मीडिया के अज्ञानलोक की ख़बर लेगा ‘विज्ञान’..!

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आधुनिक भारत का निर्माण समाज में  वैज्ञानिक चेतना के प्रचार-प्रसार के बिना मुमकिन नहीं है। भारतीय संविधान में वैज्ञानिक चेतना से युक्त समाज के निर्माण का स्पष्ट निर्देश है और अंधविश्वासों के प्रसार को अपराध घोषित किया गया है, लेकिन अफ़सोस कि कुछ अपवादों को छोड़कर भारत का मीडिया अंधविश्वासों के प्रसार में रात दिन जुटा हुआ है।

ऐसा करना ना सिर्फ़ क़ानूनी रूप से ग़लत है, बल्कि देश-विदेश के उन महान विज्ञानियों का भी अपमान है जिन्होंने अपने अथक परिश्रम से छपाई से लेकर टीवी प्रसारण तक संभव बनाने में सदियों तक दिन रात एक किया। अत्याधुनिक तकनीक का ऐसा हश्र देखकर लगता है कि जैसे बंदरों के हाथ में उस्तरा आ गया है।

उम्मीद की जाती है कि मीडिया, सामंती समाज से आधुनिक समाज के जन्म की ‘प्रसव वेदना’ को कम करने में प्रशिक्षित दाई की भूमिका निभाएगा, लेकिन भारत में उलटा हो रहा है। ऐसा लगता है कि यह ‘दाई’ बच्चे को वापस माँ के पेट में ढकेलने की कोशिश कर रही है।

ऐसे में मीडिया विजिल एक नया स्तम्भ शुरू कर रहा है- ‘विज्ञान’..। इसके ज़रिए हम हिंदी में विज्ञान लेखन को लोकप्रिय बनाने का प्रयास करेंगे और तमाम ज़रूरी वैज्ञानिक प्रश्नों पर चर्चा छेड़ेंगे। इन दिनों हिंदी में विचारोत्तेजक विज्ञान लेखन करने वालों की ख़ासी कमी है, हम विज्ञानियों को इस दिशा में प्रेरित करेंगे और सुस्त पड़ चुके तमाम स्तम्भकारों को भी ‘परेशान’ करेंगे।

इस स्तम्भ में अंतरिक्ष से लेकर शरीर तक की गुत्थियों पर बात होगी। साथ ही, विज्ञान और तकनीक के नाम पर जारी तमाम गोरखधंधों की ख़बर भी ली जाएगी। इस चिंता को भी तमाम विज्ञानियों से साझा किया जाएगा कि आख़िर अनुसंधान के क्षेत्र में भारत के पिछड़ने की वजह क्या है ! विज्ञान की पढ़ाई लिखाई का ढंग और केंद्र और राज्य सरकारों का बजट भी इसके दायरे में होगा। हम भारत में तर्क और शास्त्रार्थ की परंपरा के खोए हुए सूत्रों की तलाश करेंगे। मीडिया के अज्ञानलोक की ख़बर लेना तो काम होगा ही।

हिंदी जगत का अँधेरा छाँटने के क्रम में मीडिया विजिल इस दीवाली विज्ञान का दीपक जलाने का संकल्प ले रहा है। आशा है, सुधी पाठकों को यह विनम्र कोशिश पसंद आएगी। जो मित्र विज्ञान लेखन में जुड़े हैं, उनसे विशेष अनुरोध है कि वे इस स्तम्भ के लिए नियमित लेखन पर विचार करें।

संपादक