मीडियाविजिल डेस्क
दस साल पहले 2007 के मार्च में भी मेधा पाटकर उपवास पर थीं, आज भी। मुद्दा तब भी सरदार सरोवर बांध का था और अब भी। तब भी नर्मदा घाटी की मां-बहनें उनके साथ थीं, आज भी। फ़र्क बस जगह का था और सरकार का। ‘संघर्ष-2007’ में दिल्ली का जंतर-मंतर था और सरकार कांग्रेस की। 2017 में जगह है मध्यप्रदेश का धार और सरकार भाजपा की, जिसे शिवराज सिंह चौहान चलाते हैं जिन्हें प्यार से ‘मामा’ कहा जाता है। तो मामा ने ऐन रक्षाबंधन के दिन अपनी बहनों की ‘रक्षा’ करने के लिए कील भरी लाठियां भिजवा दीं। उसके बाद लाठियों ने अपना तय काम किया- मेधा इंदौर के आइसीयू में हैं, एक बच्ची की जान खतरे में है जबकि बाकी औरतों को काफी चोट आई है।
https://twitter.com/NarmadaBachao/status/894629829223489536
सरदार सरोवर, मेधा पाटकर और सत्याग्रह बीते तीन दशक में एक-दूसरे का पर्याय बन चुके हैं। इनके ठीक समानांतर कांग्रेस और भाजपा भी नर्मदा के विस्थापितों के सवाल पर एक-दूसरे का पर्याय बन चुकी हैं। पिछली बार जब यूपीए सरकार मेधा के अनशन से आजिज आ गई थी, तो उसने समर्थकों को उठाकर दिल्ली के थानों में बंद कर दिया और मेधा को एम्स भेज कर जबरन उपवास तोड़वा दिया था। यह घटना बड़ी ख़बर बनी थी। बड़ी ख़बर के लिए वहां आमिर खान जो थे। ख़बर का असर भी हुआ। नई पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन नीति का मसविदा 13 अगस्त 2007 को केंद्र सरकार ने स्वीकार कर लिया।
इस बार आमिर खान नहीं थे। हर बार हो भी नहीं सकते हैं। इस बार कई और लोग नहीं थे। जैसे विमल भाई, जो पिछली बार प्रेस को संभालने में लगे थे, इस बार पंचेश्वर बांध के विरोध में उत्तराखण्ड में जमे हुए हैं। चूंकि मामला दिल्ली से बाहर का था, तो राष्ट्रीय मीडिया के होने का सवाल ही नहीं था। स्थानीय मीडिया की आंखों पर सरकारी विज्ञापन की पट्टी बंधी है। किसी को भी पुलिसिया लाठियों के मुंह पर गड़ी कीलें नहीं दिखाई दीं। दिखाने के बावजूद।
So many left injured after the police action on 12th day of hunger strike. @ChouhanShivraj @PMOIndia @thewirehindi pic.twitter.com/lf5vaCr8sA
— NarmadaBachaoAndolan (@NarmadaBachao) August 7, 2017
सुप्रीम कोर्ट के 8 फरवरी 2017 के आदेश की आड़ में प्रशासन गाँव-गाँव जाकर बिना किसी पुनर्वास की व्यवस्था के गांव खाली करने का नोटिस दे रहा है तो कहीं घर तोड़ देने की बात कही जा रही है। कब और कितने स्तर पर डूब आएगी, सरकार ने इसकी एक समय-सारिणी ज़ाहिर की है | सवाल है कि जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहीं भी बांध के गेट बंद करने और पानी भरने की बात ही नहीं है तो क्यों मध्य प्रदेश सरकार बिना पुनर्वास के- ऐसे समय में जब गुजरात में बाढ़ आई है- बांध के गेट बंद करके मध्यप्रदेश को भी, गुजरात में पानी लाने के नाम पर डुबाने की तैयारी कर रही है?
सत्याग्रही बीते 12 दिनों से यही सवाल उठा रहे थे। उन्हें सोमवार को रक्षाबंधन के पर्व पर मामा की पुलिस ने पर्याप्त मारा-पीटा है। हिम्मत की बात ये है कि आधा दर्जन लोग अब भी अनशन पर डटे हुए हैं। इस बीच मुख्यमंत्री ने खुद को ‘संवेदनशील’ बताते हुए यह लिखा है:
मैं संवेदनशील व्यक्ति हूँ। चिकित्सकों की सलाह पर @medhanarmada जी व उनके साथियों को अस्पताल में भर्ती कराया गया, गिरफ्तार नहीं किया गया है।
— Shivraj Singh Chouhan (मोदी का परिवार ) (@ChouhanShivraj) August 7, 2017
मेधा पाटकर का कहना है कि सरकार या प्रशासन की ओर से संवाद की कोई कोशिश नहीं की गई। केंद्रीय जल मंत्री उमा भारती और शिवराज सिंह लगातार उनसे अनशन तोड़ने को कहते रहे, लेकिन बात करने नहीं आए। इसके बजाय रक्षाबंधन की सुबह सोमवार को भारी पुलिसबल की तैनाती कर दी गई। शाम को अचानक पंडाल तोड़ा-फोड़ा जाने लगा और लाठीचार्ज शुरू हुआ। पंडाल में मौजूद औरतों की चीख-पुकार सुनने के लिए न तो वहां ‘संवेदनशील’ मुख्यमंत्री के चिकित्सक थे और न ही कोई मीडिया।
पुलिस लाठी चार्ज के बाद धरने स्थल कस दृश्य. अनेकों घायल। कोई डॉक्टर नहीं, कोई देखने वाला नहीं @PTI_News @DilliDurAst @ndtv @thewire_in pic.twitter.com/7kPYyJYPuJ
— NarmadaBachaoAndolan (@NarmadaBachao) August 7, 2017
दस साल में न सरकार के रवैये में फ़र्क आया है, न ही आंदोलनकारियों की रणनीति में। केवल एक फ़र्क जो बिलकुल साफ़ दिखता है, वह है सरदार सरोवर बांध के मामले में विस्थापितों के प्रति मीडिया की बेपरवाही। दिल्ली में 2007 में जब तमाम कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था, उस वक्त आंदोलनकारियों के पास न फेसबुक था, न वॉट्सएप और न ही ट्विटर। बावजूद इसके ख़बर बड़ी हो गई मांग मान ली गई क्योंकि मीडिया ने कैमरा घुमा डाला।
आज नर्मदा बचाओ आंदोलन और उसके साथी आधिकारिक व निजी दोनों ही स्तरों पर एक-एक फोटो, वीडियो, ऑडियो, बयान आदि मीडिया को रेडीमेड देने को तैयार और सक्षम हैं, लेकिन आज मीडिया नदारद है।