हिंदी के एक ज़माने में प्रतिष्ठित अखबार रहे ‘जनसत्ता’ का नया संपादक आने के साल भर के भीतर ये हाल हो गया कि समझ ही नहीं आता आप जनसत्ता पढ़ रहे हैं या पांचजन्य। इस अखबार में 8 जून को फरीदाबाद की डेटलाइन से प्रकाशित यह खबर देखिए।
कुल जमा सवा पांच लाइन से कम की इस खबर के भीतर तो ‘एक युवक’ लिखा है, लेकिन बोल्ड फॉन्ट में इसका शीर्षक ‘मुस्लिम युवक’ लिखता है। क्या अपराध के किसी मामले में कभी आपने ‘किसी शीर्षक में हिंदू युवक’ किसी अख़बार को लिखते देखा है?
अगर नहीं, तो फिर अलग से अपराध के एक मामले में आरोपी के धर्म को गिनवाने का क्या मतलब? साफ़ है कि ऐसा शीर्षक भांग खाकर नहीं लगाया गया है क्योंकि ख़बर के भीतर ऐसी करामात नहीं है। ख़बर सामान्य तरीके से लिखी गई है। जिसने भी इस ख़बर को लिखा है, जिसने भी एडिट किया है और जिसने भी छापा है, वे सभी सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने के स्पष्ट आरोपी हैं।
इस सांप्रदायिक शीर्षक के लिए क्यों न जनसत्ता के संपादक मुकेश भारद्वाज पर कार्रवाई हो?
सौजन्य से: प्रकाश के. रे