पंजाब में चुनाव की आंधी ने बाकी हर खबर पर परदा डाल दिया है। अकाली-भाजपा की सरकार में बीते दस दिनों से राज्य के गांवों में जो तांडव मचा हुआ है, उसकी ख़बर न तो मीडिया में आई है और न ही यह मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और चुनावी जीत की महत्वाकांक्षा में चूर आम आदमी पार्टी के लिए कोई मुद्दा बन सकी है। बीते 2 और 3 सितंबर की दरम्यानी रात पंजाब के गांवों से पुलिस ने छपा मार कर 500 से ज्यादा किसानों को जेलों में ठूंस रखा है और एक किसान चंडीगढ़ स्थित धरनास्थल पर सलफास खाकर जान दे चुका है। वजह?
पंजाब के सात किसान संगठनों बीकेयू (एकता) दकौंदा, बीकेयू (एकता) उग्राहन, बीकेयू (क्रांतिकारी) नाथूवाला, किसान संघर्ष कमेटी (आज़ाद), किसान संघर्ष कमेटी (कंवलजीत पन्नू), कीर्ति किसान यूनियन (पंजाब) और बीकेयू (क्रांतिकारी) फूल ने अपनी मांगों के समर्थन में 5 सितंबर से पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ में अनिश्चितकालीन धरने की योजना बनाई थी। इसके लिए गांवों में फ्लैग मार्च, किसान पंचायत, बैठकों के माध्यम से तैयारियां ज़ोरों पर थीं और घर-घर से राशन इकट्ठा किया जा रहा था। 5 सितंबर की सुबह किसान ट्रैक्टरों और ट्रालियों से चंडीगढ़ की सुबह निकलने वाले थे और उम्मीद थी कि धरने में 20,000 से ज्यादा पुरुष और महिला किसान पहुंचेंगे, लेकिन ऐसा न हो सका।
बीते 2 और 3 सितंबर की दरम्यानी रात पंजाब पुलिस ने किसान नेताओं के घरों पर चुपचाप छापा मार दिया। गांव स्तर से ब्लॉक, जिला और राज्य स्तर के नेताओं के घरों की तलाशी ली गई। यहां तक कि महिला कार्यकर्ताओं के घरों में भी पंजाब पुलिस ने दबिश दी और तलाशी ली। इसकी आशंका चूंकि किसान नेताओं को पहले से थी, लिहाजा अधिकतर नेता भूमिगत हो गए थे, इसलिए कुछ दर्जन नेताओं को ही पुलिस पकड़ पाई।
इसके बाद 5 सितंबर को गांवों तक पहुंचने वाले सभी संपर्क मार्गों को पुलिस ने बंद कर दिया। सौ से ज्यादा किसानों की दबिश देकर गिरफ्तारी कर ली गई। किसान आंदोलन के नेतृत्व ने 5 और 6 सितंबर को मुख्य सड़कें छोंड़कर दूसरे रास्तों से किसानों को चंडीगढ़ पहुंचने का आह्वान किया। रास्ते में पुलिस ने किसानों को रोका और करीब आठ घंटे तक रास्ते बंद रखे गए।
मनसा, फिरोज़पुर, मोगा, अमृतसर आदि स्थानों से बड़ी संख्या में किसानों को गिरफ्तार किया गया। फिलहाल 500 से ज्यादा किसान पंजाब की जेलों में सड़ रहे हैं लेकिन इसकी ख़बर कहीं किसी मीडिया में नहीं आई है।
किसान आंदोलन की मुख्य मांगें निम्न हैं:
1. सभी कर्जों की माफी और संस्थागत कर्ज के लिए किसान हितैयाी नीति बनाई जाए।
2. दो-तीन पीढ़ी से ज़मीन जोत रहे किसानों को उन ज़मीनों का स्वामित्व दिया जाए।
3. भू-हदबंदी कानून का कठोरता से क्रियान्वयन किया जाए।
किसानों की इनके अलावा कुछ और मांगें हैं जिन्हें लेकर राज्य में बीते करीब दो साल से किसान एकजुट हैं, लेकिन उन्हें कोई मीडिया कवर नहीं कर रहा। विडंबना यह है कि चुनाव के इस मौसम में किसी भी राजनीतिक दल ने किसानों के ऊपर ढहाए गए ताज़ा जुल्म पर मुंह नहीं खोला है जबकि किसान आंदोलन के नेतृत्व द्वारा बीते दस दिनों से लगातार राजधानी दिल्ली समेत स्थानीय मीडिया को अलर्ट मेल भेजे जा रहे हैं।
मीडियाविजिल दबाई या छुपाई जा रही सूचनाओं को सामने लाने के लिए कृतसंकल्प है। इस घटनाक्रम पर हमारी नज़र रहेगी और हम आगे भी पंजाब के किसान आंदोलन पर अपडेट देते रहेंगे।