ज़िंदगी में ‘नमक’ बनाए रखना हो तो स्वादानुसार नमक खाना बंद करिए !

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डॉ.स्कन्द शुक्ल

नमक स्वादानुसार बन्द करिए , एक चम्मच पर रुक जाइए। बस !

जब आप खाने में नमक खाते हैं , तो दरअसल सोडियम क्लोराइड खाते हैं। समुद्री नमक , सेंधा नमक , काला नमक सभी का प्रमुखतम यौगिक यही सोडियम क्लोराइड है।

सोडियम और क्लोरीन के मानव-शरीर में अपने-अपने महत्त्व हैं। भोजन के माध्यम से लिये गये इस सोडियम को हर कोशिका अलग-अलग कामों में तरह-तरह से इस्तेमाल करती है। सोडियम का सम्बन्ध ब्लड प्रेशर से भी है। ब्लड प्रेशर नियन्त्रण में सोडियम का सेवन कम करने से भी मदद मिलती है। सोडियम का सेवन तभी कम हो सकता है , जब नमक का सेवन कम हो। 

पिछले कई सौ सालों में मानव-आहार में तेज़ी से कुछ बदलाव आये हैं। नमक-चीनी-रिफाइण्ड अनाज-वसायुक्त भोजन इन परिवर्त्तनों में प्रमुख हैं। साथ ही रहन-सहन इतना सुविधाजनक हो गया है कि लोग व्यायाम तब तक नहीं करते जब तक डॉक्टर सलाह न दे। इन कारणों से ब्लड प्रेशर और उससे सम्बन्धित रोगों हृदय-आघात और मस्तिष्क-आघात में बहुत वृद्धि हुई है। 

सोडियम क्लोराइड की उपस्थिति कई भोजन-पदार्थों में कुदरती तौर पर है। लेकिन ज़्यादातर लोग प्राकृतिक नमक पर निर्भर नहीं रहते , वे ऊपर से नमक लेते हैं। यानी खाना बनाते समय नमक अलग से डाला जाता है। साथ ही प्रिज़र्वेटिवों से युक्त भोजनों में भी सोडियम की अतिरिक्त मात्रा पायी जाती है। स्नैक्स-चटपटा भोजन ( अचार-चटनी-पापड़-सॉस ) भी सोडियम से बहुत ज़्यादा युक्त होते हैं। 

एक चम्मच में छह ग्राम नमक होता है। ज़्यादातर लोग इसका दोगुना नमक अपने भोजन में लेते हैं। आप अपने घर के सदस्यों की संख्या और घर में आने वाले नमक की खपत के आधार पर अपनी रोज़ की व्यक्तिगत खपत निकाल सकते हैं। 

विशेषज्ञों का कहना है कि मनुष्य की नमक की रोज़मर्रा की खपत एक चम्मच से थोड़ी कम होनी चाहिए : पाँच ग्राम के आसपास।

साथ ही फलों और रेशेयुक्त अनाजों की मात्रा बढ़ानी चाहिए। लेकिन इसका अर्थ डिब्बाबन्द जूस पीना नहीं है। फल स्वयं काटकर खाने से आप तमाम प्रिज़र्वेटिवों से मुक्त रहते हैं। फलों में पोटैशियम होता है , जो सोडियम का शारीरिक विरोधी है। आधुनिक आहार में ज्यों-ज्यों हम सोडियम-युक्त भोजन की ओर झुके हैं , त्यों-त्यों हम पोटैशियम-युक्त आहारों से हटे भी हैं। ब्लडप्रेशर के पीछे एक यह भी कारण महत्त्वपूर्ण है।

समुद्री नमक को बनाते समय कई नन्हें जीवाश्म संग पिस कर प्रॉसेस हो जाते हैं ; इसी कारण बहुधा लोग व्रत-इत्यादि में इससे बचते हैं। सेंधा नमक समुद्र नहीं बल्कि चट्टानों से मिलता है , इसलिए इसके साथ यह मामला नहीं फँसता। इसीलिए इसे लोग त्यौहारों में इस्तेमाल करते हैं। ( सेंधा शब्द सिन्धु से आया है। इसे सेंधा नमक या सैन्धव लवण कहा जाता रहा है , क्योंकि पाकिस्तान से इसकी बहुत मात्रा प्राप्त होती रही है। इसे हिमालयाई या सुलेमानी नमक भी कहा जाता है। कहते हैं सिकन्दर जब भारत आया तो उसकी सेना के कई घोड़े यहाँ की चट्टानों को चाटने लगे। पता करने पर उसे मालूम हुआ कि ये चट्टानें नमक-युक्त हैं और स्थानीय लोग इनका भोजन में प्रयोग भी करते हैं। )

काला नमक काला इसलिए है क्योंकि उसमें लोहे के लवणों की कुछ मात्रा है। मुख्य रूप से उसमें मौजूद आयरन सल्फ़ाइड उसे ख़ास काला-बैंगनी रंग , हल्का कसैला स्वाद और हल्की गन्धकी गन्ध देता है। लेकिन यहाँ भी मुख्य यौगिक सोडियम क्लोराइड ही है।

भोजन का महत्त्वपूर्ण पदार्थ होने के कारण सरकारें आयोडीन और आयरन की कमियों को भी इसके माध्यम से पूरा करने का प्रयास करती रही हैं और इसमें काफ़ी क़ामयाबी भी पायी है। लेकिन प्रोसेस्ड भोजन का अत्यधिक सेवन करने से हृदय और मस्तिष्क को हानिकारक रोग भी मिले हैं।

प्रयास करें कि हर सामान्य व्यक्ति एक चम्मच से कम ही नमक प्रतिदिन ले। जो रोगी हों , मध्यायु या वृद्ध हों , बच्चे हों : वे इस मात्रा को और घटा दें। कितनी मात्रा लेनी है , यह अपने चिकित्सक से व्यक्तिगत तौर पर तय करें। फल खाएँ , रेशेदार अनाज लें। जूस-बेकरी-चटपटा लगभग बन्द कर दें।

कसरत नित्य करें। रोगी डॉक्टर से पूछकर करें। नीरोग अपने आप , ताकि डॉक्टर के पास न जाना पड़े।

 



पेशे से चिकित्सक (एम.डी.मेडिसिन) डॉ.स्कन्द शुक्ल संवेदनशील कवि और उपन्यासकार भी हैं। इन दिनों वे शरीर से लेकर ब्रह्माण्ड तक की तमाम जटिलताओं के वैज्ञानिक कारणों को सरल हिंदी में समझाने का अभियान चला रहे हैं।