संसद का शीतकालीन सत्र खत्म होने से ठीक एक दिन पहले 15 दिसंबर को केवल 500 मीटर की दूरी पर संसद मार्ग थाने से लेकर जंतर-मंतर तक 15000 केंद्रीय कर्मचारी दिन भर विशाल मंच से भाषण देते रहे और अपनी मांगों के हक़ में नारे लगाते रहे, लेकिन राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय और स्थानीय मीडिया ने अपनी आंखें मूंदे रखीं और कान ढंके रखे। उसे न तो लाल झंडे दिखायी दिए, न ही कर्मचारियों की आवाज़ें सुनाई दीं।
केंद्रीय कर्मचारी परिसंघ ने सातवें वेतन आयोग के संबंध में और अन्य मांगों को लेकर 15 दिसंबर को दिल्ली के संसद मार्ग पर एक विशाल रैली बुलाई थी। इस रैली की तैयारी से परेशान होकर केंद्र सरकार ने पिछले महीने परिसंघ को कुछ आश्वासन दिए थे जिससे वह बाद में मुकर गई। इसीलिए रैली के बैनर पर अरुण जेटली, राजनाथ सिंह और सुरेश प्रभु- तीनों केंद्रीय मंत्रियों के द्वारा विश्वासघात की बात लिखी गई थी।
पिछले महीने के अंत में इंडिया डॉट कॉम नाम की वेबसाइट ने ख़बर दी थी कि सरकार के आश्वासन के बाद रैली टाल दी गई है। 15 दिसंबर को दिल्ली की सड़कों ने उस ख़बर को तो झूठा साबित कर ही दिया, लेकिन साथ ही बाकी मीडिया के बारे में यह धारणा भी पुष्ट कर दी कि वह नरेंद्र मोदी की सरकार के खिलाफ़ सरकार के भीतर से ही उठने वाले असहमति के स्वर को वह नहीं दिखाएगा और पूरी तरह सरकार के आगे घुटने टेक चुका है।
रैली की अध्यक्षता परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष केकेएन कुट्टी ने की। कई सांसद भी इस रैली का हिस्सा रहे। कुहरे के कारण रद्द हुई ट्रेनों और तमिलनाडु में आए वरदा तूफ़ान के बावजूद भारी संख्या में दक्षिण भारत से कर्मचारी इस रैली में हिस्सा लेने आए थे। रैली में घोषणा की गई कि 15 फरवरी 2017 को सभी ट्रेड यूनियनें एक दिन की राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आयोजन करेंगी और काम बंद रहेगा।
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