जनसत्ता भी अब बोल रहा है हिंदूवादी संगठनों की भाषा!

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वसीम अकरम त्यागी 

जनसत्ता जैसा न्यूज पोर्टल भी जब संघ की शाखा से खबरें प्रकाशित करने लगे तो फिर आप ‘निष्पक्ष’ का जनाजा समझो दफ्न हो चुका है। दरअस्ल दो दिन पहले मेरे गांव से सटे कस्बे परीक्षितगढ मे Aryaan Abbasi भाई की गर्दन काटकर बेदर्दी से हत्या कर दी गई थी। इस मामले में पीड़ित परिवार ने कल्लू उर्फ वसीम, नदीम सैफी और डाक्टर नागेश शर्मा को नामजद आरोपी बनाया था। पुलिस ने नदीम और नागेश को छोड़ दिया और सिर्फ कल्लू को आरोपी बना दिया।

जनता इसी से नाराज थी कि गर्दन काटकर हत्या करना और हत्या भी ऐसी दरिंदगी की सारे हदें पार कर दी जायें, यहां तक कि गर्दन काटने के साथ साथ मृतक की उंगलियां तक दी जायें और नग्न अवस्था मे शव को फेंक दिया जाये यह दरिंदगी किसी एक आदमी की तो हो नही सकती। इसी से नाराज लोगो ने थाने का घेराव किया, वहां पर पुलिस ने लाठी बरसा दी फिर लोगो ने ने थाने पर पथराव कर दिया। यह पूरी घटना है लोगो का कहना है कि जिन लोगो को पुलिस ने छोड़ दिया है वे लोग इस कत्ल के मास्टरमाइंड हैं। पीड़ित परिवार का आरोप है कि पुलिस ने घूस लेकर आरोपियो को थाने से ही बरी कर दिया।

अब इस घटना को जनसत्ता समेत कई हिन्दुवादी पोर्टल लिख रहे हैं कि ‘ईद की नमाज के बाद परीक्षितगढ थाने पर हमला, थाने फूंकने की कोशिश नाकाम, वगैरा वगैरा। जनसत्ता और एक कदम आगे जाकर प्रदर्शनकारियो को दहश्तगर्द लिख रहा है, कई संघी इस खबर के जरिये संदेश देना चाह रहे हैं कि मुसलमान ईद की नमाज पढकर आये और थाने पर हमला कर दिया। उनकी पोस्टो पर आने वाले कमेंट और भी जहरीले हैं। कुल मिलाकर मीडिया और सोशल मीडिया के दंगाई यह ‘खौफ’ पैदा करना चाह रहे हैं कि अगर मुसलमान पीड़ित है और वह इंसाफ मांग रहा है तो उसे दहश्तगर्द करार दिया जायेगा।

हैरानी तो तब होती है जब इंडियन एक्सप्रेस समूह का Jansatta भी हिन्दुवादी संगठनो की भाषा बोलता है। अबे शर्म कर लो शर्म, कल हत्या तुम्हारे भाई की भी हो सकती है पुलिस पैसे के अलावा किसी दूसरे की सगी नही होती कल अगर यही पुलिस ‘घूस’ लेकर तुम्हारे भाई, बंधू के हत्यारो को थाने से ही चलता कर दे तो तुम क्या करोगे? और फिर तुम इस नाइंसाफी के खिलाफ प्रदर्शन करो और तुम्हें आतंकवादी बताया जाये तो कैसा महसूस होगा? जनसत्ता जैसे नाम को बदनाम करने वाले संघी पत्रकारो शर्मिंदगी और गालियो का स्कोप बचाकर रखना कल तुम इंसाफ मांगती भीड़ का हिस्सा हो सकते हो और इधर खबर लिखने वाला भी कोई आपसे जख्मी पत्रकार हो सकता है। तब क्या करोगे?


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