कृष्‍ण कल्पित ने सीधे इंग्‍लैंड से भिजवा दिया लेखकों को मानहानि का नोटिस, हिंदी के कवि कनफ्यूज़

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हिंदी के कवि-लेखक समझने में जुटे हुए हैं कि कवि कृष्‍ण कल्पित की ओर से भिजवाए गए कथित कानूनी नोटिस को कैसे लिया जाए। दरअसल, कवयित्री अनामिका के ऊपर फेसबुक पर की गई एक टिप्‍पणी के सिलसिले में कुछ लेखकों ने मिलकर दो दिन पहले एक निंदा बयान कृष्‍ण कल्पित के खिलाफ़ जारी किया था। मामला तब उतना संगीन नहीं था, लेकिन सोमवार को इसने ख़तरनाक मोड़ ले लिया जब जन संस्‍कृति मंच का निंदा बयान आ गया।

जसम के निंदा बयान को संगठन के महासचिव मनोज कुमार सिंह की ओर से जारी किया गया है। इसे वैसे तो कई लेखकों ने फेसबुक पर साझा किया, लेकिन कृष्‍ण कल्पित ने विशेष रूप से कुछ लोगों का नाम लेते हुए कहा कि वे मुकदमा झेलने को तैयार रहें। उन्‍होंने यह भी लिखा कि जो कोई इस निंदा बयान को लाइक करेगा उसे भी कानूनी कार्यवाही के लिए तैयार रहना होगा।

आधी रात बीतते-बीतते कल्पित ने लेखकों को नोटिस भिजवा दिया है। यह नोटिस न तो भारत की किसी अदालत का है, न ही देश की किसी अर्धन्‍यायिक संस्‍था का और न ही किसी वकील के नाम से है। यह सीधे इंग्‍लैंड की एक संस्‍था से आया है जिसका नाम ”काउंसिल फॉर एथनिक माइनॉरिटी एंड सिविल राइट्स, यूके (इंग्‍लैंड एंड वेल्‍स) है। इसका दफ्तर लंदन में बताया गया है।

नोटिस का विषय है- प्रीऐक्‍शन प्रोटोकॉल यानी कार्यवाही से पहले का प्रोटोकॉल। नोटिस कहता है कि कुछ लोग संस्‍था के ‘म्‍यूचुअल असोसिएट’ के मुताबिक कृष्‍ण कल्पित के बारे में टिप्‍पणी कर रहे हैं। इसमें लिखा है, ”चूंकि श्री कल्पित अभिव्‍यक्ति की आज़ादी के पैरोकार हैं इसलिए हम आपको यह विमर्श जारी रखने को प्रोत्‍साहित करते हैं लेकिन आपको यह ध्‍यान रखना होगा कि आजाद अभिव्‍यक्ति बिना बंदिशों के नहीं होती।”

नोटिस आगे कहता है कि अखबारों और सोशल मीडिया पर कुछ ऐसे बयानात दिए गए हैं जो न सिर्फ असत्‍य हैं बल्कि झूठे भी हैं। नोटिस कहता है, ”मानहानि की न्‍यायिकत में आपको ऐसे बयानों की गंभीरता को समझना होगा क्‍योंकि विषय-वस्‍तु और अंतर्वस्‍तु एक समान चीज़ ही होती हैं। हम आपको अपना बयान वापस लेने और तत्‍काल माफी मांगने का मौका देते हैं।” ऐसा न करने पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

नोटिस भेजने वाले का नाम लिखा है:

समन्‍वय समिति,

काउंसिल फॉर एथनिक माइनॉरिटी एंड सिविल राइट्स, यूके

जिन्‍हें य‍ह नोटिस मिला है, वे समझ नहीं पा रहे हैं कि इसका क्‍या करें क्‍योंकि अव्‍वल तो यह यूके की किसी संस्‍था की ओर से भेजा गया प्रतीत होता है, दूसरे इसका भारत में कानूनी मूल्‍य पता नहीं। कुछ लेखक इसे विशुद्ध मनोरंजन मानकर चल रहे हैं।