नोटबंदी से ग़रीबों की तबाही नहीं दिखती मीडिया को, दलित ऐंकर क्यों नहीं-प्रो.इलैया

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“अल जज़ीरा में ब्लैक ऐंकर हैं, लेकिन भारतीय चैनलों में दलित ऐंकर क्यों नहीं ?”

मशहूर लेखक और दलित अधिकार कार्यकर्ता प्रो.काँचा इलैया ने मुख्यधारा मीडिया पर नोटबंदी से ग़रीबों को हो रही तक़लीफ़ों की उपेक्षा का आरोप लगाया है। प्रो. इलैया ने कहा है कि मीडिया में दलितों,पिछड़ों और आदिवासी समाज की गै़रमौजूदगी की वजह से यह मीडिया आमतौर पर सवर्ण दायरे में ही सोचता है।

kancha-academyमैसूर के कर्नाटक मीडिया एकेडमी में बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर आयोजित कार्यक्रम   संबोधित करते हुए प्रो.इलैया ने ख़ासतौर पर चैनलों की हालत पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अलजज़ीरा जैसे चैनलों में काले चमड़ी वाले ऐंकर मौजूद हैं, लेकिन भारत में दलित ऐंकर ढूँढे नहीं मिलते। आख़िर क्यों ?

प्रोफेसर इलैया ने कहा कि मीडिया समाज में बदलाव का माध्यम बन सकता है, लेकिन वहाँ दलित, आदिवासी और ओबीसी समुदाय के लोगों का प्रतिनिधित्व है ही नहीं। अगर मीडिया में दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा तो मीडिया में दिखने वाली कहानियाँ अलग तरह की होंगी। दलित, आदिवासी और पिछड़े इलाके में रह रहे लोगों पर नोटबंदी की सबसे अधिक मार पड़ी है लेकिन उनकी दर्दनाक कहानियों को मीडिया नज़रअंदाज़ करने में जुटा है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों से लेनदेन के लिए नक़द के बजाय ई-वॉलेट का प्रयोग करने को कहा है लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि गरीबों और पिछड़े इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए यह कैसे संभव होगा।  कैशलेश अर्थव्यवस्था से सिर्फ बड़ी कंपनियों और कार्पोरेट के लोगों का फायदा होगा।

वैसे प्रो. इलैया पहले नहीं हैं जिन्होंने यह सवाल उठाया है। मुख्यधारा माडिया की सामाजिक बुनावट हमेशा ही समाजविज्ञानियों के निशाने पर रही है। कुछ वर्ष पहले ऐसे सर्वेक्षण भी हुए थे जिन्होंने बताया था कि भारतीय मीडिया दरअसल सवर्ण माडिया है। मगर समाचार समूहों के मालिक ही नहीं, संपादक भी इस सवाल से कन्नी काटते रहे। उल्टा उन्होंने मीडिया में दलित, आदिवासी, पिछड़े या अल्पसंख्यकों की बेहद कम अनुपस्थिति के सवाल को जातिवादी विमर्श क़रार दिया। सामाजिक न्यायय पर यक़ीन करने वालों ने इसे उनके सवर्णवादी दंभ का ही नमूना बताया।

बहरहाल, प्रो.इलैया के इस ताजे़ हस्तक्षेप के बाद इंडिया टुडे के पूर्व संपादक दिलीप मंडल ने अपनी फ़ेसबुक वॉल पर सीएनएन के एक कार्यक्रम की तस्वीर पोस्ट करके भारतीय चैनलों पर ऐंकर से लेकर आमंत्रित बहसबाज़ों के आमतौर पर सवर्ण होने पर सवाल उठाते हुए यह लिखा है-

 “अमेरिका में ब्लैक अल्पसंख्यक हैं। पर वहाँ CNN पर आपको यह देखने को मिल सकता है कि एंकर और गेस्ट सभी ब्लैक हैं। यह CNN का 22 फ़रवरी, 2016 का anchor-black शो है। भारत में अगर किसी शो में सारे के सारे दलित या ओबीसी या मुसलमान दिख जाएँ तो?

सारे के सारे एंकर से लेकर एक्सपर्ट तक ब्राह्मण या सवर्ण हों तो चलेगा। चलेगा क्या, हर दिन, हर रात चल रहा है।

.अक्सर हमें भी नहीं लगता कि यह जातिवाद है। सवर्णों का जातिवाद, जातिवाद नहीं है ! “