रिमांड पर भेजा। निश्चित रूप से खबर यही है। इसीलिए, दैनिक भास्कर ने इस खबर का शीर्षक बनाया है, मिशेल के वकील से पूछा था – मिसेज गांधी से जुड़े सवालों पर क्या बोलूं। अखबार ने एक और खबर छापी है, मिसेज गांधी और ‘आर’ को लेकर कोर्ट में ईडी के दो दावे। इसके नीचे दो खबरें हैं 27 दिसंबर को पूछताछ में लिया मिसेज गांधी का नाम और दूसरी खबर है, अगस्ता को कहा था – इटली की महिला का बेटा बनेगा पीएम। अखबार ने फ्लैग शीर्षक लगाया है, अगस्ता घोटाला – ईडी ने कोर्ट में लिया मिसेज गांधी और इटली की महिला के बेटे आर का नाम लेकिन पूरी पहचान नहीं बताई।

कल ही के अखबारों में एक और खबर चर्चा योग्य थी। इसे हिन्दुस्तान ने लीड बनाया। कर्जमाफी किसानों से धोखा : मोदी। शीर्षक से ही स्पष्ट है कि यह मोदी यानी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आरोप है। आरोप को लीड बनाना चाहिए कि नहीं इसपर अलग राय हो सकती है। लेकिन प्रधानमंत्री कोई आरोप लगाएं तो उसका महत्व है और उसे लीड बनाना निष्पक्ष पत्रकारिता के लिहाज से गलत नहीं है। इसके मुकाबले राहुल या कांग्रेस के आरोपों को वह महत्व नहीं दिया जाए तो भी मैं गलत नहीं मानूंगा। हिन्दुस्तान ने तो फ्लैग शीर्षक में ही ‘आरोप’ लिख दिया है। इसके साथ लिखा है, “प्रधानमंत्री ने गाजीपुर में कांग्रेस पर निशाना साधा, कहा – वोट बटोरने के लिए लुभावने वादे किए”। हालांकि, इसके साथ अखबार ने कांग्रेस का जवाब भी छापा है, “हार के बाद याद आई (किसानों की) : कांग्रेस”। इसके साथ सिंगल कालम में प्रधानमंत्री का एक और दावा है, चोरों को सही जगह भेजेंगे। पता नहीं कांग्रेस ने इसपर कुछ कहा कि नहीं। अखबार में नहीं है। अगर कहा हो तो उसे भी यहीं होना चाहिए था। नहीं कहा हो तो यह कांग्रेस का मामला है।

आइए देखें कि दो खबरों में इस अपेक्षाकृत संतुलित खबर को दूसरे अखबारों ने कैसे छापा। नवभारत टाइम्स और अमर उजाला ने एक रैली में लगाए गए प्रधानमंत्री के इस आरोप को मिशेल के बयान के साथ छापा है। दोनों चीजें कांग्रेस के खिलाफ हैं – इसके अलावा इनमें कोई समानता नहीं है। एक आरोप है एक सूचना। एक प्रधानमंत्री का है और एक हथियारों के दलाल या बिचौलिए पूछताछ में से मिली जानकारी है जो गलत भी हो सकती है या जिसे स्वीकार करने से भी वह मना कर सकता है। इसलिए इन्हें एक साथ छापना मुझे उचित नहीं लगता है। फिर भी नवभारत टाइम्स ने इसे कुछ ज्यादा ही गंभीरता दी है (तस्वीर देखिए)। अमर उजाला ने इस खबर को लीड के साथ ही छापा है। जबकि दैनिक जागरण में यह खबर पहले पन्ने पर तो नहीं है लेकिन खबर अन्दर होने की सूचना पहले पेज पर है। अखबार ने मिशेल के कथित खुलासे को प्रधानमंत्री के आरोप से ज्यादा महत्व दिया है। क्यों? आप समझ सकते हैं।

इनके मुकाबले दैनिक भास्कर ने इस खबर को देश विदेश की खबरों के पन्ने पर छापा है। फ्लैग शीर्षक है – “मिशन 2019 – यूपी के पूर्वांचल में 280 करोड़ की 29 परियोजनाओं की शुरुआत की”। मुख्य शीर्षक है, “कांग्रेस किसानों को कर्जमाफी के नाम पर लॉलीपॉप दे रही है : मोदी”। इसके साथ यह भी है : “बोले – चौकीदार ईमानदारी से कर रहा अपना काम, चोरों की नींद उड़ी”। इस तरह अगर मोदी कांग्रेस की घोषणा को लॉलीपॉप कह रहे हैं और अपनी घोषणाएं कर रहे हैं – दोनों एक साथ है। तो पाठक को चीजें समझ में आनी चाहिए। अखबार की ओर से कोई बेईमानी या लापरवाही या पक्षपात नहीं लगता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि खबर खासकर सुर्खियों में ठोस बात होनी चाहिए, आरोप या शक नहीं।

यह सब इसलिए कि 2014 का चुनाव कांग्रेस के भ्रष्टाचार, 2जी और कोयला घोटाला के साथ रॉबर्ट वाड्रा के घोटालों और 15 लाख के जुमले पर लड़ा गया था। मुख्य भूमिका अखबारों और मीडिया की रही। पांच साल में क्या हुआ आप जानते हैं। जैसे, जागरण में कल पहले पन्ने पर खबर थी कि (रॉबर्ट) वाड्रा, (भूपेन्द्र सिंह) हुड्डा के खिलाफ जांच के लिए एसआईटी गठित और इसके साथ हुड्डा का बयान है- झूठे मुकदमों में फंसाने की कोशिश। यह सब 2019 के चुनाव की तैयारी है। अब भी छवि बनाकर और बिगाड़कर चुनाव लड़ा जाना है।

समस्या यह है कि तीन राज्यों के चुनाव ने ‘पप्पू’ की छवि बनाने में किए गए निवेश को बेकार कर दिया है। अब समय कम है और काम ज्यादा। ऐसे में आक्रामकता बढ़ गई है। दूसरी ओर, चौकीदार चोर है जैसे आक्रमण को पप्पू की छवि से उड़ा देने की चाल नाकाम होने की हताशा है। आइए, देखें ऐसे माहौल में कैसे खबरें बनाई, गढ़ी और प्लांट की जा रही हैं। दूसरी ओर, नकारात्मक खबरें लापता हैं। इसके लिए प्रचार और विज्ञापनों की धूम तो है ही करोड़ों के बजट का लालच भी है। वैसे तो यह सरकारी विज्ञापन बांटने का भ्रष्टाचार है और नुकसान अखबार वालों को ही ही क्योंकि सब विज्ञापनों की लाइन में लेट गए हैं। जो लाइन में नहीं हैं वे इसे ऐसा मुद्दा नहीं मानते।

अखबारों के पहले पन्ने की खबरों की चर्चा करें और समझें कि क्यों कोई अखबार किसी खबर को पहले पन्ने पर लीड बनाता है तो दूसरे में वह खबर होती ही नहीं है या अंदर छोटी सी होती है। अगर सभी खबरें सभी अखबारों के लिए समान महत्व की होतीं तो एक सी छपतीं और सभी अखबार एक जैसे होते। पर ऐसा नहीं होता है क्योंकि एक अखबार किसी को ज्यादा महत्वपूर्ण मानता है और दूसरा किसी और को। इसमें पहले पेज पर विज्ञापनों का चक्कर तो है ही। कुछ अखबारों में पहले पन्ने पर आधे से ज्यादा विज्ञापन होते हैं। मुझे याद है, बहुत पहले अखबारों के पहले पन्ने पर एक ही विज्ञापन होता था। पता नहीं यह अखबारों का आदर्श था या तब विज्ञापन कम होते थे। मुझे अब भी लगता है कि पहले पन्ने पर कितना विज्ञापन हो यह तय होना चाहिए। नहीं हो तो आदर्श। आप जानते हैं कि अखबारों का पहला पन्ना पूरा विज्ञापन हो तो पांचवें और सातवें पन्ने तक को पहला पन्ना बनाया जाता रहा है। लेकिन उसपर भी विज्ञापन भरा होता है। खैर अभी मुद्दा वह नहीं है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। जनसत्ता में रहते हुए लंबे समय तक सबकी ख़बर लेते रहे और सबको ख़बर देते रहे।)